अध्यात्मिक उन्नति क्या है? Signs of Spiritual Progress : कुण्डलिनी और अध्यात्म का विज्ञान .. अतुल विनोद पाठक


स्टोरी हाइलाइट्स

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पूरा संसार एक  स्प्रिचुअल सिस्टम है|  भौतिक सिस्टम स्प्रिचुअल सिस्टम  का एक्सप्रेशन है|  स्प्रिचुअल प्रोग्रेस का मतलब है हमारे अंदर मौजूद स्प्रिचुअल सिस्टम की पूर्ण अभिव्यक्ति  यानी  उसके फुल फॉर्म  का एक्सप्रेशन| बाहर से भौतिक दिखाई देने वाला ये संसार अंदर से उतना ही आध्यात्मिक है| फिजिकल वर्ल्ड स्प्रिचुअल वर्ल्ड की बहुत सीमित अभिव्यक्ति है| फिजिकल वर्ल्ड स्पिरिचुअल वर्ल्ड की कॉन्शियस सबकॉन्शियस और अनकॉन्शियस पावर्स है जो बहुत लिमिटेड है| हम इस लिमिटेड  फिजिकल, मेंटल और इमोशनल प्रोसेस को ही सब कुछ मानते हैं|

 अनेक तरह  के भ्रम और वेरिएशन के बावजूद सारा जगत एक ही स्प्रिचुअल पावर से ही संचालित होता है और उसी से पैदा होता है,ये उसी से पैदा होता है, उसी में स्थित रहता है और उसी में समाहित हो जाता है| ये जगत उस स्प्रिचुअल  सुप्रीम एलिमेंट की अनलिमिटेड, यूनिवर्सल कॉन्शियसनेस और पावर का विजिबल मेनिफेस्टेशन है| यूनिवर्स की सभी तरह की फंक्शनिंग  सुप्रीम पावर के एटरनल ब्लिस  का हिस्सा है| हम जब इस दुनिया को देखते हैं तो ये बहुत जटिल, आश्चर्यजनक और रहस्यमई नजर आती है| 

ये  यूनिवर्सल प्रपंच (Delusion) उस सुप्रीम स्प्रिचुअल पावर से उसी के जरिए उसी के लिए बनाई गई एक बेहतरीन स्प्रिचुअल प्रोसेस है| सुप्रीम सोल परम शिव का ये “बॉडी” फार्म (पिंड रूप)  है| योगी उस परम शिव की स्प्रिचुअल पावर को शक्ति, विश्व जननी, माता,   त्रिमूर्ति, त्रिपुरा, त्रिपुर सुंदरी, भगवती, देवी, महाशक्ति,  दुर्गा, जगदात्री, अन्नपूर्णा,  गायत्री, भुवनेश्वरी,  ललितांबा, कात्यायनी सहित कई नामों से पुकारते हैं| यही  स्प्रिचुअल पावर योग में महा-कुंडलिनी शक्ति कहलाती है| 

परम शिव की यही शक्ति  शिव के उल्लास और विलास के लिए पिंड के रूप में अपना Expansion (विस्तार) करती है| ये शक्ति विश्व में शरीर, मन और प्राण के रूप अभिव्यक्त होती है| जैसे-जैसे ये “शक्ति” सूक्ष्म से स्थूल होती जाती है  वैसे वैसे ही latent (गुप्त) होती जाती है| इसका मतलब ये है कि  ये जैसे जैसे आकार लेती है वैसे वैसे ही अपने को छुपाती जाती है| शरीर प्राण  और मन के पीछे बैठी  ये  आध्यात्मिक आत्मशक्ति  भौतिक तंत्र को क्रियाशील करने के बाद उस तंत्र के पीछे  ऐसे मौजूद रहती है जैसे वो सो रही हो| 

 इसी वजह से इस शक्ति को सुप्त कहा जाता है| योग शास्त्रों में इससे मूलाधार में बैठी  सोई हुई कुंडलिनी शक्ति कहते हैं| भौतिक रूप में हम मूलाधार को अपने शरीर का सबसे निचला  भौतिक हिस्सा मानते हैं| हालांकि  इसका अर्थ ये नहीं है कि वो शरीर के सबसे निचले केंद्र में किसी जगह विशेष पर सो रही है| इसका अर्थ तो ये है कि हमारे शरीर मन और प्राण  का आधार होने के बावजूद भी ये गोपनीय रूप में मौजूद है| इसलिए इसे मूलाधार निवासिनी कहा जाता है| हम अपने आध्यात्मिक अंधेपन के कारण इस शक्ति को सुप्त, Dormant,अक्रियाशील या उदासीन मानते हैं| महायोग से जब ये जानी जाती है तो पता चलता है कि हमेशा, जागृत, सतर्क, क्रियाशील और आनंदित है|  

लेकिन इसकी शांति और गोपनीयता के कारण हमें ये सोई हुई  लगती है| आँख होते हुए भी इसे न देख पाने के कारण हम अंधे और सोये हुए कहे जाते हैं| हमारे अस्तित्व की जागृति क्रियाशीलता  का आधार जो शक्ति है वो सो कैसे सकती है? ये अलग बात है कि हम अज्ञान के परदे के कारण उसकी उपस्थिति का एहसास नहीं कर पाते| महाशिव अपनी शक्ति के रूप में हमेशा हमारे अंदर मौजूद है| जागृत होने के बाद भी हमारे लिए तो ये सुप्त ही है| इसका प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए हम अपने आप को जागृत करते हैं| जब हम खुद को जागृत करते हैं तो वो शक्ति हमारे सामने Visible (प्रत्यक्ष) हो जाती है| 

इसका मतलब ये है कि आध्यात्मिक साधना कुंडलिनी जागरण की साधना नहीं है बल्कि हमारे अपने जागरण की साधना है| हम कुंडलिनी को नहीं जगाते बल्कि  अपने शरीरमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय,आनंदमय,चित्तमय और सत्यमय कोष के उपर के पर्दों को हटाते हैं जिनके कारण वो सोई हुई लगती है| भौतिक मानसिक और प्राणिक शक्तियों के अधीन होने के कारण हम उसकी उपस्थिति का अनुभव नहीं कर पाते| जबकि ये तीनों शक्तियां उसी मूल शक्ति के कारण वजूद में हैं| शरीर, मन और प्राण से मिलकर बनी “चेतना” को जब हम जागृत करते हैं तब दिव्य शक्ति  का साक्षात्कार होता है| 

हमारी ये चेतना जब क्रियाशील हो जाती है तो शरीर मन और प्राण रूपी शक्ति के आवरण के पीछे मौजूद महाशक्ति को प्रकट करने की प्रक्रिया खुद शुरू करती है| तब मैं सिर्फ दर्शक बन जाता है| चेतना है और ये अपने वास्तविक स्वरुप महाचेतना में विलीन हो जाति है| इससे भी उच्च अवस्था में परम आध्यात्मिक शक्ति महाकुंडलिनी(कार्य) अपने “कारण” शिव से एकाकार हो जाती है|

दरअसल शिव से पैदा हुयी महाशक्ति पिंड में शक्ति(कुण्डलिनी) बन जाती है| यही कुण्डलिनी उसकी भौतिक, मानसिक और प्राणिक शक्ति में कन्वर्ट हो जाती है| शिव>महा शक्ति> शक्ति> चेतना(तम+रज+सत्व) > (शरीर+मन+ प्राण) योगी इस अनुभव को अलंकारिक भाषा में, कथानको और द्रष्टांतों और उदाहरणों के साथ समझाने के लिए प्रकट करते हैं| प्रारंभिक साधक इन कथा कहानियों उदाहरणों को ही सच मानकर उसमे अटक जाता है| कम ही होते हैं जो इनके पीछे छिपे असल ज्ञान का बोध और अनुभव कर पाते हैं| चेतना(कुण्डलिनी) की जागृति(अध्यात्मिक क्रियाशीलता) में शरीर,मन और प्राण की क्रियाएं(योग) होती हैं| इन क्रियाओं से महाकुण्डलिनी का द्वार खुलता है फिर परम शिव से साक्षात्कार होता है| मूलतः 7 कोष हैं और हर कोष में मुख्य मुख्य 8, 8 चक्र हैं| चक्रों की संख्या और उनके अनुभव साधना में बहुत महत्त्व नहीं रखते ये सिर्फ सैधांतिक ज्ञान के लिए हैं| आम तौर शरीर के चक्रों की बहुत बात होती है ये चक्र अध्यात्मिक विकास की कड़ी हैं| ये केंद्र हर कोष के स्तर पर होते हैं| शरीर के स्तर पर ग्रंथियों के रूप में इसी तरह प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय,आनंदमय,चित्तमय और सत्यमय कोष के स्तर पर अलग अलग भूमिकाएं हैं| शरीर के स्तर पर मेल फीमेल ग्लेंड्स हैं Ovaries (females only) Testes (males only) हैं इससे उपर के स्तर पर मूलाधार चक्र शरीर के स्तर पर जहाँ Adrenal glands हैं वहां इससे उपर के स्तर पर स्वाधिष्ठान चक्र है| शरीर के स्तर पर जहाँ  Pancreas हैं वहां इससे उपर के स्तर पर  मणिपुर चक्र| शरीर के स्तर पर जहाँ THYMUS है वहां अनाहत चक्र| शरीर के स्तर पर जहाँ Thyroid gland है वहां विशुद्धि चक्र| शरीर के स्तर पर जहाँPituitary gland वहां आज्ञा चक्र| शरीर के स्तर पर जहाँ Pineal gland है वहां गुरु या ललना चक्र| शरीर के स्तर पर जहाँ Hypothalamus है वहां सहस्त्र चक्र की स्थिति है| हमारे सर में Hypothalamus, Pituitary, Pineal gland की त्रिवेणी है ये तीनो मास्टर ग्रंथियां पूरे सिस्टम को रेगुलेट करती हैं इसलिए इन्हें त्रिनेत्र कहा जाता है| बहुत कुछ ऐसा है जो जैसा लिखा या कहा गया है वैसा नहीं है| वस्तुतः अध्यात्म उसके विकास और अनुभूतियों को यथा स्थिति में लिखा नहीं जा सकता इसलिए जिज्ञासु को इन्हें आधार मानकर खुद ही आगे बढ़ना होता है| वही गुरु उसके अंदर चेतना रुपी गुरु तत्व को क्रियाशील करने में मादद करता है फिर ये यात्रा चेतना खुद कराती है| मनुष्य शरीर मन मस्तिष्क और प्राण की सीमाओं से ऊपर उठना  चाहता है|  हम सबके अंदर इन चारों के दुख पूर्ण बंधनों से ऊपर उठने की इच्छा होती है|  हम पूर्णता और आनंदमई मुक्त अवस्था प्राप्त करना चाहते हैं| हमारे अंदर मौजूद आध्यात्मिक चेतना हमेशा हमें आंतरिक प्रेरणा देती है| लेकिन कोई कोई ही उस प्रेरणा को सुनकर समझ पाता है| आंतरिक शांति के लिए इस प्रेरणा को सुनना  और इसके आधार पर इंद्रिय, मन, प्राण, बुद्धि की भूमि से ऊपर उठकर अपने वास्तविक स्वरूप को जानने की यात्रा को ही जागरण कहते हैं| Kundalini Energy Awakening,What Is The Power Of Kundalini?, KUNDALINI AWAKENING, Unleash Your Spiritual Power,Psychic Awareness and Knowledge Beyond Logic, Enhance Your Intuition and Balance Your Chakras,Awakening the Serpent Power the Kundalini,Use Kundalini Yoga To Awaken Your True Power,Kundalini & the Power of Awakening,kundalini awakening stages,kundalini awakening symptoms,kundalini supernatural powers,what happens after kundalini awakening,how to know if kundalini is awakened,kundalini awakening benefits,kundalini awakening process,kundalini awakening dangers