कुंडलिनी शक्ति, चक्र और बदलती मनोदशा


स्टोरी हाइलाइट्स

इसलिए स्वयंमेव कुंडलिनी जागृत का सबसे सुंदर उपाय कि अनभिज्ञ अंजान एवं अज्ञानी बनकर चलते रहे, स्वयं को सतगुरु को ....कुण्डलिनी शक्ति के चमत्कार

कुंडलिनी शक्ति, चक्र और बदलती मनोदशा   Kundalini and phycosis गुरु शिष्य से प्रिय साधक मेरुदंड में स्थित मूलाधार चक्र प्रथम, स्वाधिष्ठान द्वितीय, मणिपुर तृतीय, अनाहत चतुर्थ, विशुद्धि चक्र पंचम, आज्ञा चक्र सष्टम, सहस्त्र दल कमल या ब्रह्म रंध्र सातवां।सात चक्र पूर्ण हुए ब्रह्मरंध्र जिसे कि आप केंद्र कहती हैं या बोलचाल की भाषा में इसे केंद्र कहा जाता है।फिर से एक बार मेरुदंड में स्थित गुदाद्वार में मूलाधार, मूलाधार चक्र यहां पर साढ़े तीन कुंडल मारकर सर्पीणी स्वरूप में कुंडलिनी शक्ति विराजित है, जिसका एक नाम अपराजिता भी है।प्रिय उसके उपरांत मुलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्त्र दल कमल सात चक्र हुए।अब सात चक्रों के उपचक्र भी है। यह शरीर की रचना, इड़ा मेरुदंड में स्थित एक नाड़ी जो कि चंद्र नाड़ी, सूर्य नाड़ी पिंगला, सुषुम्ना उसका कोई स्थान नहीं है वह गुण विहीन है प्रिय।सुषुम्ना नाड़ी - इसका कोई स्थान नहीं है गुण विहीन है। उसके गुण नहीं है।और इड़ा और पिंगला नाम की नाडीयां उसके अंदर गुण प्रवाहित करती है और वहां से एक ध्वनि जो कि तीव्र और तीखा नाद करते हुए निकलती है।यह गुण उत्पन्न करती है सुषुम्ना, जब उसमें गुण प्रवाहित किए जाते हैं ऊर्जा प्रवाहित की जाती है प्रिय। आप सुषुम्ना को एक बार से प्रकार से, हम आपकी भाषा में बताएं तो "बिजली का एक खंभा गया, अब वहां बिजली तो प्रवाहित सीधी हो रही है, विद्युत जमा केंद्रों से क्या होता है उसमें कुछ ऐसे यंत्र होते हैं जो विद्युत को अनेक जगह में प्रवाहित करते हैं, अनेक दिशाओं में अनेक गृहों तक वह धीरे-धीरे हर गृह को प्रकाशित करते हुए जाती है, क्योंकि फिर उसकी ताप में कमी आना प्रारंभ होती है। जब वह निकलती है अपने केंद्र स्थान से तो वह भीषण होती है अत्यंत भीषण ताप होता है, लेकिन जब वह बढ़ती है तो उसका ताप कम होता है और हर गृह को सीमित उसकी जरूरतों के हिसाब से विद्युत प्रवाहित करती है। सत्य है !! तो यह कार्य करती है सुषुम्ना जब उसमें गुण प्रवाहित होते हैं तो सुषुम्ना जागृत हो जाती है।सुषुप्तावस्था में बैठी हुई नाड़ी और उसके कार्य प्रारंभ होते हैं वह सभी ग्रंथियों जिसे कि आप बिंदु भी कहती हो सभी ग्रंथियों को उप ग्रंथियों को वह ऊर्जा प्रवाहित करते चलती है।सुषुम्ना के जागृत नहीं होने की वजह से कई बार ध्यानावस्था में हमें ऐसा लगता है कि हम उच्चतम स्तर तक हैं किंतु ऐसा होता नहीं ।उर्जा तो आप ध्यान करेगी तो घर्षण होता है आप करें ना करें, स्वाभाविक सी बात है चुंबकीय तत्वों से ले दो चुंबकों को आप विपरीत दिशा में रखेगी तो क्या होगा? तनाव होगा, तो ध्यानावस्था में भी तनाव का निर्माण होता है और वही तनाव घर्षण पैदा करता है और हमने उस उर्जा को मान लिया कि हम इस क्षेत्र में हैं।वह ऊर्जा तो सभी क्षेत्रों से प्रवाहित होते जाएगी, इसका अर्थ कुंडलिनी जागरण से नहीं है।ऊर्जा प्रवाहन से ऊर्जा प्रवाहित होती है प्रिय।प्रथम मर्म को समझें उस भेद को समझ ले, गुदा स्थान में जहां पर छटपटाहट प्रारंभ हो जाए मलद्वार के मध्य जो स्थान बाकी है जहां पर मूलाधार चक्र है वहां छटपटाहट प्रारंभ हो जाए या स्पंदन प्रारंभ हो जाए तो समझ लीजिए कुंडलिनी जागरण की अवस्था प्रारंभ हो चुकी है। अब कुंडलिनी जागृत होती है तो कई प्रकार की मनोदशाओं से और विचित्र और हो सकता है विभत्स दशाओं से आपको गुजरना पड़े, क्योंकि हर चक्र के अपने एक भाव है किसी चक्र का भाव उग्र है तो आप उस चक्र पर पहुंची तो आप उग्र हो जाएगी, किसी चक्र का भाव विक्षिप्त है तो आप विक्षिप्त याने पागल हो सकती है, तब तक के जब तक वह चक्र की सफाई नहीं होती तब तक आप पागलों की तरह ही बर्ताव करेंगी। किसी चक्र का स्वभाव हास्य तो आप अनंत जब तक कि उसकी सफाई नहीं होती आप हास्य ही करती रहेंगी।एक समय होता है एक दिन दो दिन तीन दिन, और सतगुरु का मार्गदर्शन रहा तो जल्दी ही चक्रों की सफाई होती है।क्योंकि जागृत अवस्था में कुंडलिनी अपने सभी भावों को प्रकट करते हुए चलती है। अब आज्ञा चक्र की, आज्ञा चक्र का स्वभाव है चमत्कार, तो वहां पर आप बेवजह सिद्धियां दिखाना या प्रवाहित होना प्रारंभ हो जाएगी।लोगों को लगेगा यह चमत्कारी हो गया और आपका पूजन प्रारंभ हो जाएगा। यह अवधूत की स्थिति है प्रिय, वहीं अटक गए वह एक रोशनी जो तुरंत जागृत हो जाती है वह भ्रम है वह ब्रह्म नहीं है, उसके फेर में नहीं पड़ना है साधकों को उसके ऊपर जाना है।अब सहस्त्रदल कमल उसकी परिणिति सौम्य है कमल की तरह एक जगह मौन धारण करके अभ्यासी उसकी सफाई होते तक वैसा ही हो जाएगा।केंद्र में जैसे पहुंचे तो उसकी अपनी एक लीला है। प्रिय इतना सहज नहीं है जब यह जागृत होती है तो सभी भावों को मनुष्य देह में जागृत करते हुए चलती है, अगर कोई इस भाव से गुजर चुका हो तो मान लीजिए कि हां फिर ठीक है कुंडलिनी जागृत हुई। किंतु इतने कितने हैं? इसलिए स्वयंमेव कुंडलिनी जागृत का सबसे सुंदर उपाय कि अनभिज्ञ अंजान एवं अज्ञानी बनकर चलते रहे, स्वयं को सतगुरु को समर्पित कर दें, क्योंकि जो समर्थ है वह आपको आपकी क्षमतानुसार बांटते हुए जाएंगे और उन्हें पता है कि वह आपको कब कितनी मात्रा में कितना देना है। अविका "कौकब काज़ी"