श्री कृष्ण कुंती और द्रौपदी की इस प्रार्थना से प्रसन्न हुए


स्टोरी हाइलाइट्स

जगद्गुरो श्रीकृष्ण! हम लोगों के जीवन में सर्वदा पद पदपर विपत्तियाँ आती रहें; क्योंकि विपत्तियों में ही निश्चित रूप से आपके दर्शन हुआ करते हैं और आपके दर्शन होनेपर फिर पुनर्जन्म का चक्र मिट जाता है।

कुंती की प्रार्थना
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विपदः सन्तु नः शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो। भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम्।। जन्मैश्वर्यश्रुतश्रीभिरेधमानमदः पुमान्। नैवार्हत्यभिधातुं वै त्वामकिञ्चन गोचरम्॥ नमोऽकिञ्चनवित्ताय निवृत्तगुणवृत्तये। आत्मारामाय शान्ताय कैवल्यपतये नमः॥

(श्रीमद्भागवत १ । ८। २५-२७) 'जगद्गुरो श्रीकृष्ण! हम लोगों के जीवन में सर्वदा पद पदपर विपत्तियाँ आती रहें; क्योंकि विपत्तियों में ही निश्चित रूप से आपके दर्शन हुआ करते हैं और आपके दर्शन होनेपर फिर पुनर्जन्म का चक्र मिट जाता है। ऊँचे कुलमें जन्म, ऐश्वर्य, विद्या- | और संपत्ति के कारण जिसका मद बढ़ रहा है, वह मनुष्य तो आपका नाम भी नहीं ले सकता; क्योंकि आप तो अकिञ्चन लोगोंको दर्शन देते हैं। आप अकिञ्चनोंके (जिनके पास कुछ भी अपना नहीं है, उन निर्धनोंके) परम धन हैं। आप मायाके प्रपञ्चसे सर्वथा निवृत्त हैं, नित्य आत्माराम और परम शान्तस्वरूप हैं। आप ही कैवल्य मोक्ष के अधिपति हैं। मैं आपको नमस्कार करती हूँ। द्रौपदी की प्रार्थना

गोविन्द द्वारिकावासिन् कृष्ण गोपीजनप्रिय।कौरवाः परिभूतां मां किं न जानासि केशव॥

(महाभारत) हे द्वारका वाले गोविंद, गोपियों के प्रिय कृष्ण! कौरवों से दुष्ट वासनाओंसे घिरी हुई मुझे क्या तुम नहीं जानते?

हे नाथ हे रमानाथ व्रजनाथार्तिनाशन। कौरवार्णवमग्नां मामुद्धरस्व जनार्दन॥

(महाभारत) हे नाथ, रमाके नाथ, बद्रीनाथ, दुःखका नाश करनेवाले जनार्दन ! में कौरव रूपी समुद्र में डूब रही हूँ। मुझे बचाओ।

कृष्ण कृष्ण महायोगिन् विश्वात्मन् विश्वभावन। प्रपन्नां पाहि गोविन्द कुरुमध्येऽवसीदतीम्॥

(महाभारत) हे विश्वात्मन्, विश्वको उत्पन्न करनेवाले महायोगी सच्चिदानन्दस्वरूप कृष्ण! हे गोविन्द ! कौरवों के बीच कष्ट पाती हुई मैं तुम्हारी शरण आयी हूँ। मुझे बचाओ।