क्या आपने कभी ईश्वर को देखा हैं ? आइये में आपको उनसे मिलाता हूँ।


स्टोरी हाइलाइट्स

  क्या आपने कभी ईश्वर को देखा हैं ? आइये में आपको उनसे मिलाता हूँ।   तुझमे रब दीखता हैं यारा में क्या करूँ... तुझमे रब दीखता हैं यारा में क्या करू..... क्या आपने कभी ईश्वर को देखा हैं ? नहीं देखा... कोई बात नही, आइये में आपको उनसे मिलाता हूँ। इतिहास की एक ऐसी हीं सत्य घटना के द्वारा आपको ईश्वर से रूबरू कराने का प्रयास है मेरा। सन 1498 की बात है, रोम के एक प्रसिद्ध मूर्तिकार थे माइकल एंजिलो। उनके जीवन की एक श्रेष्ट कलाकृति थी "मरियम और जिसस" की मूर्ती। जो आज विश्व प्रसिद्ध मूर्तियों में एक हैं। इसी मूर्ती के निर्माण सम्बन्धी इतिहास की ये एक सत्य घटना हैं माइकल एंजिलो एक नई मूर्ती बनाने हेतू पत्थर खरीदने एक दूकान पर जाते हैं। पर उन्हें वहाँ एक भी पत्थर पसंद नही आता हैं। और जब वो दूकान के बाहर निकलते हैं तो उनकी नजर दूकान के बाहर पड़े एक बड़े से पत्थर पर पड़ती हैं। वे दूकानदार से उस पत्थर के बारे में पूछते हैं। तो दूकानदार उनसे कहता हैं कि सर ये पत्थर तो बेकार अनगढ़ पत्थर है इसलिए मैंने इसे दूकान के बाहर रख दिया हैं। आप चाहे तो इसे मुफ्त में लेजा सकते हैं। माइकल एंजिलो को वह पत्थर बहुत पसंद आता हैं। और वो उस पत्थर को ले जाते हैं। दो वर्षो की मेहनत के बाद मूर्तिकार ने उस पत्थर से मरियम और जीसस की ऐसी मूर्ति बनाई जिसे उस समय की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति का सम्मान दिया गया। और वो कलाकृति आज भी विश्व प्रसिद्ध मूर्तियों में से एक हैं। एक दिन माइकल एंजिलो को वो पत्थर वाला दूकानदार मिलता है, और उनसे पूछता हैं कि सर आपने इतनी अच्छी मूर्ती बनाई हैं, पर इतना अच्छा पत्थर आपको मिला कहाँ से। तब माइकल ने कहा की भाई ये वो ही पत्थर जो तुम्हारी दूकान के बाहर पड़ा था। जिसे तुमने अनगढ़ पत्थर बोलकर मुझे मुफ्त में दे दिया। दूकानदार को बड़ा आश्चर्य हुआ और बोला की उस अनगढ़ पत्थर से आपने इतनी अच्छी मूर्ती कैसे बना डाली। तब माइकल ने कहा की भाई जब मैंने इस पत्थर को पहली बार तुम्हारी दूकान के बाहर देखा तभी मुझे इस पत्थर में मरियम और जीसस नजर आये। और मुझे ऐसा लगा की वो मुझे बार-बार कह रहे हैं कि... हमें इस पत्थर से बाहर निकालो, हमें इस पत्थर से बाहर निकालो। बस मैंने उस पत्थर में से जो अवन्छिनीय तत्व थे उन्हें छेनी हथोड़े से बाहर निकाल दिया बस, बाकी मरियम और जीसस तो इसमें पहले से ही बैठे थे। कहानी से तात्पर्य ये हैं कि "ईश्वर" संसार के कण-कण में बसा है, बस देखने वाले की नजर चाहिये। पर हमारे पास वो द्रष्टि नही, वो नजरिया नही जो उसे देख पाए। जैसे एक शेर को सामने वाला हर कोई शिकार नजर आता हैं, वैसे हीं एक सच्चे भक्त को संसार की हर चीज में भगवान् नजर आता हैं। अरे भाई दूध के कण-कण में घी है, पर कभी दीखता है? चाहे दूध को छान भी लो तो भी घी नही निकलता। दूध में से घी प्राप्त करना हो तो दूध को मंथना होगा। मंथन करने से जब दूध से सारी अशुद्धिया निकल जाएगी तब हमें घी प्राप्त होगा। बस वैसे हीं हमें हमारे इस मन का मंथन करना होगा और जिस दिन हमारे मन की सारी अशुद्धियाँ, सारे विकार, सारे राग द्वेष सभी निकल जायेंगे तब आपको खुद में क्या दूसरों में भी ईश्वर नजर आने लग जायेगा। और तब आप खुद कह उठेंगे कि... तुझमे रब दीखता हैं यारा में क्या करूँ... तुझमे रब दीखता हैं यारा में क्या करू...... राधे-राधे....   प्रस्तुतकर्ता - गोपाल अरोरा