सफलता के लिए कदम वापस खींचो …. सफलता के आध्यात्मिक नियम भौतिक नियमों से उलट क्यों है? ATUL VINOD 


स्टोरी हाइलाइट्स

सफलता के लिए कदम वापस खींचो …. सफलता के आध्यात्मिक नियम भौतिक नियमों से उलट क्यों है? Law of Success: Using the Power of Spirit to Create Health

सफलता के लिए उलटे चलो …. सफलता के आध्यात्मिक नियम भौतिक नियमों से उल्टे क्यों है?  भौतिक जगत और अध्यात्मिक जगत में सफलता के लिए अलग अलग नियम हैं| भौतिक नियम कहते हैं सफलता के लिए मेहनत करो, अध्यात्मिक नियम कहते हैं कुछ मत करो, बस मन की सुनो| भौतिक नियम कहते हैं संघर्ष करो, आध्यात्मिक नियम कहते हैं संघर्ष से कुछ नहीं मिलने वाला, संघर्ष से सिर्फ तकलीफ, दुःख और असफलता मिलेगी| सफलता संघर्ष के बिना ही मिलेगी| भौतिक नियम कहते हैं सफलता के लिए प्रयास करो, आध्यात्मिक नियम कहते हैं कि प्रयास से कुछ नहीं मिलने वाला, ना ही प्रयास करने से किसी को कुछ मिला है| सफलता के भौतिक नियम कहते हैं| लक्ष्य तय करें, लेकिन आध्यात्मिक नियम कहते हैं, लक्ष्य तय करने से कुछ नहीं होगा| आप कौन होते हैं लक्ष्य तय करने वाले? आध्यात्मिक नियम कहते हैं ईश्वर ने आपकी जिंदगी का लक्ष्य तय कर रखा है आप बस  उस लक्ष्य को पहचाने, और पहचानने की भी जरूरत नहीं वो खुद ब खुद आपके सामने आ जाएगा| भौतिक जगत का नियम कहता है कि कुछ करोगे नहीं तो पीछे रह जाओगे| लेकिन अध्यात्म कहता है कि कुछ नहीं करोगे तब भी पीछे नहीं रहोगे| और हुआ भी ऐसा, जो लोग अपने जीवन के शुरुआती दौर में बहुत आलसी और निकम्मे थे अचानक उनके सामने एक उद्देश्य प्रकट हुआ और उन्होंने कुछ ऐसा किया कि पूरी दुनिया उन्हें मरने के बाद भी याद करती रही| अध्यात्म कहता है कि आपको सफलता चाहिए तो सफलता की आशा ही छोड़ देनी चाहिए| आपको परिणाम चाहिए तो परिणाम की उम्मीद ही छोड़ देनी चाहिए| भौतिक नियम कहते हैं लड़ो और जीतो| आध्यात्मिक नियम कहते हैं कि ना लड़ो न जीतने की सोचो| वास्तव में हम सब जीवन में सफलता के लिए पैसा कमाने के लिए आगे बढ़ने के लिए क्या नहीं करते? हम लक्ष्य तय करते हैं| बड़े-बड़े सपने देखते हैं| अपने सपने पूरे करने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं| फिर भी 95 फ़ीसदी लोग सफलता से दूर रह जाते हैं| अध्यात्म कहता है कि मनुष्य जब तक अपनी बुद्धि और अहंकार के दम पर कुछ हासिल करने की कोशिश करेगा तब तक वो हारेगा| जीतने की कोशिश की हारने की तैयारी है| जो जीतने की कोशिश करेगा उसे हारने की भी तैयारी रखनी चाहिए| अध्यात्म कहता है कि आप बुद्धि और अहंकार के दम पर जितना भी संघर्ष करो, लड़ो, मेहनत करो, दिन रात एक कर दो, कोई मतलब का नहीं है| अध्यात्म कहता है कि आप कुछ मत करो,  बस अपने मन के उच्च स्तरों से जुड़ो, मन के उच्च स्तर से जुड़ने के लिए भी कुछ करने की जरूरत नहीं है|  “ना” करने से ही मन के दरवाजे खुलेंगे| जब मन का सबसे निम्न स्तर “चेतन मन” इधर-उधर नहीं भागेगा तो अचेतन मन के द्वार खुलेंगे, इसके ऊपर भी मन के स्तर है| Conscious Mind चेतन मन, Unconscious Mind अचेतन मन, Collective Unconscious Mind सामूहिक अचेतन मन, Cosmic Unconscious Mind ब्रह्म अचेतन मन, Super Conscious Mind अति चेतन मन, Collective Conscious Mind सामूहिक चेतन मन, Cosmic Conscious Mind ब्रह्म चेतन मन| मन आत्मा का प्रतिनिधि है लेकिन तब जब वो बेवजह की संघर्ष, प्रतिस्पर्धा, मेहनत, परिश्रम, दौड़ भाग से दूर है| मन के पास अपार शक्तियां है लेकिन वह शक्तियां तब प्रकट होंगी जब व्यक्ति “बुद्धि, चित्त और अहंकार” से थोड़ा हटेगा| जब व्यक्ति मन के अनुसार चलेगा, मन को मालिक बना देगा तो मन उसे सही रास्ते पर ले जाएगा, लेकिन यदि व्यक्ति ने मन को बुद्धि से कंट्रोल करने की कोशिश की तो मन उसे नीचे गिरा देगा| मन को जितना भी काबू में किया जाएगा उतना ही वह भरमायेगा| इसलिए मन को काबू में करने की बजाय ईश्वर को समर्पित कर दो| पूरी तरह से समर्पण के मोड में आ जाओ, अध्यात्म-दर्शन कहता है कि मन को मनुष्य की बुद्धि कंट्रोल नहीं कर सकती मन को तो आत्मा और परमात्मा ही संभाल सकते हैं|  मन की सीमाएं इस जन्म के भी परे हैं| मन कई जन्मो के अनुभवों से बना है जबकि बुद्धि सिर्फ इसी जन्म की पैदाइश है| इसलिए बुद्धि मन का पार नहीं पा सकती| बुद्धि नहीं समझ सकती कि मन ऐसा व्यवहार क्यों करता है? इसलिए भगवान ने भी कह दिया है कि आप सिर्फ कर्म करो| अपनी बुद्धि मत लगाओ परिणाम के पीछे मत भागो| यहाँ कर्म का अर्थ किसी खास मकसद के पीछे भागने से नहीं है यहां कर्म का अर्थ है जो भी कार्य, कर्तव्य, जिम्मेदारी आपको मिले बस उसे उसमें लिप्त हुए बगैर करते जाना| धीरे-धीरे मन आपके अंदर की छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर देता है| आपके अंदर के वास्तविक लक्ष्य को सामने ले आता है| वो लक्ष्य जो ईश्वर ने निर्धारित किया है वो लक्ष्य जो आपको प्रारब्ध से मिला है| जैसे ही वो सामने आता है, आपको मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती, फिर ना तो संघर्ष होता है, ना ही कंपटीशन| क्योंकि मन के माफिक किया जाने वाला कार्य  संगीत बन जाता है मनमर्जी के काम से व्यक्ति थकता नहीं है|  वो काम उसके लिए ईश्वर की पूजा बन जाता है उस काम में वो आनंदित होता है वही काम उसके लिए यात्रा, वही काम उसके लिए आनंद, वही काम उसके लिए ऊर्जा का स्रोत बन जाता है| इसलिए बड़े-बड़े महान चिंतक विचारक, धर्म विद व अवतारों ने एक ही बात कही अंदर की प्रेरणा को पकड़ो| उस छुपी हुई प्रतिभा को तलाश करो जो ईश्वर ने आपको जन्म के साथ दी है|  आर्टिफिशियल लक्ष्य तैयार मत करो| बाहरी आकर्षण के कारण वो बनने की मत सोचो जो आप बन नहीं सकते| इस दुनिया में जो भी ऊंचाई पर पहुंचा उसके अंदर उस ऊंचाई तक पहुंचने की स्वाभाविक “बीज” मौजूद थे| उस काम को करते वक्त उसे कभी नहीं लगा कि वो सफलता के लिए मेहनत कर रहा है| जो भी बड़ा संगीतकार बना संगीत के बीज उसके अंदर बचपन से ही अंकुरित होने लगे, जो वैज्ञानिक बना उसके अंदर रिसर्च का स्वभाविक गुण मौजूद था| जो नेता बना उसके अंदर बचपन से ही नेतृत्व का गुण था| इसलिए बच्चों को भी उसकी स्वाभाविक प्रतिभा के अनुसार ही विकसित होने की सलाह दी जाती है| ना तो खुद कुछ बनने की कोशिश करो, किसी को कुछ बनाने की कोशिश करो| अध्यात्म कहता है कि आप जो हो, जैसे हो, सबसे पहले वैसे ही रहने की कोशिश करो| यदि आपने अपने ऊपर अनेक तरह के आर्टिफिशियल आवरण ओढ़ रखे हैं तो उन सबको निकाल फेंको अपने स्वाभाविक आनंद को पहचानो| जो काम आपको अच्छा लगता है वो करो| मन जो जो कहता है वो करते जाओ| यकीन मानिए आपसे आपका मन कभी गलत काम नहीं कराएगा| मन कभी आपको गलत रास्ते पर ले जाता है जब उसका दमन और शोषण हुआ हो| प्रारब्ध के कुसंस्कार भी गलत कामों में मन को लिप्त करते हैं, यदि कोई गलत संस्कार अंदर है तो वो बाहर निकलेगा ही व्यक्ति को अच्छे बुरे भोग भोगने ही होंगे| इसलिए वासना के संस्कार से भरे व्यक्ति को आप भली महामंडलेश्वर बना दें उसका मन कभी न कभी उसके भोग के अवसर तलाश लेगा| उसे वो मजबूरन करवा देगा जो वो नहीं चाहता था| मन का दमन आपने किया हो| आपके पैरेंट्स ने किया हो, आपके आसपास के लोगों ने या शिक्षकों ने| चाहे मन दमन से बिगड़ा हो या गलत कर्मो से पैदा हुए कुसंस्कारों से| मन अपना काम करके रहेगा| हम उसे रोक नहीं सकते बस उसे ईश्वर को सौंप कर, उससे अच्छे की उम्मीद करके ही बुरे परिणामो से बचा जा सकता है|  भौतिक और आध्यात्मिक जगत के  सफलता के नियमों में अंतर दिखाई देता है| भौतिक जगत के नियम कुछ “करने” पर जोर देते हैं और आध्यात्मिक जगत के नियम “होने” पर जोड़ देते हैं| भौतिक जगत कहता है कि “करो” और आध्यात्मिक जगत कहता है कि “होने” दो| भौतिक जगत कहता है कि मेडिटेशन करो और आध्यात्मिक जगत कहता है कि मेडिटेशन होने दो| होने दो पर हमारा भरोसा नहीं है क्योंकि हमारा भरोसा परमात्मा पर नहीं है| लेकिन आप अपनी जिंदगी को गहराई से देखेंगे तो पाएंगे कि आपने जो जो करने की  कोशिश की है उनमें से बहुत कम के नतीजे आपके अनुकूल मिले हैं|  कभी कभार, कभी इत्तेफाक से, आपके करने की फ्रीक्वेंसी, “होने” से जुड़ गई तो आपको नतीजे अच्छे मिल गए| वरना तो आपके करने और प्रकृति के होने के बीच संघर्ष ही हुआ है, और इसी वजह से इस दुनिया में इतनी ज्यादा हताशा, निराशा और परेशानियां है|