आइए जानें, अंतिम संस्कार करने के बाद जरूरी क्यों होता है स्नान करना


स्टोरी हाइलाइट्स

हम सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में हर कोई पंडित है जहां एक तरफ बड़े-बड़े विद्वान हैं, वहीं दूसरे ओर तर्क किसी भी प्रकार की बातें सिद्ध करने में माहिर हैं

आइए जानें, अंतिम संस्कार करने के बाद जरूरी क्यों होता है स्नान करना हम सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में हर कोई पंडित है जहां एक तरफ बड़े-बड़े विद्वान हैं, वहीं दूसरे ओर तर्क किसी भी प्रकार की बातें सिद्ध करने में माहिर हैं इतना ही नहीं हमारे सनातन धर्म भी कुछ नियमों पर ध्यान देता है। ऐसा ही एक नियम है कि अंतिम संस्कार के बाद स्नान बहुत आवश्यक है। बहुत से लोग हिन्दू धर्म को सनातन धर्म से अलग मानते हैं। वे कहते हैं कि हिन्दू नाम तो विदेशियों ने दिया। पहले इसका नाम सनातन धर्म ही था। फिर कुछ कहते हैं कि नहीं, पहले इसका नाम आर्य धर्म था। कुछ कहते हैं कि नहीं, पहले इसका नाम वैदिक धर्म था। हालांकि इस संबंध में विद्वानों के भिन्न भिन्न मत है। वहीं ये भी बताते चलें कि इस धर्म में कई सारे नियम व रिति रिवाज है जिसे लोग वर्षों से अपनाते ही रहते है। आप सभी को पता ही होगा कि हमारे हिन्दू धर्म में कहा गया है कि शवयात्रा में सम्मिलित होने और दाह संस्कार के अवसर पर उपस्थित रहने से, व्यक्ति को कुछ देर के लिए ही सही, लेकिन जीवन की सत्यता का आभास होता है। वहीं ये बात भी सच है कि जब श्मशान जाने के आध्यात्मिक लाभ हैं, तो वहां से आकर तुरंत स्नान करने की आवश्यकता क्या है? इतना ही नहीं कई सारे ऐसे प्रश्न हैं तो अधिकतर लोगों के मन में आता ही होगा पर इसके पीछे का कारण किसी को नहीं पता होता है तो आज हम आपको इसी के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके पीछे परंपरा के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण क्या हैं ? तो सबसे पहले बात करते हैं धार्मिक कारण की तो बता दें कि ये श्मशान भूमि पर निरंतर शवदाह जैसे ही कार्य होते रहने से वहां एक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बन जाता है इतना ही नहीं ये ऐसी जगह है जो कमजोर मनोबल के व्यक्ति को हानि पहुंचा सकता है। इसके अलावा ये भी बताते चलें कि स्त्रियां पुरुषों के अपेक्षाकृत अधिकतम भावुक होती हैं इसलिए उन्हें श्मशान भूमि पर आने-जाने से रोका जाता है। शास्त्रों में ये भी बता दें कि दाह संस्कार के बाद भी मृतआत्मा का सूक्ष्म शरीर कुछ समय तक वहां उपस्थित रहता है, जो अपनी प्रकृति के अनुसार कोई हानिकारक प्रभाव भी डाल सकता है। वहीं अब बात करें कि वैज्ञानिक कारणों की तो मृतशरीर का अंतिम संस्कार होने से पहले ही वातावरण सूक्ष्म और संक्रामक अणु-कीटाणुओं से ग्रसित हो जाता है। इतना ही नहीं ये भी बता दें कि मृत व्यक्ति भी किसी संक्रामक रोग से ग्रसित रहा हो सकता है। इसके अलावा आपको बताते चलें कि जिस कारण वहां पर उपस्थित लोगों पर किसी संक्रामक रोग का प्रभाव होने की संभावना रहती है। स्नान कर लेने से संक्रामक कीटाणु आदि पानी के साथ ही बह जाते हैं। दरअसल जब कोई भी जलती चिता के आगे खड़ा रहता है तो उसके शरीर की नकारात्मक ऊर्जा पिघल जाती है। इतना ही नहीं शमशान में ही सम्भव है क्योकी शवदाह के स्थान पर मंगल और शनि की ऊर्जा बहुत होती है जिसके फल स्वरूप हमारे शरीर की नकारात्मक ऊर्जा पिघल जाती है।