"लोग क्या कहेंगे", सबसे बड़ी बीमारी -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

"लोग क्या कहेंगे", सबसे बड़ी बीमारी -दिनेश मालवीय इन्सान एक सामाजिक प्राणी है. उसे सामाजिक मान्यताओं, आचरणों, व्यवहारों तथा लोकाचारों का ध्यान चाहे-अनचाहे रखना ही पड़ता है. समाज की व्यवस्था क़ायम रखने में सामाजिक लोक लाज की बहुत बड़ी भूमिका रही है. अनेक गलत कहे और समझे जाने वाले काम लोग लोक लाज के डर से करते और न करते रहे हैं. लेकिन हर बात के दो पहलू तो होते ही हैं. समाज कभी इस तरह से व्यवहार करता है, जो समझ से परे तो होता ही है, साथ ही लोगों की प्रगति में बाधा बनता है. पहले वाली स्थिति तो ठीक है और सामाजिक व्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए आवश्यक है, लेकिन  दूसरी वाली बात पर तो जितना कम ध्यान दिया जाए, उतना ही अच्छा है. इसी के कारण "लोग क्या कहेंगे" को एक बीमारी कहा जाने लगा. इस सन्दर्भ में पुराणों में एक कथा आती है. इसे बाद के समय में बदलाव कर कुछ  दूसरे ढंग से भी कहा जाने लगा. कथा के अनुसार, एक बार भगवान शंकर और माँ पार्वती अपने वाहन नंदी पर सवार होकर कहीं जा रहे थे. रास्ते में उन्हें कुछ लोग मिले. उन लोगों ने उन्हें नाम रखते हए कहा कि देखो कितने  क्रूर लोग हैं. बेचारे एक नंदी पर दो-दो सवार होकर जा रहे हैं. शंकरजी ने यह सुना तो वह नंदी से नीचे उतर गये. उमा जी नंदी पर सवार रहीं. कुछ दूर चलकर कुछ लोग मिले, जो कहने लगे की यह कैसा जोरू का गुलाम है. खुद पैदल चलकर पत्नी को नंदी पर सवार किये हुए है. माता पार्वती को यह बात बहुत बुरी लगी. वह तत्काल नीचे उतर गयीं और शंकरजी से नंदी पर सवार होने का आग्रह करने लगीं. मजबूर होकर शंकरजी नंदी पर बैठ गये और उमा देवी पैदल चलने लगीं. कुछ दूर ही चले थे कि उन्हें कुछ और लोगों का दल मिला. उसमें से कुछ लोगों ने इसे नारी के सम्मान के विरुद्ध बतलाते हुए कहा कि यह कैसा व्यक्ति है, खुद नंदी पर सवार होकर मज़े से चला जा रहा है और पत्नी बेचारी पैदल चल रही है. धिक्क्कार है ऐसे आदमी पर. इस बात को सुनकर शंकरजी नीचे उतर कर उमा के साथ पैदल चलने लगे. कुछ दूरी पर और लोग मिले. उन्होंने उनकी खिल्ल्ली उड़ाते हुए कहा कि वाहन साथ है, फिर भी पैदल चल रहे हैं. भगवान् लोगों के इस व्यवहार पर मुस्कुरा कर उमा से बोले कि इस संसार को संतुष्ट करना तो मेरे भी वश में नहीं है. संसार की यही रीत है. यह सुन्दर-से-सुंदर चीज में भी दोष ढूँढ लेता है. लिहाजा संसार की सुनने से अच्छाहै कि अपने मन की बात मानी जाए. लोकमान्यता, लोक रीति आदि की बात अपनी जगह सही है, लेकिन"लोग क्या कहेंगे" के चक्कर में ऐसे काम करने से नहीं रुकना चाहिएजिसे आप सही समझते हैं या जो आपके हित में हो.