लोकपर्व गोगा नवमी विशेष


स्टोरी हाइलाइट्स

गुग्गा पूजन का एक खास महत्व है. सांपों व नागों का सौ मण जहर पीने के कारण उन्हें जाहरपीर की संज्ञा भी दी जाती है. आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है।

आज यानी 13 अगस्त को गोगा नवमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। गोगा नवमी का त्योहार कई राज्यों में मनाया जाता है। यह त्योहार राजस्थान का लोक पर्व है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी यह विशेष तौर पर मनाया जाता है। गोगा नवमी पर गोगा देव (श्री जाहरवीर) का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि गोगा देव की पूजा करने से सांपों से रक्षा होती है। गोगा देव की पूजा श्रावणी पूर्णिमा से आरंभ हो जाती है तथा यह पूजा-पाठ 9 दिनों तक चलता है यानी नवमी तिथि तक गोगा देव का पूजन किया जाता है इसलिए इसे गोगा नवमी कहते हैं। गोगा देव महाराज से संबंधित एक किंवदंती के अनुसार गोगा देव का जन्म नाथ संप्रदाय के योगी गोरक्षनाथ के आशीर्वाद से हुआ था। योगी गोरक्षनाथ ने ही इनकी माता बाछल को प्रसाद रूप में अभिमंत्रित गुग्गल दिया था जिसके प्रभाव से महारानी बाछल से गोगा देव (जाहरवीर) का जन्म हुआ। यह पर्व बहुत ही श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर बाबा जाहरवीर (गोगाजी) के भक्त अपने घरों में इष्टदेव की वेदी बनाकर अखंड ज्योति जागरण कराते हैं तथा गोगा देवजी की शौर्य गाथा एवं जन्म कथा सुनते हैं। इस प्रथा को जाहरवीर का जोत कथा जागरण कहा जाता है। कई स्थानों पर इस दिन मेले लगते हैं व शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। निशानों का यह कारवां कई शहरों में पूरी रात निकलता है। इस दिन भक्त अपने घरों में जाहरवीर पूजा और हवन करके उन्हें खीर तथा मालपुआ का भोग लगाते हैं। श्री गोगा नवमी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैंं। गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे जाहरवीर गोगा जी के नाम से भी जाना जाता है। वीर गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परमशिष्य थे। चौहान वीर गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चूरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज से हांसी (हरियाणा) तक था। लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है।   वीर गोगाजी की कथा :- गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरुष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी नि:संतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरु गोरखनाथ गोगामेडी के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण में गईं तथा गुरु गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।  गुग्गा पूजन :- गुग्गा पूजन का एक खास महत्व है. सांपों व नागों का सौ मण जहर पीने के कारण उन्हें जाहरपीर की संज्ञा भी दी जाती है. आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ति उत्कीर्ण की जाती है। उत्तर भारत में लोग रोटी, चावल, या सेवइयां घी और चीनी, कुछ पैसों के साथ, स्वस्तक बना कर, पूजा कर के, जल की चूली छोड़कर, किसी सफाईवाले को दे देते हैं। लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। पूरे भारतवर्ष की जनता उनके गुणों की गाथा खुश होकर गाया करती थी। प्राचीन समय से चली आ रही यह परंपरा आज भी उसी तरह से कायम है। मुसलमान भी गुग्गावीर के चमत्कारों की गाथा सुनकर उन्हें पीर पैगंबर की तरह पूजते हैं। गुग्गा मेडियों पर सेवियां, आटे के सांप बना कर चढ़ाने के साथ ही गूगल धूप के साथ कच्ची लस्सी का छींटा भी दिया जाता है। गोगा नवमी के दिन ऐसे करें पूजन :- भाद्रपद कृष्ण नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर रोजमर्रा के कामों से निवृत्त होकर खाना आदि बना लें।भोग के लिए खीर, चूरमा, गुलगुले आदि बना लें। जब महिलाएं वीर गोगा जी की मिट्टी की बनाई मूर्ति लेकर आती हैं तब इनकी पूजा होती है। मूर्ति आने पर रोली, चावल से तिलक लगाकर बने हुए प्रसाद का भोग लगाएं। कई स्थानों पर तो गोगा देव की घोड़े पर चढ़ी हुई वीर मूर्ति होती है जिसका पूजन किया जाता है।गोगा जी के घोड़े के आगे दाल रखी जाती है।ऐसा माना जाता है कि रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों को जो रक्षासूत्र (राखी) बांधती हैं, वह गोगा नवमी के दिन खोलकर गोगा देव जी को चढ़ाई जाती है। गोगा नवमी के संबंध में यह मान्यता है कि पूजा स्थल की मिट्टी को घर में रखने से सर्पभय नहीं रहता है। ऐसा माना जाता है कि वीर गोगा देव अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। भाद्रपद कृष्ण नवमी को मनाया जाने वाला गोगा नवमी का यह त्योहार काफी प्रसिद्ध है। पंकज पाराशर