महाभारत: खास रहस्यमयी पात्र, फिर भी नहीं जानते लोग..


स्टोरी हाइलाइट्स

महाभारत हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। इसे पांचवां वेद भी कहा जाता है। महाभारत की कथा में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कई पात्र जुड़े हुए थे। हर किसी का अपना अलग ही महत्व था। जिनमें से कई पात्रों से तो आप जानते हैं, लेकिन आज हम आपको महाभारत के कुछ ऐसे पात्रों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे-

महाभारत हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। इसे पांचवां वेद भी कहा जाता है। महाभारत की कथा में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कई पात्र जुड़े हुए थे। हर किसी का अपना अलग ही महत्व था। जिनमें से कई पात्रों से तो आप जानते हैं, लेकिन आज हम आपको महाभारत के कुछ ऐसे पात्रों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में बहुत कम ही लोग जानते होंगे- युयुत्सु-  एकमात्र कौरव जिसने युद्ध में दिया था पांडवों का साथ कई लोग धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों का बारे में ही जानते हैं, लेकिन वास्तव में धृतराष्ट्र के सौ नहीं एक सौ एक पुत्र थे। धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम युयुत्सु था। धृतराष्ट्र को यह पुत्र एक दासी से प्राप्त हुआ था। जब गांधारी गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र की सेवा के लिए दासी नियुक्त की गई थी। उस दासी से ही युयुत्सु का जन्म हुआ था। धृतराष्ट्र पुत्र होने के कारण युयुत्सु भी एक कौरव था, लेकिन वह अन्य कौरवों की तरह अधर्मी और पापी नहीं था। वह धर्म को जानता था। युद्ध शुरू होने से पहले युधिष्ठिर ने रणभूमि के बीच खड़े होकर कौरव सेना के सैनिकों से पूछा था, क्या शत्रु सेना का कोई भी वीर पांडवों के पक्ष से युद्ध करना चाहता है। तब धृतराष्ट्र पुत्र युयुत्सु कौरवों का पक्ष छोड़कर पांडवों के पक्ष में आ गया था। कुरूक्षेत्र के युद्ध में पांडव पक्ष का साथ देने की वजह से युद्ध समाप्त होने पर केवल यहीं एक कौरव जीवित बचा था। विकर्ण-  कौरव होकर भी इन्होंने किया था द्रौपदी के चीरहरण का विरोध विकर्ण धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों में से एक था। धृतराष्ट्र और गांधारी के सभी पुत्र दुष्ट और बुरे आचरण वाले थे, लेकिन विकर्ण उनसे अलग था। चाहे कुरूक्षेत्र के युद्ध में उसने कौरवों का साथ दिया था, लेकिन वह सही और गलत में अंतर जानता था। युधिष्ठिर जुए में धन-संपत्ति के साथ-साथ अपने परिवार और अपनी पत्नी द्रौपदी तक को हार गया था। जिसकी वजह से द्रौपदी पर दुर्योधन का अधिकार हो गया था। भरी सभा में कौरवों द्वारा द्रौपदी का अपमान किया गया, लेकिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणार्चाय किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया। तब केवल विकर्ण ने इस अर्धम का विरोध किया था। वह बार-बार दुर्योधन, दुःशासन सहित सभी कौरवों को यह अधर्म करने से रोक रहा था, लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी और आगे चलकर यहीं अपमान कौरवों के विनाश का कारण बना। पुरोचन-  जिसने किया था पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण पुरोचन धृतराष्ट्र का मंत्री था। धृतराष्ट्र का मंत्री होने के साथ-साथ वह दुर्योधन का गुप्तचर भी था। पांडवों की जासूसी करने में और उनके लिए बाधाएं पैदा करने में वह दुर्योधन का साथ देता था। जब धृतराष्ट्र ने पांडवों को वारणावत जाने का आदेश दिया था, तब दुर्योधन ने वारणावत में पुरोचन की सहायता से एक ऐसा भवन बनवाया था जो की लकड़ी, घास आदि शीघ्र जलने वाले पदार्थों से बना था। साथ ही उस महल पर घी, तेल, लाख मिली हुई मिट्टी का लेप लगाया गया था। ताकि दुर्योधन वारणावत में सभी पांडवों और उनकी माता कुंती को जला कर मार सके। पुरोचन ने अपनी योग्यता से ऐसे ही भवन का निर्माण किया था। ज्वलनशील पदार्थों से बना होने पर भी उस भवन को देखकर इस बात का पता नहीं लगाया जा सकता था। संजय-  महल में बैठकर ही दिव्य दृष्टि से देखा था पूरा युद्ध कहने को तो संजय धृतराष्ट्र का सारथी था, लेकिन वास्तव में वह धृतराष्ट्र का केवल सारथी ही नहीं बल्कि उसका सलाहकार भी था। संजय ने हमेशा ही धृतराष्ट्र को उसके हित की सलाह दी थी। धृतराष्ट्र पूरे युद्ध का साक्षात वृतान्त सुनना चाहता था। उसकी इस इच्छा को पूरा करने के लिए महर्षि वेदव्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी। ताकि वह पूरे युद्ध का साक्षात वृतान्त धृतराष्ट्र को सुना सके। संजय युद्ध समाप्त होने के बाद धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती आदी के साथ ही वन में चले गए थे।