महर्षि भरद्वाज-इस परम ज्ञाता ऋषि ने ने दुष्टों के सामने न झुकने की शिक्षा दी -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

महर्षि भरद्वाज इस परम ज्ञाता ऋषि ने ने दुष्टों के सामने न झुकने की शिक्षा दी -दिनेश मालवीय भारत के महान ऋषियों की परम्परा में महर्षि भरद्वाज का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता हैं. भगवान श्रीराम स्वयं अपनी अर्धांगनी भगवती सीता और भाई लक्षमण के साथ इनके आश्रम पर पर पधारे थे. यह आश्रम आज भी प्रयाग में गंगा के पास ही स्थित है, जहाँ जाकर आज भी बहुत शान्ति मिलती है. भरद्वाजजी ऋग्वेद के छठवें मंडल के दृष्टा हैं. इस मंडल में 763 मंत्र हैं. अथर्ववेद में भी उनके 23 मंत्र मिलते हैं. वह देवगुरु बृहस्पति और माता ममता की संतान थे. यह ऋषि व्याकरणशास्त्र, धर्मशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, राजशास्त्र, अर्थशास्त्र, धनुर्वेद, आयुर्वेद और भौतिकविज्ञान के परम ज्ञाता थे. महर्षि भरद्वाज ने इंद्र से व्याकरण शास्त्र की शिक्षा प्राप्त. इस विद्या को व्याख्या के साथ अनेक ऋषियों को पढ़ाया. “ऋकतंत्र” और “ऐतरेय” ब्रब्राह्मण में भी इसका उल्लेख है. आचार्य चरक के अनुसार भरद्वाज ने इंद्र से आयुर्वेद भी पढ़ा था. अपने इसी अध्ययन के आधार पर उन्होंने “आयुर्वेदसंहिता” की रचना की. महर्षि भरद्वाज ने महर्षि भृगु से धर्मशास्त्र का उपदेश लिया और “भरद्वाज स्मृति” की रचना की. महाभारत के शान्तिपर्व में इसका उल्लेख है. पांचरात्र भक्ति संप्रदाय में माना जाता है कि इस सम्प्रदाय की “भरद्वाज संहिता” की रचना भी उनके द्वारा की गयी थी. महाभारत के अनुसार महर्षि भरद्वाज ने “धनुर्वेद” पर उपदेश दिया था. उन्होंने “राजशास्त्र” का प्रणयन भी किया था. कोटिल्य ने अपने से पहले हुए अर्थशास्त्रियों में उनका सम्मान के साथ उल्लेख किया है. भरद्वाजजी ने “यंत्रसर्वस्व” नामक एक बृहद ग्रंथ की रचना की. इस ग्रंथ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने “विमानशास्त्र” के नाम से प्रकाशित कराया. इस ग्रंथ में ऊँचे स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए उपयोग में आने वाली धातुओं का वर्णन है. भरद्वाजजी के विषय में तैत्तरीय ब्राह्मण में एक रोचक घटना का वर्णन मिलता है.  इसके अनुसार भरद्वाज ने सभी वेदों का अध्ययन करने का प्रयत्न किया. उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति और कठोर तपस्या से इंद्र को प्रसन्न किया. ऋषि ने इंद्र से सौ वर्ष की आयु माँगी. वह निरंतर अध्ययन करते रहे. सौ वर्ष पूरे होने पर उनकी लगन को देखकर इंद्र ने उनसे फिर वर मांगने को कहा. उन्होंने फिर सौ वर्ष की आयु माँग ली. अध्ययन का क्रम चलता रहा. इसके बाद फिर सौ वर्ष का जीवन माँगा. इस तरह वह तीन सौर वर्ष तक अध्ययन में संलग्न रहे. फिर इंद्र ने कहा कि यदि मैं तुम्हें सौ वर्ष की आयु और दूँ, तो तुम उसका क्या करोगे? भरद्वाज ने कहा कि अध्ययन ही करूँगा. मैं वेदों का अध्ययन करूँगा. इंद्र ने उसी वक्त बालू के तीन पहाड़ खड़े कर दिए. फिर उनमें से एक मुट्ठी रेत हाथ में लेकर कहा कि समझो कि ये तीन वेद हैं और तुम्हारा तीन सौ वर्ष का अध्ययन मुट्ठी भर रेत है. वेद अनंत हैं. तुमने तीन सौ वर्ष तक अध्ययन कर जो जाना है, उससे न जाना हुआ बहुत अधिक है. लिहाजा, मेरी बात को ध्यान से सुनो-“ अग्नि सभी विद्याओं का स्वरूप है. अत: अग्नि को ही जानो. उसे जान लेने पर सब विद्याओं का ज्ञान अपने आप हो जाएगा.” फिर इंद्र ने उन्हें सावित्रय-अग्नि-विद्या का विधिवत ज्ञान कराया. भरदवाज ने उस अग्नि को जानकार उससे अमृत-तत्व प्राप्त किया और स्वर्गलोक में जाकर आदित्य से सायुज्य प्राप्त किया. ब्राह्मण ग्रंथों में उन्हें सबसे अधिक लम्बी आयु वाला ऋषि माना गया है. भरद्वाज ने “सामगान” को देवताओं से प्राप्त किया. ऋग्वेद के दसवें मंडल के अनुसार वैसे तो सभी ऋषियों ने यज्ञ का परम गूढ़ ज्ञान प्राप्त किया, जो बुद्धि की गुफा में गुप्त था. लेकिन भरद्वाज की श्रेष्ठता और विशेषता सबसे अलग है. उन्होंने इस ज्ञान को आत्मसात किया. उनकी गणना साम-गायकों, गोतम, वामदेव, और कश्यप के साथ की जाती है. महर्षि भरद्वाज कहते हैं कि-“ अग्नि को देखो. यह मरणधर्मा मनुष्यों में मौजूद अमर ज्योति है. यह सभी मनुष्यों में विराजमान है. यह अग्नि मानव को ऊपर उठने के लिए प्रेरित करती है. वह कहते हैं कि हम झुकें नहीं. हम सामर्थ्यवान के आगे भी न झुकें. दृढ़ व्यक्ति के सामने भी नहीं झुकें. क्रूर-दुष्ट-हिंसक-दस्यु के आगे भी हमारा सिर नहीं झुकना चाहिए”. वह कहते हैं कि जीभ से ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि सुनने वाला बुद्धिमान बने. हमारी विद्या ऐसी हो, जो कपटी, दुष्टों का सफाया करे, युद्धों में संरक्षण दे, इच्छित धन की प्राप्ति करवाए और हमारी बुद्धि को निन्दित मार्ग पर जाने से रोके. इस प्रकार महर्षि भरद्वाज के विचार से विद्या वही है, जो सबका पोषण करे, कपटी-दुष्टों का नाश करे, हमारा ह्रदय शुद्ध रखे और वांछित अर्थ प्राप्त करने के योग्य बनाए. वह कहते हैं कि प्रजाजनों को उत्तम ज्ञान दो और जो दास हैं, सेवक हैं, उनको अच्छा नागरिक बनाओ. ज्ञानी, विज्ञानी, शासक, कुशल योद्धा और राष्ट्र को अभय प्रदान करने वाले महर्षि भरद्वाज ऐसे ही तेजस्वी ऋषि हैं.