महर्षि गुत्समद -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

महर्षि गुत्समद -दिनेश मालवीय महर्षि गृत्समद का नाम बहुत से लोग नहीं जानते होंगे. लेकिन यह हमारी ऋषि परम्परा के आकाश में एक बहुत दैदीप्यमान नक्षत्र हैं. ऋग्वेद के दूसरे मंडल के दृष्टा इन ऋषि के विषय में ऋग्वेद, अथर्ववेद, ऐतरेय ब्राह्मण, महाभारत और गणेशपुराण में बहुत रोचक आख्यान मिलते हैं.  इनके अनुसार, महर्षि गृत्समद ऋषि शुनहोत्र के पुत्र थे. इनका नाम शौनहोत्र रखा गया था, लेकिन इंद्र के प्रयास से शुनक ऋषि के दत्तक पुत्र के रूप में इनकी प्रसिद्धि हुयी और वह शौनक “गृत्समद” के नाम से विख्यात हो गये. “गृत्स” का अर्थ है प्राण और “मद” का अर्थ है अपान. इस तरह प्राणापान का समन्वय ही गृत्समद तत्व हैं. ऋग्वेद का दूसरा मंडल “गात्सर्मद मण्डल” कहलाता है. ऐसा विवरण पाया जाता है कि वे अपनी इच्छा के अनुसार रूप धारण कर देवताओं की सहायता करते थे. असुरों से उनकी रक्षा करते थे. एक बार वह कोई बड़ा यज्ञ कर रहे थे. महर्षि का प्रिय करने के लिए देवताओं के राजा इंद्र ख़ुद यज्ञ में उपस्थित हुए. असुर देवताओं से द्वेष रखते थे. धुनि और चुमुरि नाम के दो बलशाली असुरों ने वहाँ हमला कर दिया. महर्षि गृत्समद ने इंद्र की रक्षा के लिए अपने तपोबल से ख़ुद को दूसरे इंद्र के रूप में परिवर्तित कर दिया. देखते ही देखते वह असुरों की नज़र से ओझल हो गये. असुरों ने सोचा कि इंद्र उनके डर से गायब हो गये हैं. लिहाजा वह इन्द्र्रूपधारी गृत्समद को ढूँढने लगे. वह कभी अन्तरिक्ष में दिखाई देते तो कभी द्युलोक में. दोनो असुरों को उन्होंने खूब छकाया और आखिर मेंम उन्हें बतलाया कि वह इंद्र नहीं हैं. असली इंद्र तो यज्ञ स्थल पर ही है. पहले तो असुरों को भरोसा ही नहीं हुआ. महर्षि ने मंत्रों से इंद्र की कीर्ति, पराक्रम और गुणों का गुणगान किया. यह असुरों के लिए वज्र की तरह सिद्ध हुआ. उनका नैतिक बल ख़त्म हो गया. महर्षि का ऐसा तपोबल देखकर इंद्र बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने उन्हें अपना प्रिय मित्र बना लिया. उन्हने अक्षय तप, वाक्सिद्धि, मंत्र-शक्ति और अखंड भक्ति का वर प्रदान किया. गणेश पुराण के अनुसार गृत्समद भगवान गणेश के अनन्य भक्त थे. उन्होंने हजरों वर्ष तक तपस्या कर गणेशजी को प्रसन्न किया और उनसे अनेक वरदान प्राप्त किये. ऋग्वेद के “गातसर्मद मण्डलमें 43 सूक्त हैं, जिनमें इंद्र, अग्नि, आदित्य, मित्रावारूं, वरुण, विश्वदेव और मरुत की स्तुतियाँ हैं. इंद्र और महर्षि की मित्रता के वृतांत भी हैं. इस मण्डल में विश्व के सभी जीवों के कल्याण की प्रार्थना की गयी है.                                                                            9826530455                                                                     dkashk07@gmail.com