मरने के बाद ऐसे मिलती है अधर्म-पाप की सज़ा -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

मरने के बाद ऐसे मिलती है अधर्म-पाप की सज़ा -सनातन धर्म में पुनर्जन्म को माना गया है. व्यक्ति मरने के बाद अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों......

मरने के बाद ऐसे मिलती है अधर्म-पाप की सज़ा -दिनेश मालवीय सनातन धर्म में पुनर्जन्म को माना गया है. व्यक्ति मरने के बाद अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में जन्म लेता है. आजकल तो आधुनिक शोध करने वालों ने भी यह मान लीया है कि संसार में लगभग 84 लाख प्रकार के जीव होते हैं. इन्हें ही सनातन धर्म में लख चौरासी यानी चौरासी लाख योनिय कहा गया है. मरने पर व्यक्ति के साथ क्या जाता है, इस विषय पर बहुत कुछ कहा गया है. साहिर लुधियानवी का एक बहुत प्रसिद्ध गीत है,जिसमें कहा गया है कि, “कोई न संग मरे”. इस एक काव्यांश में शास्त्रों का सारांश छुपा है. ब्रह्मपुराण में मुनियों और भगवान् वेद व्यास के बीच धर्म और अधर्म सहित बहुत से गूढ़ विषयों पर बहुत रोचक संवाद है. मुनियों ने धर्म और अधर्म में लगे मनुष्यों की मरने के बाद गति के बारे में जिज्ञासा की. उन्होंने पूछा कि यह बताइये कि पिता, माता, पुत्र, गुरु, जातिबंधु, रिश्तेदार और मित्र, इनमें से कौन मरने वाले का सहायक होता है. लोग तो मृतक को चिता में जलाकर चल देते हैं. उसके बाद मृतक का क्या होता है? व्यासजी ने कहा कि प्राणी अकेला ही जन्म लेता है, अकेला ही मरता है, अकेला ही दुर्गम संकटों को पार करता है अकेला ही दुर्गति में पड़ता है. उपरोक्त में से कोई भी उसका साथ नहीं देता. सिर्फ एक चीज उसके साथ रहती है और वह है धर्म. वह अकेला उसके साथ जाता है. लिहाजा धर्म ही सच्चा सहायक है. मनुष्य को हमेशा धर्म का सेवन करना चाहिए, जिससे उसे उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है. इसी तरह धर्म का पालन नहीं करने वाला मनुष्य दुर्गति को प्राप्त होता है. मुनियों ने पूछा कि शरीर किन तत्वों का समूह है. मनुष्य का मरा हुआ शरीर तो स्थूल से सूक्ष्म भाव को प्रतप्त हो जाता है. दिखाई नहीं देता. फिर धर्म किस तरह उसके साथ जाता है? व्यासजी ने कहा कि पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, तेज, मन, बुद्धि और आत्मा सदा साथ रहकर धर्म पर नज़र रखते हैं. वे सभी अच्छे-बुरे कर्मों के साक्षी रहते हैं. जब शरीर से प्राण निकल जाता है, तब त्वचा, हड्डी,मांस, वीर्य और रक्त भी शरीर को छोड़ देते हैं. किसको कौन सी योनि मुनियों ने पूछा कि किस तरह के जीव को कौन सी योनियाँ मिलती हैं? व्यासजी ने बताया कि पराई स्त्री से सम्भोग करने वाला मनुष्य पहले भेड़िया होता है. उसके बाद कुत्ता, सियार, गीध, सांप, कौवा और बगुला बनकर जन्म लेता है. जो पापात्मा अपनी भाभी पर मोहित होकर उसके साथ बलात्कार करता है, वह मरने के बाद एक वर्ष तक नर-कोकिल रहता है. मित्र, गुरु और राजा की पत्नी के साथ समागम करने वाला कामात्मा पुरुष मरने के बाद सूअर बनता है. वह पांच वर्ष तक सूअर रहकर फिर दस वर वर्ष तक बगुला, तीन महीने तक चींटी अरु एक मॉस तक कीट की योनि में रहता है. इन सभी योनियों में जन्म लेने के बाद वह फिर कृमि यानी कीड़ा बनकर जन्म लेता है और चौदह माह इसी योनि में रहता है. इस तरह अपने पापों का फल भोगकर वह फिर मनुष्य योनि में जन्म लेता है. जो मनुष्य देवकार्य या पितृकार्य न करके देवताओं और पितरों को संतुष्ट किये बिना मर जाता है, वह कौवा बनकर जन्म लेता है. सौ वर्षों तक इस योनि में रहकर वह मुर्गा बनकर जन्मता है. इसके बाद एक माह तक सर्प योनि में निवास्कर फिर मनुष्य जन्म लेता है. जो  मनुष्य पितातुल्य बड़े भाई का अपमान करता है, वह मरने के बाद क्रोंच योनि में जन्म लेता है और दस वर्ष तक ऐसा ही रहता है. इसके बाद वह फिर मनुष्य बनता है.  दही की चोरी करने से मनुष्य बगुला और मेंढक बनता है. फल, फूल अथवा पूआ चुराने से चींटी, जल की चोरी करने से कौवा और कांसा चुराने से हरियल पक्षी बनता है. चांदी का बर्तन चुराने वाला कबूतर और सोने का पात्र चुराने वाला कृमि योनि में जन्म लेता है. व्यासजी ने विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को चुराने वाले को जो योनियाँ प्राप्त होती हैं, इस विषय में विस्तार से बताया. व्यासजी ने आगे बताया कि जो व्यक्ति किसी निहत्थे व्यक्ति की ह्त्या करता है, वह मरने पर गधा बनता है. इस योनि में दो वर्ष रहकर वह शस्त्र द्वारा मारा जाता है. इसके बाद वह मृग योनि में एक वर्ष रहकर वाण का शिकार बनकर मर जाता है. इसके बाद वह मछली की योनि में जन्म लेकर जाल में फांस लिया जाता है. इसके बाद वह चार महीने बीतने पर शिकारी कुत्ते के रूप में जन्म लेता है. वह दस वर्ष तक कुत्ता रह्कर पांच वर्ष तक व्यग्र योनि में रहता है. पाप क्षीण हो जाने पर वह फिर मनुष्य बनता है. जो मनुष्य विश्वासपूर्वक रखी हुयी किसी धरोहर को हड़प लेता है, वह मरने के बाद मछली की योनिमें जन्म लेता है. पापों का क्षय होजाने पर वह फिर मनुष्य होता है. लेकिन मानव योनि में उसकी आयु बहुत कम होती है. व्यासजी ने कहा कि मनुष्य पाप करके तिर्यगयोनि में जाता है, जहाँ उसे धर्म का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता. जो मनुष्य पाप करके व्रतों द्वारा उसका प्रायश्चित करता है, उसे सुख और दुःख दोनों मिलते हैं. लोभ-मोह से युक्त पापाचारी व्यक्ति म्लेच्छ योनियों में जन्मता है. जो लोग जन्म से ही पाप का परित्याग करते हैं, वे स्वस्थ, रूपवान और धनी होते हैं. ये सभी नियम स्त्रियों पर भी लागू होते हैं. जीव तो सिर्फ जीव होता है. स्त्री और पुरुष के भेद शारीरिक हैं. आत्मा के स्तर पर ऐसा कोई भेद नहीं होता. लिहाजा, स्त्री हो या पुरुष, पाप करने के दंड एक जैसे मिलते हैं.