स्‍मारक: ताजमहल का इतिहास


स्टोरी हाइलाइट्स

ताजमहल-  संगमरमर में तराशी गई एक कविता। आकर्षण और भव्‍यता, अनुपम, ताजमहल पूरी दुनिया में अपनी प्रकार का एक ही है। एक महान शासक का अपनी प्रिय रानी के प्रति प्रेम का यह अद्भुत शाहकार है। बादशाह शाहजहां के सपनों को साकार करता यह स्‍मारक 1631 ए. डी. में निर्मित दुनिया के आश्‍चर्यों में से एक है। इसे बनाने में 22 वर्ष का समय लगा। इस अद्भुत मकबरे को पूरा करने में यमुना के किनारे लगभग 20 हजार लोगों ने जुट कर काम किया। ताजमहल का सबसे मनमोहक और सुंदर दृश्‍य पूर्णिमा की रात को दिखाई देता है।

ताजमहल-  संगमरमर में तराशी गई एक कविता। आकर्षण और भव्‍यता, अनुपम, ताजमहल पूरी दुनिया में अपनी प्रकार का एक ही है। एक महान शासक का अपनी प्रिय रानी के प्रति प्रेम का यह अद्भुत शाहकार है। बादशाह शाहजहां के सपनों को साकार करता यह स्‍मारक 1631 ए. डी. में निर्मित दुनिया के आश्‍चर्यों में से एक है। इसे बनाने में 22 वर्ष का समय लगा। इस अद्भुत मकबरे को पूरा करने में यमुना के किनारे लगभग 20 हजार लोगों ने जुट कर काम किया। ताजमहल का सबसे मनमोहक और सुंदर दृश्‍य पूर्णिमा की रात को दिखाई देता है। इतिहास-  संगमरमर के इस अद्भुत शाहकार का निर्माण श्रेय मुगल शासक शाहजहां को जाता है, जिन्‍होंने अपनी प्रिय पत्‍नी अर्जुमद बानो बेगम की याद में इस मकबरे को खड़ा कराया था, जिन्‍हें हम मुमताज़ महल के नाम से जानते हैं और इनकी मृत्‍यु ए एच 1040 (ए डी 1630) में हुई। अपने पति से उन्‍होंने अंतिम इच्‍छा व्‍यक्‍त की थी की उनकी याद में एक ऐसा मकबरा बनाया जाए जैसा दुनिया ने पहले कभी न देखा हो। इसलिए बादशाह शाहजहां ने परी लोक जैसी कहानियों में बताए गए संगमरमर के इस भवन का निर्माण कराने का निर्णय लिया। ताजमहल का निर्माण ए. डी. 1632 में शुरू हुआ और उसे बनाने का काम 1648 ए डी में पूरा हुआ। ऐसा कहा जाता है कि इस भवन को पूरा करने के लिए सत्रह वर्ष तक लगातार 20,000 लोग काम करते रहें और उनके रहने के लिए दिवंगत रानी के नाम पर मुमताज़ा बाद बनाया गया, जिसे अब ताज गंज कहते हैं और यह भी इसके नजदीक निर्मित किया गया था। अमानत खान शिराजी ताजमहल का केली ग्राफर था, उसका नाम ताज के द्वारा में से एक अंत में तराश कर लिखा गया है। कवि गयासु‍द्दीन ने मकबरे के पत्‍थर पर इबारतें लिखी हैं, जबकि इस्‍माइल खान अफरीदी ने टर्की से आकर इसके गुम्‍बद का निर्माण किया। मुहम्‍मद हनीफ मिस्त्रियों का अधीक्षक था। ताजमहल के डिज़ाइनर का नाम उस्‍ताद अहमद लाहौरी था। इसकी सामग्री पूरे भारत और मध्‍य एशिया से लाई गई तथा इस सामग्री को निर्माण स्‍थल तक लाने में 1000 हाथियों के बेड़े की सहायता ली गई। इसका केन्‍द्रीय गुम्‍बद 187 फीट ऊंचा है। इसका लाल सेंड स्‍टोन फतेहपुर सिकरी, पंजाब के जसपेर, चीन से जेड और क्रिस्‍टल, तिब्‍बत से टर्कोइश यानी नीला पत्‍थर, श्रीलंका से लेपिस लजुली और सेफायर, अरब से कोयला और कोर्नेलियन तथा पन्‍ना से हीरे लाए गए। इसमें कुल मिलाकर 28 प्रकार के दुर्लभ, मूल्‍यवान और अर्ध मूल्‍यवान पत्‍थर ताजमहल की नक्‍काशी में उपयोग किए गए थे। मुख्‍य भवन सामग्री, सफेद संगमरमर जिला नागौर, राजस्‍थान के मकराना की खानों से लाया गया था। प्रवेश द्वार-  ताजमहल का मुख्‍य प्रवेश दक्षिण द्वार से है। यह प्रवेश द्वार 151 फीट लम्‍बा और 117 फीट चौड़ा है तथा इसकी ऊंचाई 100 फीट है। यहां पर्यटक मुख्‍य प्रवेश द्वार के बगल में बने छोटे द्वारों से मुख्‍य परिसर में प्रवेश करते हैं। मुख्‍य द्वार-  यह मुख्‍य द्वार लाल सेंड स्‍टोन से बनाया हुआ 30 मीटर ऊंचाई का है। इस पर अरबी लिपि में कुरान की आयते तराशी गई हैं। इसके ऊपर छोटे गुम्‍बद के आकार का मंडप हिन्‍दु शैली का है और अत्‍यंत भव्‍य प्रतीत होता है। इस प्रवेश द्वार की एक मुख्‍य विशेषता यह है कि अक्षर लेखन यहां से समान आकार का प्रतीत होता है। इसे तराशने वालों ने इतनी कुशलता से तराशा है कि बड़े और लम्‍बे अक्षर एक आकार का होने जैसा भ्रम उत्‍पन्‍न करते हैं। यहां चार बाग के रूप में भली भांति तैयार किए गए 300 x 300 मीटर के उद्यान हैं जो पैदल रास्‍ते के दोनों ओर फैले हुए हैं। इसके मध्‍य में एक मंच है जहां से पर्यटक ताज की तस्‍वीरें ले सकते हैं। ताज संग्रहालय-  उपरोक्‍त उल्लिखित मंच की बांईं ओर ताज संग्रहालय है। मूल चित्रों में यहां उस बारीकी को देखा जा सकता है कि वास्‍तुकला में इस स्‍मारक की योजना किस प्रकार बनाई। वास्‍तुकार ने यह भी अंदाजा लगाया था कि इस इमारत को बनने में 22 वर्ष का समय लगेगा। अंदरुनी हिस्‍से के आरेख इस बारीकी से कब्रों की स्थिति दर्शाते हैं कि कब्रों के पैर की ओर वाला हिस्‍सा दर्शकों को किसी भी कोण से दिखाई दे सके। मस्जिद और जवाब-  ताज की बांईं ओर लाल सेंड स्‍टोन से बनी हुई एक मस्जिद है। यह इस्‍लाम धर्म की एक आम बात है कि एक मकबरे के पास एक मस्जिद का निर्माण किया जाता है, क्‍योंकि इससे उस हिस्‍से को एक पवित्रता नीति है और पूजा का स्‍थान मिलता है। इस मस्जिद को अब भी शुकराने की नमाज़ के लिए उपयोग किया जाता है। ताज की दांईं ओर एक दम समान मस्जिद बनाई गई है और इसे जवाब कहते हैं। यहां नमाज़ अदा नहीं की जाती क्‍योंकि यह पश्चिम की ओर है अर्थात मक्‍का के विपरीत, जो मुस्लिमों का पवित्र धार्मिक शहर है। इसे सममिति बनाए रखने के लिए निर्मित कराया गया था। बाह्य सज्‍जा-  ताजमहल अपने आप में एक ऊंचे मंच पर बनाया गया है। इसकी नींव के प्रत्‍येक कोने से उठने वाली चार मीनारे मकबरे को पर्याप्‍त संतुलन देती हैं। ये मीनारे 41.6 मीटर ऊंची हैं और इन्‍हें जानबूझकर बाहर की ओर हल्‍का सा झुकाव दिया गया है ताकि भूकंप जैसे दुर्घटना में ये मकबरे पर न गिर कर बाहर की ओर गिरे। ताजमहल का विशाल काय गुम्‍बद असाधारण रूप से बड़े ड्रम पर टिका है और इसकी कुल ऊंचाई 44.41 मीटर है। इस ड्रम के आधार से शीर्ष तक स्‍तूपिका है। इसके कोणों के बावजूद केन्‍द्रीय गुम्‍बद मध्‍य में है। यह आधार और मकबरे पर पहुंचने का केवल एक बिंदु है, प्रवेश द्वार की ओर खुलने वाली दोहरी सीढियां। यहां अंदर जाने के लिए जूते निकालने होते हैं या आप जूतों पर एक कवर लगा सकते हैं जो इस प्रयोजन के लिए यहां उपस्थित कर्मचारियों द्वारा आपको दिए जाते हैं। ताज की अंदरुनी सज्‍जा-  इस मकबरे के अंदरुनी हिस्‍से में एक विशाल केन्‍द्रीय कक्ष, इसके तत्‍काल नीचे एक तहखाना है और इसके नीचे शाही परिवारों के सदस्‍यों की कब्रों के लिए मूलत: आठ कोनों वाले चार कक्ष हैं। इस कक्ष के मध्‍य में शाहजहां और मुमताज़महल की कब्रें हैं। शाहजहां की कब्र बांईं और और अपनी प्रिय रानी की कब्र से कुछ ऊंचाई पर है जो गुम्‍बद के ठीक नीचे स्थित है। मुमताज महल की कब्र संगमरमर की जाली के बीच स्थित है, जिस पर पर्शियन में कुरान की आयतें लिखी हैं। इस कब्र पर एक पत्‍थर लगा है जिस पर लिखा है मरकद मुनव्‍वर अर्जुमद बानो बेगम मुखातिब बह मुमताज महल तनीफियात फर्र सानह 1404 हिजरी (यहां अर्जुमद बानो बेगम, जिन्‍हें मुमताज़ महल कहते हैं, स्थित हैं जिनकी मौत 1904 ए एच या 1630 ए डी को हुई)।   शाहजहां की कब्र पर पर्शियन में लिखा है - मरकद मुहताहर आली हजरत फिरदौस आशियानी साहिब - कुरान सानी सानी शाहजहां बादशाह तब सुराह सानह 1076 हिजरी (इस सर्वोत्तम उच्‍च महाराजा, स्‍वर्ग के निवासी, तारों मंडलों के दूसरे मालिक, बादशाह शाहजहां की पवित्र कब्र इस मकबरे में हमेशा फलती फूलती रहे, 1607 ए एच (1666 ए डी)) इस कब्र के ऊपर एक लैम्‍प है, जो जिसकी ज्‍वाला कभी समाप्‍त नहीं होती है। कब्रों के चारों ओर संगमरमर की जालियां बनी है। दोनों कब्रें अर्ध मूल्‍यवान रत्‍नों से सजाई गई हैं। इमारत के अंदर ध्‍वनि का नियंत्रण अत्‍यंत उत्तम है, जिसके अंदर कुरान और संगीतकारों की स्‍वर लहरियां प्रतिध्‍वनित होती रहती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जूते पहनने से पहले आपको कब्र का एक चक्‍कर लगाना चाहिए ताकि आप इसे सभी ओर से निहार सकें।