MP: सारणी में एफजीडी लगाने के नाम पर 360 करोड़ से अधिक खर्च करने की तैयारी... गणेश पाण्डेय


स्टोरी हाइलाइट्स

भोपाल: मध्य प्रदेश पावर जेनरेटिंग कंपनी लिमिटेड सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारणी की इकाई क्रमांक 10 एवं 11 में एफजीडी (फ्लू गैस डिसल्फ्राईजेशन ) संयंत्र लगाने के

 MP: सारणी में एफजीडी लगाने के नाम पर 360 करोड़ से अधिक खर्च करने की तैयारी... गणेश पाण्डेय गणेश पाण्डेय भोपाल: मध्य प्रदेश पावर जेनरेटिंग कंपनी लिमिटेड सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारणी की इकाई क्रमांक 10 एवं 11 में एफजीडी (फ्लू गैस डिसल्फ्राईजेशन ) संयंत्र लगाने के लिए 305 करोड़ और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन नियंत्रण पर 65 करोड़ रूपया खर्च करने की तैयारी कर ली है. कंपनी ने इस आशय का प्रस्ताव तैयार कर ऊर्जा विभाग को भेज दिया है. संयंत्र लगाने के पीछे दावा किया गया है कि इससे खतरनाक सल्फर डाइऑक्साइड को रोकने में मदद मिलेगी. हालांकि विशेषज्ञ इस पर होने वाले खर्च को फिजूलखर्ची मान रहे हैं. सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारणी से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड गैस से न केवल स्थानीय लोग श्वास की बीमारी से बीमार हो रहे हैं बल्कि उनकी खेती की जमीन भी बंजर होने लगी है. पूर्व में बैतूल जिले के कलेक्टर रहे अरुण भट्ट ने एक सर्वे कराया था जिसमें सवा सौ किसानों की जमीन की उर्वरा शक्ति समाप्त होती जा रही है. कोयला से चलने वाले किसी भी प्लांट में धुएं के साथ सल्फर डाइऑक्साइड गैस बारिश में जब पानी में घुलती है तो सल्फ्यूरिक एसिड बन कर जमीन पर गिरता है, जो जमीन की उर्वरता कम करता है. वहीं किसी भी जीव व वनस्पति के लिए भी हानिकारक है. सल्फर डाइऑक्साइड गैस के प्रभाव को कम करने के लिए कंपनी ने 305 करोड़ रुपए खर्च कर एफजीडी संयंत्र लगाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है. कंपनी के अफसरों का दावा है कि संयंत्र लगाए जान से जमीन को बंजर होने से बचाया जा सकता है. हाल फिलहाल तो इकाई क्रमांक 10 और 11 में प्रदूषण रोकने के लिए ईएसपी स्थापित किया गयाा है, जिस पर ₹20 करोड़़ की राशि खर्च कर दी गई. प्रदूषण नियंत्रण के लिए इकाई के मांग 6 और 7 में भी एसपी स्थापित किए गए हैं. बीएसपी के संधारण पर पिछले 3 सालों में 5 करोड़ की राशि खर्च की जा चुकी है. * विदेशी लावी के दबाव में बना प्रस्ताव पूर्व अतिरिक्त मुख्य अभियंता पावर जनरेटिंग कंपनी राजेंद्र अग्रवाल संयंत्र लगाने के पक्षधर नहीं है. अग्रवाल का कहना है कि कंपनी ने विदेशी लाबी के दबाव में एफजीडी संयंत्र खरीदने का प्रस्ताव बनाया है. उनका मानना है कि मध्य प्रदेश के कोयले में सल्फर की मात्रा बहुत कम होती है. कंपनी ने अभी यही सोच नहीं कराया कि सारणी में कोयला जलाने से सल्फर ऑक्साइड की मात्रा कितनी है ? वैसे ही सारणी में 830 मेगावाट उत्पादन करने वाली इकाइयां बंद पड़ी हुई है. * कहां फैल रहा है ख़तरा ? नासा सैटेलाइट तस्वीरों और आंकड़ों से पता चला है कि 97% SO2 उत्सर्जन वहां पर है जहां कोयला बड़ी मात्रा में जलाया जा रहा है. ऐसे सभी हॉटस्पॉट भारत के थर्मल पावर प्लांट वाले इलाके हैं. सिंगरौली, कोरबा, झारसुगुड़ा, कच्छ, चेन्नई, रामागुंडम, चंद्रपुर और कोराड़ी इसके प्रमुख केंद्र हैं. SO2 उत्सर्जन के मामले में तमिलनाडु सबसे ऊपर है. उसके बाद उड़ीसा, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र का नंबर है. * बारिश में हो जाती है खतरनाक सल्फर डाइऑक्साइड पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रहे एनजीओ सार्थक के सचिव लक्ष्मी चौहान ने कहा कि कोयला से चलने वाले किसी भी प्लांट में धुएं के साथ सल्फर डाइऑक्साइड होता है. खास करके बारिश में जब यह गैस पानी में घुलती है तो सल्फ्यूरिक एसिड बन कर जमीन पर गिरता है जो जमीन की उर्वरता कम करता है वहीं किसी भी जीव व वनस्पति के लिए भी हानिकारक है. सभी पॉवर प्लांट जो थर्मल है उनमें यह सिस्टम लगनी चाहिए. *क्या है SO2 और क्यों है यह ख़तरनाक ? यह गैस कोयला आधारित बिजलीघरों, उद्योगों और वाहनों के इंजन में जलने वाले ईंधन से निकलती है. वायु प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार गैसों में SO2 का अहम रोल है क्योंकि इसकी वजह से आंख, नाक, गले और सांस की नलियों में तकलीफ होती है. इसका सबसे बड़ा असर अस्थमा के मरीज़ों और बच्चों पर पड़ता है.इसके अलावा SO2 गैस उत्सर्जन के कुछ ही घंटों के भीतर सल्फर के अन्य प्रकारों में बदल कर पार्टिकुलेट मैटर (जिसे PM भी कहा जाता है) की संख्या को तेजी से बढ़ाता है. इसकी वजह से PM 2.5 जैसे हानिकारक कणों का स्तर हवा में और तेज़ी से बढ़ता है जिसका असर दिल्ली और एनसीआर समेत देश के तमाम हिस्सों में बहुत अधिक दिख रहा है.