मुकेश अम्बानी का पोता पैदा होते ही खरबपति- भाग्य या कर्म: दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

Mukesh Ambani's grandson of the world's richest. The great thing is that he has become a billionaire since he was born.....

मुकेश अम्बानी का पोता पैदा होते ही खरबपति- भाग्य या कर्म दिनेश मालवीय दुनिया के सबसे अमीरों में शुमार मुकेश अम्बानी के यहाँ पोता हुआ है. बड़ी बात यह है कि वह पैदा होते ही खरबपति हो गया है. इसके विपरीत कई बच्चे ऐसे घरों में पैदा होते हैं, जिनके यहाँ खाने के लाले होते हैं. कुछ बच्चे तो ऐसे परिवारों में जन्म लेते हैं, जिनके पास घर ही नहीं होता. इसे उसका भाग्य कहेंगे या कर्म? दरअसल भाग्य और कर्म सिर्फ शब्द अलग हैं, दोनों का मतलब एक ही है. भारतीय धर्म-दर्शन में इन दोनों को एक ही माना गया है. जो लोग इस विषय के मर्म को नहीं जानते, वे ही भ्रमित होते रहते हैं. जिसे भाग्य कहते हैं, वह व्यक्ति द्वारा पूर्व में किये गये कर्मों का ही फल होता है. जीवन में कोई भी चीज बिना किसी कारण के नहीं होती. यह सवाल उठाता है कि मुकेश अम्बानी जैसे लक्ष्मीपुत्रों और झुग्गी-झोपड़ी वाले परिवारों में जन्म लेने वाले बच्चों ने क्या कर्म किये हैं? यह सवाल भी उनके ही मन में उठता है, जो जीवन को सिर्फ वर्तमान शरीर की जीवन अवधि में सीमित मानते हैं. वे ऐसा समझते हैं कि जीवन जन्म से लेकर मरण तक सीमित है. न जन्म से पहले कुछ था और न जन्म के बाद कुछ होगा. यह विचारधारा बहुत उथली है, जिसमें धर्म और जीवन के रहस्यों की समझ पूरी तरह नदारद है. हमारे जन्मे से पहले भी हम थे और मरने के बाद भी हम रहेंगे. सच पूछा जाए, तो मृत्यु जैसी कोई चीज अस्तित्व में ही नहीं है. हर चीज केवल स्वरूप बदलती है. गूढ़ सत्यों को सीधा-सीधा कहा ही नहीं जा सकता.  इसलिए उन्हें कथा-कहानियों, रूपकों और प्रतीकों में कहा जाता है. मसलन भगवतगीता में कहा ज्ञा है कि जिस प्रकार मनुष्य पुराने कपड़ों को त्यागकर नये कपड़े पहनता है, उसी प्रकार एक शरीर को त्यागकर दूसरा शरीर ग्रहण करता है. मनुष्य शरीर ही नहीं संसार की कोई भी चीज नष्ट नहीं होती, केवल उसका रूप बदलता है. हम ज़रा गहराई से सोचकर देखें कि किसी व्यक्ति का जन्म किसी ख़ास जगह, किसी ख़ास परिवार और परिवेश में, किसी ख़ास तरह की स्धारीरिक संरचना के साथ क्यों होता है. इसके पीछे कोई तर्कसम्मत कारण भी है या फिर सबकुछ अराजकता में हो रहा है. एक बहुत बड़ी बात यह समझने की यह है कि हर बच्चा अपने साथ कुछ ख़ास तरह की प्रवृत्तियां लेकर पैदा होता है. एक ही माता-पिता के कई बच्चे होते हैं, लेकिन सबकी प्रवृत्ति, रुझान और स्वभाव अलग-अलग होते हैं. हमारे शास्त्रों के अनुसार हम आज जो जीवन जी रहे हैं, हमारे सामने जो परिस्थितियाँ हैं और हमारे साथ या आसपास जो लोग हैं, इनका निर्धारण हमारे पूर्व जन्मों में किये गये कर्मों का परिणाम है. हमारा आगे का जीवन हमारे द्वारा आज किये जाने वाले कर्मों के आधार पर निश्चित होगा. यह एक अकाट्य तथ्य है. कोई इसे माने या न माने, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. इसके अलावा यह भी कोई नहीं कह सकता कि आज जो व्यक्ति बहुत सुख-सुविधाओं में जी रहा है, वह सदा ऐसे ही जीता रहेगा. ऐसा भी नहीं है कि आज जो व्यक्ति बहुत अभावों में जी रहा है, वह जीवन भर ऐसे ही जीता रहेगा. ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी. यह सब कर्मों के आधार पर होता है. हमारे तत्वदृष्टा ऋषियों ने भाग्य की जो अवधारणा दी है, वह पूरी तरह वैज्ञानिक है. यह कोई सैद्धांतिक बात या कल्पना की उड़ान नहीं है. उन्होंने ध्यान और समाधि में जीवन के गहरे सत्य को जाना था. उन्होंने अपने निष्कर्षों को अनेक तरह से व्यक्ति किया. यह बात और है कि हम इन्हें समझ पाएँ या नहीं. भाग्य और कर्म एक ही बात है. भारितीय जीवन-दर्शन के अनुसार जीवन में 99 प्रतिशत बातें पहले से निर्धारित हैं. सिर्फ एक प्रतिशत हमारे हाथ में है. लेकिन यह एक प्रतिशत भी इतना सार्थक और सशक्त है कि इसमें पूर्व निर्धारित भाग्य को भी बदलने की ताकत है.