ब्रह्माँड के रहस्य -57 यज्ञ विधि, सोम -1


स्टोरी हाइलाइट्स

We will talk about one of the methods of Somayag and another important method, the Soma Ahitans. feeling of "Somaras",...............

सोमयाग में सोमवल्ली का स्थान                                           ब्रह्माँड के रहस्य -57,                                                              यज्ञ विधि, सोम -1 रमेश तिवारी हम सोमयाग की विधियों में से एक और महत्वपूर्ण विधि सोम आहूतियों पर बात करेंगे। सोम की बात आते ही देवताओं के पेय "सोमरस" का भान होना भी स्वाभाविक है। लेकिंन हम आज से कुछ दिनों तक निरंतर इसी विषय पर बहुत व्यापक बातचीत कर बूझे - अबूझे सभी प्रश्नों के समाधान करेंगे। समाज में आम धारणा है कि देवतागण सोमरस पीते थे। यहां तक तो ठीक है। परन्तु ऐसे लोग तो वे हैं जो कि सोमरस का मतलब ही नहीं समझते। सोमरस का मतलब उनके लिये बस मदिरा से ही है। मित्रो सोमरस हेय नहीं था। हां मादक तो था किंतु मदिरा नहीं, जो कि बुद्धि और विवेक को समाप्त कर दे। ऋग्वेद और सामवेद में यज्ञों के विवरण के साथ ही सोमलता का उल्लेख बहुतायत में आता है। यज्ञों के तीनों सवनों (पारियों) में देवताओं के सोमपान का उल्लेख है। सोमरस के बनाने की विधि और फिर उसको छक कर पान करने की बातें भी हैं। किंतु यहां हमको मदिरा और सोमरस के बीच के भेद को भी समझना होगा। मदिरा बुद्धि और विवेक को समाप्त करती है जबकि सोमरस ऊर्जा, स्फूर्ति और शक्ति प्रदान करता था। सोम और सोमरस के महत्व को समझने के लिये हमको और भी गंभीर होना पडे़गा। सोम थी क्या बला! मित्रो हम बहुत दिनों से अग्नि और सोम की बातें करते आ रहे हैं। इतना तो आप समझ ही गये होंगे कि सोम, आक्सीजन है। वैदिक भाषा में आक्सीजन को पवमान वायु कहते हैं। यह आक्सीजन संपूर्ण ब्रह्माँड में व्याप्त है। हमारे शरीर में भी। आक्सीजन ही प्राणवायु है। यही गायत्री भी है। यही सोम पृथ्वी को वाराह बनकर नष्ट होने से बचा रही है। इस प्रकरण पर हम बहुत सुंदर चर्चा कर चुके हैं। सोम ही चंद्रमा है। सोम ही ओजोन परत है। हमारा कथ्य है कि सोम था क्या.? सोमलता कैसी होती थी। कहां होती थी। आदि। सोम यदि चंद्रमा है तो, क्या औषधियों के राजा चंद्रमा से, सोमलता का कोई संबंध है। हम उसी दिशा में चल रहे हैं। हम बात करते आ रहे हैं यज्ञ विज्ञान की। यज्ञ के माध्यम से यजमान की आत्मा को विष्णु धाम तक पहुंचाने की विधियों की। हमने अभी तक बहुत सी विधियों पर चर्चा कर ली। एक से एक कठिन विधियों पर। फिर अब यह कौनसी विधि और बची है, जिसमें कि सोमलता की आवश्यकता पड़ती है। बात ठीक। प्रश्न उचित है। उत्तर मिलना भी अभीष्ट है। बात कुछ यूं है कि- मनुष्य अभी तक यजमान बनने के लिये क्वालीफाई नही हुआ है। यज्ञ में यजमान बनने की टेस्टिंग प्रक्रिया में ही है। क्वलीफाई होने के लिये, अभी तो उसको सोमयाज की सभी प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। यज्ञ पूर्व की प्रक्रियाओं को पूरा करने के टेस्ट जैसा ही है सोमयाग। अभी तो मजमान को सोम (सोमलता) को क्रय करना है, किंतु सोम को क्रय करना इतना आसान है.? सोम (आक्सीजन, चंद्रमा) को सार्वभौम कहा है। अतः यह नाम राशि सोम (लता) भी तो सार्वभौम हुआ। सार्वभौम सम्राट से भी बड़ा होता है। अतः सोम का सम्मान है। गुण के कारण भी। हमको बहुत गहन छानबीन करना होगी। सोमलता मिलती कहां थी। क्रय कैसे किया जाता था। और कैसे लाई जाती थी। उल्लेख मिलता है कि सोमलता जिसको सोमवल्ली भी कहा जाता है। भुवन त्रिलोकी में स्वर्ग में पर्वतों पर पत्थरों पर फैलती थी। हम उन पर्वतों का पता उठा कर ही चैन की सांस लेंगे।कितु तब तक हम एक ऐसे बालक ऋषि की बात सुन लेते हैं। क्या कहते हैं सोम की महत्ता के संबंध में। ऐतरेय ऋषि के पिता महीदास, एतरेय के शिशु रहते ही दिवंगत हो गये थे। तब महीदास की इतरा नामी पत्नी ने उस शिशु को पाला। 15 वर्ष की आयु में ऐतरेय विलक्षण रूप से विद्वान हो गये। हां हम ऐतरेय द्वारा कहे गये श्लोक का अर्थ देखते है! सोमयज्ञ, सोम परमेष्ठि (हमारा मुख क्षेत्र) की वस्तु है। या मानलो ब्रह्माँड में सूर्य के ऊपर की पवमान वायु। यह रोदसी के अग्नि (पृथ्वी या हमारे पेट) में हुत (आहूति की तरह) होता रहता है। इसी से सारे विश्व का (शरीर) संचालन हो रहा है। इसकी अंतिम अवस्था का नाम विष्णु है। और यही तो यज्ञ का स्वरुप है। सोमवल्ली का चंद्रमा से संबंध, और माता के गर्भ में मनुष्य शरीर के अंगों के निर्माण में क्या संबंध है। सोमरस कैसे बनाया जाता था। एक, एक बात पर व्यापक चर्चा करेंगे। आज बस यहीं तक, तो मिलते हैं, तब तक विदा. धन्यवाद ।