ब्रह्माँड के रहस्य -15 फिजिक्स और कैमिस्ट्री


स्टोरी हाइलाइट्स

ब्रह्माँड के रहस्य -15--------------------------- फिजिक्स और कैमिस्ट्री

रमेश तिवारी 
ब्रह्माँड में बहुत ही मनोरम दृश्य हैं। वहां चंद्रमा भी यज्ञ कर रहा होता है। दिति और अदिति, विष्णु, वरूण और ध्रुव भी सक्रिय रहते हैं। वर्षा ऋतु में जब मेघ गरजते हैं। काले और सफेद बादल अंधकार का रूप लेकर टकराते हैं। "घन घमंड नभ गरजत घोरा"। तब हम भयभीत हो जाते हैं। उस समय मनोहारी दृश्य उपस्थित होते हैं। अपसरायें नृत्य करतीं हैं । मानों दोनों रंगों के मेघों की टकराहट से निर्मित घृष्याग्नि ( बिजली ) तड़कती, फड़कती,विभिन्न मुद्राओं में नृत्य करती पृथ्वी पर गिर रही है। गिरती भी है। यह बिजली किस पर गिरेगी! इस प्रशंसा और परिहास का श्रोत भी आकाशीय बिजली है। सप्तरंगी इंद्रधनुष कितना सुखद होता है। इन सब पर भी हम संगीतमयी व्याख्या करेंगे। अभी हम वैदिक विज्ञान में फिजिक्स और कैमिस्ट्री की आध्यात्मिक व्याख्या कर लें ।

ब्रह्म और यज्ञ। फिजिक्स और कैमिस्ट्री। कैसे? भारतीय विज्ञान, इन्हीं दो भागों में विभक्त है। ब्रह्म मौलिक तत्व है। और यज्ञ! यौगिक तत्व। यही दोनों हमारे विज्ञान के फिजिक्स और कैमिस्ट्री हैं। संसार में जो दिखाई दे रहा है, दृश्य पदार्थ है, वह संपूर्ण यज्ञ है। यौगिक तत्व है। और जिससे यह दृश्य उपस्थित हुआ है, वह ब्रह्म है। ब्रह्म अति सूक्ष्म है-दृष्टिगोचर नहीं है। इंद्रियागोचर है। अप्रत्यक्ष है। गंध, रस, रूप, स्पर्शादि से रहित है। मौलिक तत्व का आंखों से प्रत्यक्ष हो ही नहीं सकता। आधुनिक विज्ञान गंधक को मौलिक तत्व मानता है, उसके बारे में वैदिक विज्ञान का ठोस मत है। वैदिक विज्ञान कहता है -यज्ञ ही मौलिक तत्व है। गंधक जैसी दृश्य वस्तु नहीं। वैदिक विद्वान कहते हैं कि यज्ञ ही का प्रत्यक्ष होता है! ब्रह्म का नहीं। यह यज्ञ..'याग 'और 'योग' दो प्रकार का होता है।

जो पदार्थ मिलकर भी अपने स्वरूप से स्थिर रहे। जिससे मिले, उस सहित स्वयं का स्वरूप भी नष्ट न हो। वह 'याग 'कहलाता है। जैसे वस्त्र और रंग। रंगाई होने के बाद भी वस्त्र और रंग भिन्न दिखाई देता है । कपडे़ को धुलवा दीजिए, तो वस्त्र पुनः सफेद हो जायेगा। किंतु जब दो वस्तु मिलकर तीसरी वस्तु में बदल जायेंगी तब..! दोनों वस्तुओं के प्रथम स्वरूप वापस नहीं लौटेंगे। दोंनों के पहले स्वरूप नष्ट हो चुके हैं..! जैसे 'बारूद '। "सोरा और कोयला " दोनों के मेल से बारूद बनी है। अब न इसमें आपको शोरा ही उपलब्ध हो सकता है न कोयला । उपरोक्त क्रिया ही रासायनिक क्रिया कहलाती है।
                                         ब्रह्माँड के रहस्य -15

"आत्मा "को "अव्ययाक्षर समष्टि "के अभिप्राय से "त्रैधातव्य " बतलाया गया है। इन तीनों में से जो क्षर है..वह वह -आत्म, विकार और यज्ञ, भेदेन है। अर्थात् आत्मा के उक्त तीन भेद हैं। ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, अग्नि और सोम,यह पांच अक्षर ( तत्व )हैं । बस अक्षर के साथ इन्हीं पांचों कलाओं को अपने में रखने वाला जो आत्म अक्षर है..! उससे ब्रह्मादि के क्रम से प्राण, आप, वाक्, अन्नाद,अन्न यह पांच विकाराक्षर उत्पन्न होते हैं। यही पांचों पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश नाम से प्रसिद्ध हैं। यही पांचों ( वैदिक )मौलिक तत्व हैं। इन्हीं विकाराक्षर (तत्वों) को प्राण आदि कहते हैं। मौलिक तत्व ब्रह्मादि के रुप हैं। ब्रह्माँड हैं। इन्ही पांचों की आहूति, इन्ही पांचों में होती है। इनसे यौगिक तत्वों ( महाभूतों ) की उत्पत्ति होती है, जिन्हे हम "यज्ञक्षर"कहते हैं।

वैदिक विज्ञान में इन्हीं तत्वों की खोज करके जीबीएस प्रक्रिया तय की गई। इस जीबीएस यंत्र को साधारण मत लीजिये। यह एक ऐसा यंत्र ( मंत्र )है जिसके माध्यम से यज्ञ कर्ता की आत्मा का सीधा संबंध आकाशीय पदार्थ श्री विष्णु हरि से करा दिया जाता है। इसके पीछे हजारों शोध हुए हैं। हम इन शोधों और परिणामों पर चर्चा करते रहेंगे।

मित्रो, हम चंद्रमा के यज्ञ का आंखों देखा हाल बतायेंगे। चंद्रमा किस गति से प्रति माह ( 28 ) दिन में सूर्य की चिरौरी करता है|     बतायेंगे। सूर्य के रथ का विशाल पहिया कैसा है? कैसे और कहाँ से घूमता है। पृथ्वी और आकाश कैसे एक दूसरे का आलिंगन करते हैं। वैदिक भाषा के शब्द "हरिज्जन, क्षितिजवृत्त जिसको आधुनिक विज्ञान 'होराइजन कहता है, पर भी चर्चा करेंगे।  

धन्यवाद