ब्रह्माँड के रहस्य -18-------- चंद्रमात्मक यज्ञ -3


स्टोरी हाइलाइट्स

ब्रह्माँड के रहस्य -18 चंद्रमात्मक यज्ञ -3

रमेश तिवारी 

आज की पोस्ट मैं एक ऐसी स्वः पावन हस्ती रमेश यादव को समर्पित कर रहा हूँ, मेरी आस्थानुसार उनकी आत्मा स्वर्ग में अवश्य ही पहुंची होगी। गत माह 5 सितम्बर को मैं अंतिम बार उनसे मिला था। फिर 8 सितंबर को ह्रदय विदारक सूचना आई कि वे नहीं रहे। इस पोस्ट से उनका क्या संबंध ? यह प्रश्न हो सकता है। प्रसंग बहुत सुन्दर है। हम चंद्रात्मक यज्ञ की चर्चा कर रहे हैं। रमेश जी ने 52 वर्ष पहले चंद्रमा की विभिन्न कलाओं का वर्णन करते हुए एक अप्रितिम "काव्य गीत संग्रह "पीला वासंतिया चांद लिखा। उनकी यह कविता भारतवर्ष में लोकप्रिय हुई। मेरा और उनका प्रथम परिचय रीजनल कालेज में 69 में हुआ। "वे यही कविता पढ़ रहे थे और मैं सुन रहा था । उस कविता को सुनने के बाद मेरे जीवन में रोचक परिवर्तन आया। मुझको कितनी ख्याति मिली, उस पर मैं शीध्र ही अलग से एक पोस्ट अवश्य लिखूंगा ।

कविता की टाइटल पंक्ति है - ओ पीला वासंतिया चांद

अब आप को उस काव्य संग्रह की कुछ पंक्तियां सुनाता हूंँ।

तूफान चला चुंबन लेने, चंदा के गाल कपोलों का।

अंबर के आंगन में उतरा, लेने आनंद ठिठोलों का।

पर बस न चला तो धूल उड़ाकर...,

मटमैला कर दिया चांद। ओ पीला वासंतिया चांद।

मां कहती है -

बेटा चंदा, बहिना कहती भैया चंदा। सजनी,साजन को चांद कहे,भौजी कहती देवरा चंदा। कितने प्यारे नाते बनकर, हम तुम में घूमा किया चांद। जब धरा न थी यह चांद न था सूरज था केवल अंबर में। अर्धांगिनी कहकर सूरज की, रजनी को भेजा ईश्वर ने। तब प्रथम प्रथम मिलन के चुंबन का रवि ने निशान कर दिया चांद|

मित्रो कविता इतनी मोहक, मधुर और आकर्षक है कि इसको अलग से ही लिखना होगी। तब आप सब मित्र प्रिय चांद का आनंद ले सकेंगे |

अब हम उन दो तथ्यों का वर्णन करेंगे, जिनमें से एक के संबंध में हमने ब्रह्माँड में आत्माओं की खंडवार यातायात व्यवस्था होने की बात कही थी । और दूसरी-कि ब्राह्मण और औषधियों के राजा चंद्रमा देव, अपनी 27 पत्नियों का भोग कैसे करते है। चंद्रमात्मक यज्ञ क्या है। क्या सूर्य, चंद्रमा को जींम लेते हैं ! कुछ ऐसा,वैसा है तो..? अजूबा, अनूठा, अद्भुत..!.

                                       
ब्रह्माँड के रहस्य -18

सूर्य के रथ में सात घोड़े जुते हैं किंतु पहिया एक ही है। इधर चंद्रमा के रथ में तीन पहिये हैं। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि ऋग्वेद में तीन पहियों की कार,( सूप की तरह कार भी संस्कृत शब्द है) बनती थी। अर्थात रथ ही विमान कहलाते थे। विमान विज्ञान पर भी मैं अपनी पुस्तक 'क्षीर सागर शयनम ' में लिख चुका हूँ। अब बात करें ब्रह्माँड की। तो मान लो -सूर्य और चंद्रमा एक ही स्थान से लगभग एक साथ चलने पर (यद्यपि सूर्य भगवान चलते नहीं हैं )सूर्य आगे निकल जाता है। चंद्रमा दौड़ भाग कर भी पीछे रह जाता है। जैसा कि हम पहले कई बार बता चुके हैं कि ब्रह्माँड में सोमांतक यज्ञ होता रहता है। हमारे शरीर में भी तो होता है। अन्न (सोम) पवमान वायु, (आक्सीजन) की आहूति अग्नि में (पेट में) होती रहती है।यज्ञ कुंड की तरह आहूतियां होती रहतीं है। यहां एक महत्वपूर्ण तथ्य और भी समझ लें - इद्र को योनि प्राण कहते हैं। गर्भाधान भी यज्ञ है। योनि अग्निकुंड और रेतस ( वीर्य अन्न। दोनों रेतस और रज अग्नि हैं। ऋग्वेद में कहा गया है कि जल में भी अग्नि होती है। हम पहले भी यह बता चुके हैं। वर और वधु दोनों में अग्नि संयोग से ही प्रजनन संभव होता है। तभी तो अग्नि को साक्षी करके पाणीग्रहण संस्कार होता है।

हम कह चुके हैं कि चंद्रमा ही सोम है। सूर्य (इंद्र, विद्युत ) अग्नि। अतःसूर्य ,सोम को जींम जाता है।