नवभारत के कर्मयोगी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी: कृष्णमोहन झा


स्टोरी हाइलाइट्स

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज अपने यशस्वी जीवन के 73 वें वर्ष में पदार्पण कर रहे हैं। उन्होंने 72 वर्षों का यह सफर एक निस्पृह कर्मयोगी के....

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज अपने यशस्वी जीवन के 73 वें वर्ष में पदार्पण कर रहे

कृष्णमोहन झा
(प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिवस पर विशेष)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज अपने यशस्वी जीवन के 73 वें वर्ष में पदार्पण कर रहे हैं। उन्होंने 72 वर्षों का यह सफर एक निस्पृह कर्मयोगी के रूप में तय किया है। उनके इस सफर में परिस्थितियां हमेशा अनुकूल नहीं रहीं। अनेक उतार चढ़ाव आए । जनसेवा की उनकी राह में व्यवधान खड़े करने वालों ने कभी कोई कसर नहीं छोड़ी जिसके पीछे उनकी केवल एक ही मंशा थी कि यह कर्मयोगी किसी भी तरह अपनी राह से भटक जाए । मगर धुन का पक्का और इच्छा शक्ति का धनी यह कर्मयोगी कभी भी रास्ते के कांटों की चुभन से विचलित नहीं हुआ। उसकी कर्मठता के आगे कांटों को भी हार माननी पड़ी । कर्मयोगी तो गीतकार नीरज की इन पंक्तियों को चरितार्थ करता हुआ अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ता रहा-

PM Narendra Modi

"कांटों कंकड़ भरी डगर हो,
या प्याले में भरा जहर हो।
पीड़ा जिसकी पटरानी है,
उसको हर मुश्किल मरहम है।"

राह में आने वाली बड़ी से बडी मुश्किल भी कभी उसके आत्म विश्वास को नहीं डिगा पाई क्योंकि हमेशा ही लीक से हटकर चलने में विश्वास रखने वाले इस कर्मयोगी ने तो हिंदी कवि स्वर्गीय ब्रजराज पांडे की इन पंक्तियों को अपना आदर्श बना लिया था-

कर्मवीर के आगे पथ का ,
हर पत्थर साधक बनता है।
दीवारें भी दिशा बतातीं,
जब मानव आगे बढ़ता है।

इस कर्मयोगी के उन विरोधियों ने भी उसकी ओर 'पत्थर' उछालने से परहेज़ नहीं किया जिनके खुद के घर शीशे के बने हुए थे मगर उस पर किया गया हर वार उसे आहत करने की बजाय हमेशा उसकी ताकत में इजाफा करता रहा । दिवंगत हिंदी कवि डा हरिवंशराय बच्चन की निम्नलिखित पंक्तियों में छिपे मर्म को इस जुझारू कर्मयोगी ने जीवन पथ में पग पग पर सार्थक सिद्ध किया -

modi ji bengal

" मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं ,
शीशे से कब तक तोड़ोगे। "

कर्मयोगी बढ़ता गया, विरोधी परास्त होते चले गए। फिर एक दिन ऐसा आया कि कर्मयोगी इस महादेश का महानायक बन गया और विरोधी एक सीमित दायरे में सिमट कर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए विवश हो गए। महानायक के विरोधी भी अब इस कड़वी हकीकत से अच्छी तरह अवगत हो चुके हैं‌ कि कठिन से कठिन चुनौती भी इस महानायक को अपनी मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। फिर भी विरोध के लिए विरोध की राजनीति करने वाले उसके विरोधी अब खीज उठे हैं और उधर कर्मयोगी कोटि कोटि जनता का हृदय सम्राट बन चुका है। इतिहास गवाह है कि किसी भी देश में कोई भी राजनेता को जनता यूं ही सर आंखों पर नहीं सिखाती। यह सौभाग्य नरेन्द्र मोदी जैसे विरले राजनेताओं को ही नसीब होता है जिनकी जीवन गाथा के हर पृष्ठ पर त्याग, तपस्या, संघर्ष , सेवा और समर्पण की कहानियां लिखी होती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऐसे ही राजनेता हैं जो करोड़ों युवाओं के आदर्श बन गए हैं।कभी हिंदी के दिवंगत मूर्धन्य कवि श्री सोहनलाल द्विवेदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति करोड़ों देशवासियों के समर्पण की अभिव्यक्ति निम्नलिखित पंक्तियों में की थीं-

modi newspuran

"चल पड़े जिधर दो डग मग में,
चल पड़े कोटि पग उसी ओर।"

आज यही पंक्तियां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में कही जा सकती हैं जिन्होंने हमेशा सबको साथ ‌‌‌‌‌‌‌‌लेकर चलते हुए सबका विश्वास जीता है। करोड़ों देशवासियों का यह अटूट विश्वास ही उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है।

Narendra Modi

बचपन से ही संघर्षों में पले बढ़े नरेन्द्र मोदी ने जब अपने दुर्गम जीवन पथ की आडी टेड़ी पगडंडियों पर चलते हुए शून्य से शिखर के सफर की शुरुआत की थी तब भला यह कौन जान सकता था कि ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌यह बालक भविष्य में एक दिन राजपथ पर चलने का अधिकारी बनेगा परंतु शायद उसे बचपन में ही आभास हो गया था कि आगे चलकर उसे एक ऐसेे शक्तिशाली, संपन्न और प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण के पटकथा लेखन की गुरु गंभीर जिम्मेदारी का निर्वहन करना है जहां " दैहिक दैविक भौतिक तापा " के लिए कोई स्थान न हो, जहां हर खेत के लिए पानी उपलब्ध हो, जहां हर हाथ के पास काम हो, जहां हर बच्चे के हाथ में कलम और चेहरे पर मुस्कान हो, जहां कोई दीन ,दुखी और असहाय न हो, जहां बेटी और बेटे में कोई फर्क न किया जाता हो। कुल मिलाकर महान स्वप्नदर्शी कर्मयोगी प्रधानमंत्री ने इस महादेश में रामराज्य की स्थापना का सुनहरा स्वप्न साकार करने का जो पुनीत संकल्प ले रखा है उसकी पूर्ति तो उसी दिन सुनिश्चित हो गई थी जिस दिन उन्हें अयोध्या में भव्य राम मंदिर का भूमिपूजन करने सौभाग्य मिला। ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से जब मां भारती का अनन्य उपासक , कर्मयोगी प्रधानमंत्री यह उद्घोष करता है कि -

सौगंध मुझे इस मिट्टी की,
मैं देश नहीं मिटने दूंगा,
मैं देश नहीं झुकने दूंगा।।

तब हर भारतवासी को यह गर्व होना स्वाभाविक है कि उसने अपना भरोसा जिस राजनेता के नेतृत्व में व्यक्त किया है उसके अंदर इस महादेश को विश्वगुरु बनाने की सामर्थ्य मौजूद है।

(लेखक "महानायक मोदी ",और "यशस्वी मोदी "के लेखक और मोदी के व्यक्तित्व कृतित्व पर आधारित शान बढ़ाने आया हूँ के रचयिता है)