नर्मदा जयंती (Narmada Jayanti) विशेष: माँ नर्मदा की जन्म-कथा


स्टोरी हाइलाइट्स

नर्मदा जयंती विशेष: एक समय जब पृथ्वी पर पाप इतना बड़ा की प्रकृति ने रुष्ट हो कर अपने नियम ही बदल लिए। माँ नर्मदा की जन्म-कथा...Narmada jayanti

नर्मदा जयंती(Narmada Jayanti) विशेष: माँ नर्मदा की जन्म-कथा
प्रियम मिश्र 'प्रवीण'
एक समय जब पृथ्वी पर पाप इतना बड़ा की प्रकृति ने रुष्ट हो कर अपने नियम ही बदल लिए। जिसके फलस्वरुप भयंकर सूखा-अकाल पढने लगा, लोग खाने और पानी की बूंदों के लिए तरसने लगे एवं कई वर्षों तक भीषण गर्मी रही लम्बे समय तक वर्षा ऋतु आई ही नहीं।

तब सभी ऋषि-मुनियों और भक्तों ने मिलकर भगवान भोलेनाथ की आराधना करने लगे। वहां भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत अपने ध्यान में मग्न होकर बैठे थे, जब ऋषि-मुनियों और भक्तों की पुकार कैलाश पर्वत पर पहुंची तब भगवान भोलेनाथ की ध्यान मुद्रा टूटी और पृथ्वी की तरफ अपने दिव्य नेत्रों से देखा तो मानवजाति की यह हालत देख उनके क्रोध का ठिकाना नही रहा।

भगवान भोलेनाथ क्रोध में आकर तांडव करने लगे। भगवान का यह तांडव 3 दिन तक चलता रहा तब फिर सारे ऋषि-मुनियों, शिवभक्तों और माता सती ने भगवान भोलेनाथ की तब जाकर प्रभु शांत हुए। जब भगवान भोलेनाथ अपने आसन पर विराजमान हुए तब उनके पूरे शरीर से पसीना बह रहा था भोलेनाथ ने अपने हाथों की उंगलियों से अपने माथे का पसीने की पोंछाते हुए उस पसीने को जमीन पर छिड़का तब उन पसीनों की बूंदों से एक कन्या प्रकट हुईl

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कन्या से भगवान भोलेनाथ ने कहा- हे देवी आपका जन्म समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए हुआ है पृथ्वी लोक में पाप और अत्याचार बढ़ने से अकाल पड़ा है आप पापों का नाश करने वाली होंगीं। जो भी भक्त आपका दर्शन करेगा वह सिर्फ आपके दर्शन मात्र से ही अपने सारे पापों का नाश कर पायेगा और अनंत समय तक में आपके अनंत भक्त होंगे। आपका नाम नर्मदा होगा। 

तब देवी नर्मदा ने हाथ जोड़कर भगवान भोलेनाथ को प्रणाम कर कहा कि, प्रभु आपने कहा मेरे अनंत भक्त होंगे तो मैं अपने भक्तों के लिए आपसे कुछ वरदान मांगना चाहूंगी। और भगवान भोलेनाथ बोले मांगो देवी। तब देवी नर्मदा ने वरदान मांगे हुए कहा कि-

कभी प्रलय में भी मेरा नाश न हो। मेरा हर पाषाण, शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो। नर्मदा तट पर भगवान शिव- मातापार्वती सहित सभी देवी-देवता निवास करें। मेरे भक्तों को सभी तरह के सुख प्राप्त हो। मेरे भक्तों को कभी यमराज के दरबार में ना खड़ा होना पड़े। भगवान भोलेनाथ मुस्कुराते हुए बोले "तथास्तु"। 

भगवान भोलेनाथ की आज्ञा से नर्मदा जी मगरमच्छ के आसन पर विराज कर उदयांचल पर्वत पर उतरीं एवं पश्चिम दिशा की ओर बहने लगी। 
नमामी देवी नर्मदे

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