आखिर खून की कमी से क्यों जूझ रहा प्रदेश का भविष्य, एनीमिया मुक्त प्रदेश बनाने का कमलनाथ सरकार के अभियान का क्या हुआ...Atul Pathak 


स्टोरी हाइलाइट्स

वर्ष 2020-21 के एनीमिया मुक्त भारत स्कोर-कार्ड में मध्यप्रदेश को मिली प्रथम रैंक में 64.1 प्रतिशत वेल्यू आंकी गई है, जो पूरे देश में सर्वाधिक.

आखिर खून की कमी से क्यों जूझ रहा प्रदेश का भविष्य... Atul Pathak  वर्ष 2020-21 के एनीमिया मुक्त भारत स्कोर-कार्ड में मध्यप्रदेश को मिली प्रथम रैंक में 64.1 प्रतिशत वेल्यू आंकी गई है, जो पूरे देश में सर्वाधिक है। एक तरफ मध्यप्रदेश एनीमिया मुक्त भारत स्कोर कार्ड में मिलने वाली फर्स्ट रैंक पर अपनी पीठ थपथपा रहा है तो दूसरी तरफ अखबारों में छपी एक खबर चौंकाने वाली है| यह खबर मध्य प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के सर्वे पर आधारित है, दरअसल यह बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण रिपोर्ट पर आधारित है| यह रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के सवा लाख बच्चे गंभीर रूप से खून की कमी से जूझ रहे हैं| खून की कमी यानी एनीमिया बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है.. स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश में सितंबर में 5 साल तक के बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण कराया, इन बच्चों में से 1,10,000 बच्चे गंभीर रूप से रक्त अल्पता के शिकार पाए गए| खरगोंन 7643, बड़वानी 5406, धार 5185, सागर 3085, रीवा 2930, PANNA 2059, सतना में 1127, सिंगरौली में 485 बच्चे एनीमिक हैं| बच्चों में सीवियर एनीमिया की इतनी बड़ी तादाद क्यों है? हेल्थी बेबी में 11 ग्राम प्रति डेसी लीटर हिमोग्लोबिन होना चाहिए| लेकिन मध्यप्रदेश में एक लाख से ज्यादा मासूमों के शरीर में 7 ग्राम से भी कम हिमोग्लोबिन है| हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एनीमिया मुक्त भारत अभियान में प्रदेश को प्रथम स्थान मिलने पर संबंधित विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी| एनीमिया मुक्त भारत के वर्ष 2020-21 के इण्डेक्स में मध्यप्रदेश प्रथम रहा है। वर्ष 2019-20 में भी मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर था। प्रदेश में आयरन फोलिक एसिड कवरेज अंतर्गत 6 से 59 माह के बच्चों का कवरेज 36.3 प्रतिशत, 5 से 9 वर्ष के बच्चों का कवरेज 71.6 प्रतिशत, 10 से 19 वर्ष के बच्चों का कवरेज 66.3 प्रतिशत, गर्भवती महिलाओं का कवरेज 95 प्रतिशत और धात्री माताओं का कवरेज 51.3 प्रतिशत रहा, जो अन्य प्रांतों से अधिक है। अन्य प्रांतों से अच्छी स्थिति होने का अर्थ यह नहीं है कि हम पूरी तरह से एनीमिया से मुक्त हो गए| एक अनुमान के मुताबिक देश में आज भी तीन साल आयु के 80 प्रतिशत और 5 वर्ष तक के 70 फीसदी बच्चों में एनीमिया की कमी है।  इसके कारण उनका शारीरिक डेवलपमेंट कम हुआ है।  विटामिन डी की कमी से एनीमिया: बच्चे के शरीर में विटामिन डी की कमी उसके लिए खतरनाक साबित हो सकती है। स्टडी में पाया गया है कि बच्‍चों में लंबे समय तक विटामिन डी की कमी बने रहना एनीमिया रोग का कारण बन सकती है। इधर सरकार के स्तर पर भी इस दिशा में गंभीर प्रयास की जरूरत है| कमलनाथ सरकार ने एनीमिया मुक्त मध्य प्रदेश अभियान पर काम शुरू किया था| प्रदेश में 69 फीसदी बच्चे, हर दूसरी महिला और हर चौथे पुरुष को खून की कमी है। एनीमिया में 40 फीसदी लोगों की स्थिति गंभीर है। प्रदेश में एनीमिया की गंभीर स्थिति है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक रक्त की कमी के मामले में 20 फीसदी सामान्य जबकि 40 फीसदी लोग सीरियस कंडीशन में हैं। 6 से 60 महीने के बच्चों में 68.9 प्रतिशत एनीमिया है। MP की हर दूसरी महिला एनीमिया से पीडि़त है। इंडेक्स के अनुसार 54.2 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से जूझ रही हैं जबकि 15 साल से 49 साल तक की 52.5 फीसदी महिलाओं में एनीमिया पाया जाता है। मेल्स में भी ये बीमारी लगातार बढ़ रही है। 15 साल से 49 साल तक के पुरुषों में 25.5 फीसदी रक्त की कमी के शिकार हैं। ये भी पढ़ें.. मुद्दे: वन नाइट स्टैंड क्या है और हमें इससे क्यों बचना चाहिए.. तब कमलनाथ सरकार ने दावा किया था कि 6 महीने से 60 महीने के बच्चों को हर सप्ताह एक मिलीलीटर आयरन और फोलिक एडिस से भरपूर सीरप पिलाया जा रहा है। 05 साल से 10 साल तक के बच्चों को गुलाबी टैबलेट दी जा रही है। ये टैबलट हर सप्ताह एक साल तक दी जाएगी। 10 से 19 साल के बच्चों को नीली टैबलेट दी जा रही है। ये भी एक साल तक हर सप्ताह दी जाएगी। इसके अलावा फोर्टीफाइट आटा, चावल, तेल और दूध भी एनीमिक लोगों को दिया जा रहा है। आंगनबाड़ी के जरिए भी बच्चों, गर्भवती महिलाओं और पुरुषों को दवाएं और पोषण दिया जा रहा है। हालांकि कमलनाथ सरकार चली गई लेकिन क्या उसकी यह योजना तय कार्यक्रम के मुताबिक ही जारी रही?  कमलनाथ सरकार के दौरान इतने स्कूलों में शुरु हुआ अभियान: - प्राथमिक स्कूल- 81287 - माध्यमिक,हाई और हायर सेकंडरी स्कूल- 38780 - प्रायवेट स्कूल- 27937 - केंद्रीय विद्यालय, मदरसा और स्थानीय स्कूल- 1775 - आंगनबाड़ी केंद्र- 96882 - आदिवासी होस्टल- 130 - आशा कार्यकर्ता- 59341 - शहरों में काम कर रहीं आशा कार्यकर्ता- 3485 तत्कालीन सरकार के कार्यकाल में स्वास्थ्य के साथ शिक्षा और महिला एवं बाल विकास विभाग की जिम्मेदारी तय की गई थी|  स्वास्थ्य विभाग जिला और ब्लॉक लेवल पर एडवायजरी कमेटी बनाई गई थी| कलेक्टर की अध्यक्षता में इस कार्यक्रम की समीक्षा और सुधार की कार्यवाही करना सुनिश्चित करने का दावा किया था। स्कूल शिक्षा विभाग को स्कूलों में चल रहे इस अभियान की मॉनिटरिंग के साथ उसकी प्रगति रिपोर्ट पेश करने का काम सौंपा गया था। महिला एवं बाल विकास विभाग आंगनबाड़ी में चल रहे इस अभियान की निगरानी करने का जिम्मा सौंपा गया था। कहा गया था कि हर महीने समीक्षा भी की जाएगी। इन तीनों विभागों के साथ स्वास्थ्य मंत्री समन्वय कर पूरे कार्यक्रम की निगरानी करेंगे।  खास बात यह है कि उस वक्त के स्वास्थ्य मंत्री इस सरकार में भी मंत्री हैं| यह भी कहा गया था कि स्वास्थ्य मंत्री हर महीने मुख्यमंत्री को भी इसकी रिपोर्ट भेजेंगे। एनीमिया मुक्त मध्य प्रदेश निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण कदम है|  लेकिन राजनीतिक प्राथमिकता में ना होने के कारण इस दिशा में अपेक्षित गति नहीं है|  यह मुद्दा कभी-कभी अहम हो जाता है|  कभी-कभी सरकार की सक्रियता से लगता है कि वह वाकई इस दिशा में गंभीर है लेकिन आते जाते चुनाव,  बदलती राजनीतिक परिस्थितियां और वोट बैंक की सियासत में ये  अभियान अक्सर पीछे रह जाता है|