बुद्धि तीव्र ही नहीं, शुद्ध भी होनी चाहिए,भारत के ऋषियों ने यही माँगा ईश्वर से..दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

आजकल बुद्धि को तेज़ करने के नाम पर बहुत-सी दवाएं बाज़ार में मनमाने दाम पर बिक रही हैं. लोग उन्हें ख़ूब खरीद भी...

बुद्धि तीव्र ही नहीं, शुद्ध भी होनी चाहिए,भारत के ऋषियों ने यही माँगा ईश्वर से..दिनेश मालवीय आजकल बुद्धि को तेज़ करने के नाम पर बहुत-सी दवाएं बाज़ार में मनमाने दाम पर बिक रही हैं. लोग उन्हें ख़ूब खरीद भी रहे हैं. अनेक लोगों ने ऐसा प्रचारित कर दिया कि फलां मंत्र के जाप से बुद्धि तीव्र हो जाएगी. इसके लिए और भी अनेक टोटकों और उपायों के बारे में भी बढ़ने-सुनने को मिलता है. हर कोई चाहता है कि, उसकी और उसके बच्चों की बुद्धि तीव्र हो. यह स्वाभाविक भी है. बुद्धि तीव्र होने से ही बच्चे वह पढने-लिखने और प्रतियोगी परीक्षाओं में कामयाब हो पायेंगे. जीवन में सुख-साधन जुटा पायेंगे. समृद्धि अर्जित कर पाएंगे. इसलिए बुद्धि को तीव्र करने के उपाय करने में कोई हर्ज़ नहीं है. यदि उपरोक्त बातों से बुद्धि को तीव्र किया जा सकता हो, तो उन्हें करने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन हमारी ज्ञान-परम्परा में ऋषियों ने सिर्फ बुद्धि की तीव्रता पर एकतरफा बल नहीं दिया है. वे भी बुद्धि और मेधा को सशक्त बनाने के पक्षधर हैं. लेकिन वे बुद्धि के तीव्र होने के साथ ही बुद्धि के शुद्ध होने पर अधिक बल देते हैं. सनातन हिन्दू धर्म का सर्वोच्च मंत्र गायत्री मंत्र है- ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात  इसका अर्थ है- हम श्रष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का ध्यान करते हैं. परमात्मा वह तेज हमारी बुद्धि को सद्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें. गायत्री मंत्र महर्षि विश्वामित्र के ह्रदय में प्रकाशित हुआ था. यानी इस मंत्र के दृष्टा ऋषि वही हैं. वे ही भगवान् श्रीराम के गुरु हैं. इस मंत्र में ईश्वर से बुद्धि को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने की प्रार्थना की गयी है. इसका अर्थ यह हुआ कि, बुद्धि की तीव्रता कि जगह बुद्धि की शुद्धता पर बल दिया गया है. तीव्र बुद्धि तो किसीकी भी हो सकती है. रावण से अधिक तीव्र बुद्धि का व्यक्ति तो संसार में शायद ही कोई हुआ हो. उसके दस सिर होने की बात भी कदाचित् इसीलिए कही गयी है कि, उसका मस्तिष्क सामान्य मनुष्य की तुलना में दस गुना अधिक सोचने में  समर्थ था. यह भी कहा जाता है कि, उसे दसों दिशाओं में क्या हो रहा है, इसका ज्ञान था. इसीलिए उसे दशानन कहते हैं. काव्य की भाषा में तो इस प्रकार की अतिशयोक्तियाँ होती ही हैं. उसके दस सिर होने की बात प्रतीकात्मा ही ज्यादा मालूम होती है. बहरहाल, यह तो तय है कि, रावण की बुद्धि बहुत तीव्र थी. उसे संगीत, वेद-वेदांग, काव्यशास्त्र सहित सभी विद्याओं का ज्ञान था. उसने बहुत महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की. लेकिन फिर भी उसकी बुद्धि शुद्ध नहीं होने के कारण वह ब्राह्मण का पुत्र होने के बाद भी वृत्ति से राक्षस हो गया. संसार के जो बड़े-बड़े तानाशाह हुए हैं, वे अपने देश और देशवासियों पर अपना पूरा नियंत्रण इसीलिए कर पाए, क्योंकि उनके पास तीव्र बुद्धि थी. बहुत क्रूर राक्षस और दूसरे बुरे लोग बुद्धि के धनी तो थे ही. हिटलर जैसा आदमी क्या कोई कम बुद्धिमान था? लेकिन उसने करीब 60 लाख लोगों को नृशंसता के साथ मौत के घाट उतरवा दिया. इसके अलावा, चंगेजखान, नादिरशाह, तैमूर लंग और दूसरे खूंखार लोग को बुद्धि से हीन नहीं थे. उनके पास शारीरिक ताकत के साथ-साथ बौद्धिक बल भी था. नटवरलाल नाम के ठग की बुद्धि इतनी तीव्र थी कि, पूरी दुनिया की पुलिस और कानूनों को उसने जीवनभर धोखा दिया. आज भी जो लोग तीव्र बुद्धि के होते हैं, वे बड़े पदों पर नियुक्त होते हैं. वे राजनेता, कवि, लेखक, बुद्धिजीवी, समाजसेवक,डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, शिक्षक, व्यावसायी आदि बनते हैं. इनमें यदि बुद्धि की शुद्धता हो, तो वे पूरे मानव समाज के लिए बहुत हितकर सिद्ध हो सकते हैं. लेकिन बुद्धि की शुद्धता के अभाव में वे अपनी बुद्धि और कुशलता का उपयोग केवल “अपना घर जोड़ने” में करते रहते हैं. अधिकतर मामलों में तो वे ऐसा करते हुए इतने विवेकहीन हो जाते हैं कि, उन्हें यह भी अहसास नहीं रहता कि, वे समाज और देश का कितना नुकसान कर रहे हैं. इसका कारण सिर्फ इतना है कि, उनकी बुद्धि शुद्ध नहीं  होती. इसीलिए वे शैतानी कामों की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं. हमारे ऋषि  जानते थे कि, बुद्धि दुधारी तलवार की तरह है. यदि उसे शुद्ध नहीं किया गया, तो यह विध्वंसक हो जाएगी. उन्होंने बुद्धि को शुद्ध करने के अनेक उपाय भी बताये हैं, लेकिन दुर्भाग्य से ये उपाय या तो किताबों में सिमट कर रह गये हैं या फिर कहने-सुनने की बातें भर बन गये हैं. इन उपायों में जप, ध्यान, प्राणायाम,योग, पूजा-पाठ,सत्संग, भक्ति आदि शामिल हैं. लोग यह सब करते भी हैं, लेकिन यह इतना यंत्रवत होता है कि, उसके वांछित परिणाम नहीं मिलते. धर्मों की साधना पद्धतियों का एकमात्र उद्देश्य व्यक्ति के चित्त को शुद्ध करना है. आज मनुष्य की बुद्धि को तीव्र बनाने और उसमें सारा ज्ञान ठूंसने के तो ख़ूब उपाय किये जा रहे हैं, लेकिन उसके चित्त या बुद्धि को शुद्ध करने के कोई गंभीर प्रयास होते नहीं दिख रहे. कुछ लोग और संस्थाएं अपने स्तर पर जो भी कार्य कर रही हैं, वे सराहनीय हैं. उनसे जुड़े लोगों में बुद्धि की शुद्धता का अंश देखने को मिलता है. लेकिन जब तक समाज के अधिकतर लोगों की बुद्धि शुद्ध नहीं हो, तब तक समाज,राष्ट्र और संसार का कोई भला नहीं होने वाला. जो भी समझदार और विवेकशील लोग होते हैं, वे ईश्वर से सिर्फ़ अपनी बुद्धि और चित्त की शुद्धता और उसे सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करने की प्रार्थना करते हैं. बाकी चीजें तो कर्मानुसार प्राप्त हो ही जाती हैं.