स्टोरी हाइलाइट्स
आचार्य चाणक्य के समय में शराबबंदी नहीं थी. आचार्य चाणक्य ने अपने “अर्थशास्त्र” में शराब के चलन को रोकने का सुझाव...
आचार्य चाणक्य के समय शराबबंदी नहीं थी, चाणक्य ने अर्थशास्त्र में सुरा व्यवस्था के सूत्र बताए.. सरयूसुत मिश्रा
आचार्य चाणक्य के समय में शराबबंदी नहीं थी. आचार्य चाणक्य ने अपने “अर्थशास्त्र” में शराब के चलन को रोकने का सुझाव नहीं दिया है, बल्कि मदिरा, भांग, अफीम के सम्बन्ध में आवश्यक सूत्रों का निर्धारण किया है. वर्मान में विभिन्न राज्यों में शराबबंदी एक राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है. कुछ राज्यों में शराब बंदी लागू भी है, लेकिन अनुभव बताते हैं जिन राज्यों में शराबबंदी है वहाँ शराब का मिलना बहुत कठिन नहीं होता. जिन राज्यों में अभी शराबबंदी नहीं है, वहां भी राजनीतिक लाभ-हानि के गणित को देखते हुए शराबबंदी को मुद्दा बनाया जाता है. मध्यप्रदेश में भी शराब बंदी की बात समय-समय पर उठती रहती है. आचार्य चाणक्य ने आबकारी विभाग के विभागाध्यक्ष को सुरा अध्यक्ष कहा है. उनका मत है कि सुरा अध्यक्ष को मदिरा बनाने या बेचने का अनुभव होना चाहिए. इसके साथ ही मदिरा की आपूर्ति का ठेका किसी बड़े व्यापारी अथवा एक से अधिक छोटे व्यापारियों को ही देना चाहिए. खुदरा बिक्री करने वाले को शराब ठेका देने का निर्णय परिस्थितिवश ही लिया जाना चाहिए. आचार्य चाणक्य के अर्थशास्त्र में ठेका स्थलों से भिन्न स्थानों पर मदिरा बनाने अथवा बेचने वालों से कड़ा दंड वसूलने का सूत्र बताया गया है.
आचार्य चाणक्य ने यह भी कहा है कि शराब और शराबी को गांव से बाहर अन्य घरों में अथवा भीड़ में नहीं जाने देना चाहिए, क्योंकि इससे राज्य के कर्मचारियों व अधिकारियों द्वारा अपने कर्तव्य कर्म की उपेक्षा होने की संभावना होती है. साथ ही उग्र स्वभाव के सैनिकों द्वारा शस्त्र प्रयोग की संभावना भी बढ़ जाती है. आचार्य चाणक्य ने यह भी बताया है कि प्रतिष्ठित नागरिकों को एक निश्चित मात्रा में सीलबंद मदिरा ले जाने की अनुमति दी जानी चाहिए. मदिरा ले जाने की अनुमति न पाने वाले व्यक्ति केवल मदिरालय में बैठकर ही मदिरापान कर सकते हैं. आचार्य चाणक्य ने यह भी कहा है कि मदिरापान करने के लिए अपने सामान को गिरवी रखने वाले या चोरी डाके का सामान सस्ते दामों पर बेचने वाले अथवा अपनी आय से अधि व्यय करने वाले व्ताक्तियों को बंद कर दे करने वाले व्यक्तियों को नगराध्यक्ष को सौंपना चाहिए. इसका आशय यह है कि ऐसे लोगों पर नजर रखी जाना चाहिए, क्योंकि इन परिस्थितियों के कारण परिवार और समाज को नुकसान पहुंचता है.
आचार्य चाणक्य ने यह भी कहा है कि कम मूल्य पर उधार पर तथा सूद समेत चुकाए जाने वाली रकम पर खरीदने वालों को बढ़िया मदिरा कभी भी नहीं बेंचना चाहिए. ऐसे लोगों को तो सदा घटिया मदिरा ही देना चाहिए. अर्थशास्त्र में यह कहा गया है कि बढ़िया मदिरा बेचने वाली दुकान पर घटिया मदिरा न तो रखनी चाहिए और न ही बेचनी चाहिए. आचार्य चाणक्य ने मदिरालयों के बेहतर प्रबंधन का सूत्र बताया है. उनका कहना है कि मदिरालय में सुगंधित द्रव्य एवं स्वच्छ जल सुलभ होना चाहिए. आचार्य चाणक्य ने नगरों और जनपदों के निवासियों के लिए विवाह आदि उत्सव के समय घरों में भी मदिरा बनाने की अनुमति का सूत्र बताया है. उन्होंने कहा है कि सुरा अध्यक्ष को उत्सवों में मित्र बंधुओं को जोड़ने तथा तीर्थ यात्रा आदि के अवसरों पर चार दिनों के लिए मदिरापान की अनुमति दे देना चाहिए, परंतु उत्सव की समाप्ति पर बिना अनुमति के मदिरा सेवन करने वाले व्यक्ति को दंड देना चाहिए. उत्सव और समारोहों में शासक की अनुमति के बिना मदिरा बेचने वालों से साधारण मदिरा के निर्धारित मूल्य से अधिक कर वसूल करने का सूत्र भी बताया है. सुरा का चलन हमेशा से होता रहा है.
आजकल तो आबकारी विभाग सरकारों की आय का बड़ा माध्यम बना हुआ है. आबकारी विभाग जहां सुरा प्रेमियों के लिए महात्वपूर्ण महत्व है, वहीँ शासन की आय की दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है. वर्तमान आबकारी नीति में भी आचार्य चाणक्य के कई सूत्रों का पालन प्रतीत होता है. मध्यप्रदेश में परंपराओं को निभाने के लिए जनजातीय समाज को घर में शराब के निर्माण की अनुमति पहले हुआ करती थी. इसे बाद में बंद कर दिया गया था. लेकिन फिर से यह घोषणा की गई है कि आदिवासियों को महुआ से शराब बनाने की अनुमति दी जाएगी. शराब के दुष्परिणाम भी समाज में देखने को मिलते हैं. यह है निजी शौक का विषय है, इसे हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए. शराब की आपूर्ति के लिए शासन के बेहतर प्रबंधन से नकली और जहरीली शराब के संकट से बचाया जा सकता है.