जागता कौन है..............(भाग - 4)


स्टोरी हाइलाइट्स

"ना तो नींद उड़े तन  सुपना, ए रेहेवे क्यों कर। देखो अचरज अदभुत, धड़ बोले सिर बिगर।।"             महामति प्राणनाथ जी की उपरोक्त वाणी को समझने के लिए पहले..

जागता कौन है..............(भाग - 4)

"ना तो नींद उड़े तन  सुपना, ए रेहेवे क्यों कर।

देखो अचरज अदभुत, धड़ बोले सिर बिगर।।"  
            
महामति प्राणनाथ जी की उपरोक्त वाणी को समझने के लिए पहले हमें क्षर जगत के जीवों की जाग्रत तथा स्वप्न की अवस्था को समझना होगा, क्षर जगत के जीव की जब स्वप्न की अवस्था आती है तो उस जीव का अहम् भाव स्वप्न के शरीर से जुड़ जाता है। वह इस स्वप्न के संसार को सत्य समझने लगता है। नींद टूटने पर जब  वह स्वप्न के बाहर अपने क्षर जगत के शरीर में वापस आता है तब उसका स्वप्न का शरीर तथा संसार नष्ट हो जाता है।

अध्यात्म २
इसी प्रकार ब्रह्म आत्माएं जब अक्षर पुरुष के द्वारा रचित इस दुख रूपी स्वप्न जगत को देखने के लिए इन स्वप्न के मानव जीवों के शरीरों से जुड़ती है, तब उन पर भी माया का 'मैं' और 'मेरा' का अहम् भाव रूपी जहर चढ़ जाता है। अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा की आज्ञा से सतगुरु आते हैं, जो इन ब्रह्मात्माओं को परमधाम के परा ज्ञान के द्वारा जगाते हैं।

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फिर इस ज्ञान के फल: स्वरूप वे अपने परात्म शरीर में परमधाम में जागती हैं। उनका अहम् भाव क्षर जगत के स्वप्न के शरीर से समाप्त हो जाता है। परन्तु वास्तव में क्षर जगत का स्वप्न का शरीर समाप्त नहीं होता है बल्कि अहंकार के नष्ट होने पर मृत के समान हो जाता है।

इन स्वापनिक जीवों पर पहले माया का अहंकार रूपी जहर चढ़ा हुआ था। वे इस शरीर, परिवार तथा घर को ही अपना समझती थी। इस क्षर जगत के बाहर का ज्ञान इनको नहीं था परंतु ब्रह्म आत्माओं के सम्पर्क में आने से इनको अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म परमात्मा तथा अखण्ड परमधाम का परा ज्ञान प्राप्त हुआ। 

इस ज्ञान के द्वारा इन स्वप्न के जीवों पर से माया का अहंकार रूपी जहर उतर गया। संसार उनको फीका लगने लगा वे मृत के समान हो गयी। 'मैं' और 'मेरा' का भाव समाप्त हो गया। ब्रह्मात्माओं के अपने परमधाम मे वापस लौटने के पश्चात भी स्वापनिक जीवों पर माया का अहम भाव रूपी जहर शेष नहीं रह पाया।

इस प्रकार यह कितना अदभुत आश्चर्य है कि अहंकार रूपी सिर के कटने के बाद भी यह स्वप्न का धड़, इस नश्वर तन से, परमधाम की तथा स्वामी की बातें कर रहा है।

बजरंग लाल शर्मा