राजनीति में पीढ़ीगत द्वंद्व है निक्कर की सोच,  ऐसी सोच राहुल गांधी को कैसे मानेगी नेता.. सरयूसुत मिश्रा


स्टोरी हाइलाइट्स

कांग्रेस के 75 साल के वयोवृद्ध नेता कमलनाथ ने राजनीति में पीढ़ीगत बदलाव पर व्यंग किया है. कमलनाथ ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष...

राजनीति में पीढ़ीगत द्वंद्व है निक्कर की सोच,  ऐसी सोच राहुल गांधी को कैसे मानेगी नेता.. सरयूसुत मिश्रा कांग्रेस के 75 साल के वयोवृद्ध नेता कमलनाथ ने राजनीति में पीढ़ीगत बदलाव पर व्यंग किया है. कमलनाथ ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के सुलगते सवालों का जवाब देने की बजाय उन्हें यह कहकर कमतर आंकने की कोशिश की है कि वीडी शर्मा ने निक्कर पहनना भी नहीं सीखी थी तब मैं सांसद था. उनके इस बयान ने राजनीति में युवाओं और बुजुर्गों के बीच विचार और समझ पर छिड़े द्वंद्व को उजागर किया है. सांसद होने के पहले कमलनाथ भी बच्चे, किशोर और युवा रहे होंगे. वह जन्म से तो वह सांसद नहीं थे. निक्कर पहनना उन्होंने ने भी सीखा होगा, फिर राजनीति में आए होंगे और सांसद बने होंगे. उन्होंने अपनी आज तक की राजनीतिक यात्रा की होगी. उन्होंने निक्कर पहनना सीखने संबंधी जो बयान दिया है, वह उनकी राजनीति में युवा विरोधी सोच प्रदर्शित करता है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष 51 साल के हैं और यही उम्र कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की भी है. दोनों का जन्म वर्ष 1970 का है. वीडी शर्मा ने कमलनाथ के 15 महीने के कार्यकाल में भ्रष्टाचार से जुड़े सुलगते सवाल क्या पूछ लिए, कि बुजुर्ग नेता इतने तिलमिलाए कि उन्होंने इस तरह का युवा विरोधी वक्तव्य दे दिया. राजनीति में युवाओं से ज्यादा बुजुर्गों से धैर्य की उम्मीद रखी जाती है, लेकिन आजकल बुजुर्ग अधीरता में युवाओं को भी पीछे छोड़ रहे हैं. वीडी शर्मा ने जो सवाल पूछे हैं, उनका जवाब क्या केवल इसलिए नहीं दिया जाना चाहिए कि, जब कोई सांसद बना था तब आज का वह नेता निक्कर पहनना सीख रहा था. वीडी शर्मा के सवाल का जवाब देना चाहिए न कि सवालों से  मुंह मोड़ते हुए इस तरह की अनर्गल बातें करके युवाओं को राजनीति में आने से हतोत्साहित करना चाहिए. कमलनाथ का निक्कर वाला बयान सबसे ज्यादा कांग्रेस पर उपयुक्त बैठता है. कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके युवराज राहुल गांधी की उम्र भी 51 साल की है. जब वह कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे, तब उनकी उम्र 50 से भी कम थी. यही बुजुर्ग नेता राहुल गांधी को खुश रखने के लिए चापलूसी की हदें पार करते हुए दिखाई देते हैं. कांग्रेस का कोई भी नेता, जो सक्रिय राजनीति में पार्टी से कुछ पाना चाहता है, वह दिन में एक बार राहुल गांधी का नाम नहीं ले तो उसका राजनीतिक भविष्य सवालों के घेरे में आ जाता है. कमलनाथ को यह बताना चाहिए कि उनके सांसद बन जाने के बाद निक्कर पहनना सीखने वाले राहुल गांधी को अध्यक्ष के रूप में उन्होंने क्यों स्वीकार किया. अगर ऐसे नेता का कोई महत्व ही नहीं है, तो फिर आज भी दिल्ली जाकर राहुल गांधी के निवास पर मत्था टेकने की क्या आवश्यकता होती है ? कांग्रेस पार्टी आज अपने सबसे बुरे दिनों से गुजर रही है. सालों से कांग्रेस का कोई निर्वाचित अध्यक्ष नहीं है. सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भूमिका निभा रही हैं. वह भी उम्र दराज नेता हैं. आज कांग्रेस में जो असंतोष है, वह शायद इसी निक्कर वाली सोच का परिणाम पार्टी के युवा नेताओं और बुजुर्ग नेताओं के बीच द्वंद्व छिड़ा हुआ  है. उसके कारण ही पार्टी लगातार कमजोर होती जा रही है. कांग्रेस पार्टी के असंतुष्ट जी 23  के नेताओं ने हमेशा यही सवाल उठाया है कि पार्टी में चाटुकारिता और चापलूसी के बल पर लोग काबिज हैं. उम्र और योग्यता का कोई पैमाना नहीं है. योग्य नेताओं को हमेशा पीछे धकेला जाता है और गांधी परिवार की चापलूसी कर उद्योगपति और व्यवसायिक प्रवृति के नेता सत्ता और विपक्ष दोनों स्थितियों में लाभ की राजनीति में लगे रहते हैं.  राजनीति में पीढ़ीगत बदलाव एक अनिवार्यता है. जिस पार्टी ने इस बदलाव की तरफ ध्यान नहीं दिया, वह आगे चलकर कांग्रेस की स्थिति को ही प्राप्त करती है. भारतीय जनता पार्टी ने पीढ़ीगत बदलाव को बखूबी अंजाम दिया है. पार्टी के इसी बदलाव की सोच का नतीजा है कि छात्र राजनीति में सक्रिय बीडी शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष पद दिया गया और वह पूरी ऊर्जा और उत्साह के  साथ अपने पद का  दायित्व निभा रहे हैं. उनकी बेहतर भूमिका का ही परिणाम है कि कमलनाथ जैसे बुजुर्ग नेता तिलमिलाहट में इस तरह की तथ्यहीन और उथली  प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं.भाजपा ने पीढ़ीगत बदलाव को हमेशा प्राथमिकता दी है. चाहे दिल्ली के नगर निगम चुनाव हों या गुजरात में हाल ही में नए मंत्रिमंडल का गठन, दोनों में उन्होंने वर्तमान के सभी पदधारियों को पद मुक्त करते हुए नए नेतृत्व को आगे आने का मौका दिया. भाजपा का यह प्रयोग नगर निगम दिल्ली के मामले में तो सफल रहा. गुजरात में अभी चुनाव होना बाकी है. बुजुर्ग और युवा  पीढ़ी का द्वंद्व सदियों से चल रहा है. घर-परिवार में भी जब पीढ़ीगत बदलाव होता है तब सास-बहू और पिता-पुत्र के बीच वैचारिक मतभेद होता है. अगर बुजुर्ग ने इस मतभेद को सही समझ कर रचनात्मक ढंग से कार्य नहीं किया तो ऐसे घरों में विवाद की स्थिति उत्पन्न होती हैं. पारिवारिक विघटन अवश्यंभावी होता है. यही स्थिति राजनीति में भी है. बुजुर्ग नेता जब भी कहीं सार्वजनिक समारोह में जाते हैं, तो उनका सुरक्षा गार्ड सुरक्षा व्यवस्था संभालने के बदले उन्हें पकड़कर चलाता है, ताकि चलते हुए नेताजी कहीं गिर न जाएँ. ऐसे बहुत सारे नेता हमें लोकतंत्र में दिखाई देंगे जो चलने फिरने के भी योग्य नहीं है, जिनकी सोच-समझ भी कमजोर हो गई है. लेकिन फिर भी वे  युवा पीढ़ी के लिए स्थान छोड़ेंगे नहीं. भारतीय संस्कृति और जीवन व्यवस्था में वृद्धावस्था में वानप्रस्थ की परंपरा है, लेकिन शायद राजनीति में वानप्रस्थ नहीं होता. इसके उलट राजनीति के बुजुर्ग ऐसा प्रयास करते हैं कि उनके रहते हुए युवा नेता वानप्रस्थ की ओर चले जाएं. आज कांग्रेस पार्टी में यही हो रहा है कि कांग्रेस के बुजुर्ग नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की चापलूसी करते तो दिखाई देते हैं, लेकिन वह प्रयास यही करते हैं कि यह दोनों नेता वानप्रस्थ की ओर चले जाएं और पार्टी पर बुजुर्ग नेताओं का कब्जा हो जाए. कांग्रेस नेताओं की निक्कर वाली सोच जब तक नहीं बदलेगी तब तक पार्टी का कल्याण संभव नहीं है . राजनीति और देश को चलाने के लिए जहाँ बुजुर्गों के अनुभव की ज़रुरत है, वहीं युवा जोश और शक्ति की भी उतनी ही ज़रुरत है. बुजुर्ग नेताओं को युवाओं की  नेतृत्व क्षमता का उपहास नहीं करना चाहिए, वहीँ युवाओं को बुजुर्गों के अनुभव का पोरा लाभ लेना चाहिए. यही देश के हित में है.