प्रदेश में अब इमारती लकड़ी के उपयोग का लायसेंस पांच साल के लिये मिलेगा


स्टोरी हाइलाइट्स

प्रदेश में अब वनोपज इमारती लकड़ी के उपयोग का पंजीयन तथा आरा मशीनों को लायसेंस पांच वर्ष के लिये दिया जाये......

48 साल पुराने नियमों में बदलाव डॉ. नवीन जोशी भोपाल। प्रदेश में अब वनोपज इमारती लकड़ी के उपयोग का पंजीयन तथा आरा मशीनों को लायसेंस पांच वर्ष के लिये दिया जायेगा। इसके लिये वन विभाग ने 48 साल पुराने मप्र वन उपज व्यापार विनियमन काष्ठ नियम 1973 तथा 37 साल पुराने मप्र काष्ठ चिरान नियम 1984 में बदलाव कर दिया है। उल्लेखनीय है कि काष्ठ नियम 1973 के तहत इमारती लकड़ी के उपयोग हेतु विनिर्माता/व्यापारी एवं भवन निर्माण ठेकेदार को 10 घनमीटर तक लकड़ी के उपयोग के लिये एक हजार रुपये तथा बढ़ई की दुकान, फर्नीचर बनाने वाले, जिसमें टर्नरी आर्टीजन्स शामिल हैं, के लिये एक घनमीटर लकड़ी के उपयोग के लिये 200 रुपये वार्षिक पंजीकरण शुक्ल देना होता है। यह पंजीकरण एक से तीन साल के लिये होता था जिसे अब बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया है। यानि अब ये लोग पांच साल का शुक्ल देकर पांच साल के लिये अपना वन विभाग में पंजीकरण करा सकेंगे। इसी प्रकार, काष्ठ चिरान नियम 1984 के तहत आरा मशीनों को लायसेंस तीन साल के लिये दिया जाता था जिसे अब बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया है। इसी प्रकार, लायसेंस का नवीनीकरण एक साल के लिये किया जाता था परन्तु अब इस अवधि को भी बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया है। नियमों में प्रावधान है कि आरा मशीनों को लायसेंस एक हजार रुपये शुल्क देने पर दिया जायेगा परन्तु वर्ष 1996 से नई आरा मशीनों को लायसेंस देने पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से रोक लगी हुई है। वर्ष 1996 के तक प्रदेश में कुल साढ़े तीन हजार आरा मशीनें लायसेंस लेकर संचालित हैं। आरा मशीनों के लायसेंस का नवीनीकरण शुल्क पहले सालाना सौ रुपये था जिसे अब बढ़ाकर ढाई हजार रुपये कर दिया गया है। विभागीय अधिकारी ने बताया कि ईज ऑफ डूईंग बिजनेस के तहत नियमों का सरलीकरण किया गया है तथा पंजीकरण एवं लायसेंस के लिये लोगों को बार-बार वन विभाग के कार्यालयों में नहीं आना पड़ेगा तथा पांच साल के लिये यह मिल जायेगा।