पाप और दण्ड में कोई सहभागी नहीं होता- सन्दर्भ विकास दुबे घटना -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

सन्दर्भ विकास दुबे घटना पाप और दण्ड में कोई सहभागी नहीं होता -दिनेश मालवीय टेलीविजन पर गेंगेस्टर विकास दुबे के परिवार के लोगों की बातें सुनकर मुझे पुराणों में प्रसिद्ध वाल्मीकि की कथा याद आ गयी. इस कथा में बताया गया है कि डाकू रत्नाकर किस तरह अपने परिवार के रुख के कारण महान कवि वाल्मीकि बन गया. डाकू रत्नाकर को एक बार महर्षि नारद मिले. उसने उन्हें लूटना और मारना चाहा. नारदजी ने उससे पूछा कि तुम तुम डकैती और दूसरे पाप कर्म किसके लिए करते हो? उसने कहा कि अपने परिवार के लिए. नारदजी ने कहा कि क्या तुम जिस परिवार के लिए ये पाप कर्म कर रहे हो, वे तुम्हारे पापों और उनके कारण मिलने वाले दण्ड में तुम्हारे भागीदार होंगे. रत्नाकर ने कहा कि क्यों नहीं होंगे? मैं यह सब उन्हीं के लिए तो करता हूँ. नारदजी ने कहा कि तुम एक बार अपने परिवार से यह बात पूछकर आ जाओ, फिर मुझे लूट लेना या मार देना. रत्नाकर ने जाकर अपने परिवार से पूछा कि मैं जो पाप कर्म कर रहा हूँ, उसमें और उनके कारण मुझे मिलने वाली सजा में क्या तुम भागीदार हो? सबने मना कर दिया. यहाँ तक कि उसकी पत्नी, जिसे वह रोज़ लूटे हुए गहने लाकर देता था, उसने भी कह दिया कि मैं तुम्हारे पापकर्मों और उनके दण्ड में बिल्कुल भागीदार नहीं हूँ. दण्ड तो तुम्हें ख़ुद ही भुगतना पड़ेगा. रत्नाकर पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा. उसे बोध हो गया. वह लौटकर नारदजी के पास गया और पूरा विवरण उन्हें बताया. नारदजी ने कहा कि यही जीवन का परम सत्य है. तुम जो भी अच्छा-बुरा करते हो, उसके लिए तुम ख़ुद जिम्मेदार हो और उसका फल भी अकेले तुम्हें ही भुगतना पड़ेगा. रत्नाकर को बोध हुआ और वह महर्षि नारद से राम नाम का मन्त्र लेकर तपस्या करने लगा. उस पर भगवान् की कृपा हुयी और वह महान ऋषि-कवि बने. विकास दुबे की पत्नी चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी कि उसके पति के साथ जो हुआ वह ठीक ही हुआ. वह गलत कामों में लिप्त था. उसके पिता भी उसके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुआ. उसने कहा कि विकास ने हमेशा गलत काम किये और वह इसी सजा के लायक था. जब वह घर में नोटों की गड्डियां पत्नी को लाकर दे रहा होगा या बहुमूल्य गहने बनवा रहा होगा, तब क्या उसने उसे बुरे काम करने से रोकने की कोशिश की थी? यह भी हो सकता है कि उसने ऐसी कोशिश की हो लेकिन वह न माना हो. विकास के अंतिम संस्कार में शामिल उसके रिश्तेदार भी यही कह रहे थे कि वे उसके रिश्तेदार अवश्य हैं, लेकिन उनका उसके किसी भी काम से कोई सम्बन्ध नहीं है. विचारणीय बात है कि जिस परिवार के नाम पर व्यक्ति अच्छे-बुरे काम करता रहता है और यह मानता है कि वह बहुत ठीक काम कर रहा है, वही परिवार बुरा समय आने पर उसके साथ नहीं होता. विकास इतना भाग्यशाली नहीं था कि उसे कोई महर्षि नारद मिल जाते और सही रास्ता दिखा देते. लेकिन गलत और बुरे काम करने वाले हर व्यक्ति के लिए यह फिर से एक बार सबक बन गया है कि, जो कुछ भी करो, लेकिन अपना ज़मीर बेंचकर मत करो. तुम जिनके लिए या जिनके नाम पर यह सब कर रहे हो, वे तुम्हारे बुरे समय में तुम्हारा साथ छोड़ देंगे. आज जो लोग रिश्वतखोरी कर रहे हैं, चोरी कर रहे हैं, बेईमानी कर रहे हैं, या इन कामों में सहयोगी बन रहे हैं उन्हें इस घटना से सबक लेना चाहिए. आपको अपने कर्मों का हिसाब ख़ुद ही देना है. यह सबक याद रखिये कि आपके पाप-कर्मों और उनके दण्ड में कोई भागिदार नहीं होगा.