स्टोरी हाइलाइट्स
येही बात कइ सारी दुनिया मा रोना।कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना।निकरतय न बाटइ केहू अपने घर से।सँसी बइठ दुनिया कॅरोना के डर से।चला चीन से...
कोरोना पर अवधि कवितावैश्विक महामारी, एक अवधी रचना
येही बात कइ सारी दुनिया मा रोना।
कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना।
निकरतय न बाटइ केहू अपने घर से।
सँसी बइठ दुनिया कॅरोना के डर से।
चला चीन से जानलेवा कॅरोना।
थहाइस कुछय दिन मा दुनिया कै
ऊ अमरीका इटली कि ईरान देखा।
छिनय मा बना कइसा शमसान देखा।
बनत जे रहेन सारी दुनिया कै आका।
कॅरोना के आगे भवा बन्द बाका।
न सगियान, बुढ़वा, न मुन्ना न मुनिया।
पटी जात बाटइ लहासय से दुनिया।
कि मुश्किल भवा लास मनई कै ढोना।
कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना।
कहाँ अब प्रकृति का संवारत बा मनई।
कि हर जंतु औ जीउ मारत बा मनई।
कीरा-फटींगा चिचोरत अहइ ई।
कि चिरई-चुरुंगुन मिरोरत अहइ ई।
हरेक जीव दुनिया मा बाटेन बराबर।
कि मनई तबो इनका काटेन बराबर।
घड़ा भरि गवा तौ ई परिणाम देखा।
मचा सारी दुनिया मा कोहराम देखा।
इ करनी के अनुसार भरनी भरत बा।
कि मनई पै मनई पै मनई मरत बा।
न सूझय दवाई, न जादू , न टोना।
कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना।
सरकार कोसिस सबइ कइ चुकी बा।
हियाँ सारी दुनिया कै धड़कन रुकी बा।
चलत ट्रैन बस न उड़ति बा जहाजइ।
भले कल्ह के बदले मा मरि जाइ आजइ।
न इस्कूल कालेज न आफिस कै नाटक।
भवा बन्द मंदिर और मस्जिद कै फाटक।
न देखे हम अस जानलेवा बिमारी।
लगावै न जानी ई कब केहकै पारी।
सोचत अहयँ सब कि अस का करी हम।
कि दुनिया मा ज़िन्दा रही, न मरी हम।
जौ मारे प्रकृति को, तो तुमहूँ मरो-ना।
कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना, कॅरोना।
न केहुका मिटावइ कै साजिस रची हम।
ई सोचा मुसीबत से कइसे बची हम।
छुआछूत से दूर एकांतबासा।
न हैं-हैं, न खैं-खैं, न झगड़ा, न झाँसा।
न करफू मा बाहेर तु निकरा घरे से।
न मतलब रखा भाय दुनिया भरे से।
सलामत जौ रहब्या तौ दुनिया मिले फिर।
परिवार लरिका कै बगिया खिले फिर।
जौ तू साथ देब्या तौ सब नीक होये।
कॅरोना न हम-सबके नजदीक होये।
जौ दूरिन से बोलब्या नमस्ते कॅरोना।
कॅरोना कहे तोहसे जुग-जुग जियो ना।
डॉ. अनुज नागेन्द्र, प्रतापगढ़ (उ.प्र.)