एमएसपी पर खरीदी प्रक्रिया प्रारंभ, फिर काहे का आंदोलन- सरयूपुत्र


स्टोरी हाइलाइट्स

Considering the possibilities of wheat bumper production, the government has already started the process of buying wheat on MSP at the support price.

एमएसपी पर खरीदी प्रक्रिया प्रारंभ, फिर काहे का आंदोलन- सरयूपुत्र किसानों की गेहूं की फसल पकने वाली है. गेहूं के बम्पर उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए समर्थन मूल्य पर, एमएसपी पर गेहूं खरीदी की  प्रक्रिया सरकार ने अभी से शुरू कर दी है. मध्यप्रदेश सरकार ने विधिवत विज्ञापन जारी कर किसानों से एमएसपी पर गेहूं विक्रय के लिए रजिस्ट्रेशन कराने का अनुरोध किया है. रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है. रजिस्ट्रेशन इसलिए किया जाता है कि खरीदी के समय किसानों को खरीदी केंद्रों पर लाइन न लगानी पड़े. उनको जब एस एम एस भेजा जाए, तभी अपना गेहूं लेकर खरीदी केंद्र पर पहुंचे. सरकार एक तरफ एमएसपी पर खरीदी की तैयारी कर रही है और दूसरी ओर आंदोलनकारी किसान एमएसपी पर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं. यह कितना हास्यास्पद है कि एमएसपी पर खरीदी हो रही है फिर भी अनावश्यक रूप से इसको विवाद का मुद्दा बनाकर आंदोलन में शामिल किया गया है. एमएसपी को लेकर लगातार किसानों को गुमराह किया जा रहा है. किसान आंदोलन ने एक और नया मोड़ ले लिया है. पंजाब में एमएसपी पर खरीदी की राशि सीधे किसानों को उनके खाते में देने की बात केंद्र सरकार ने उठाई और आढ़तियों ने आंदोलन की घोषणा कर दी. सरकार द्वारा किसानों के लिए बनाए गये तीनों कानून जो फिलहाल स्थगित हैं. उनके लिए जो आंदोलन खड़ा किया गया, उसमें आढ़तियों की भूमिका बताई जा रही थी. पंजाब में एमएसपी पर खरीदी की प्रक्रिया में मंडियों में आढ़तियों की महत्वपूर्ण भूमिका है. किसानों को उनकी फसल का भुगतान डायरेक्ट उनके खाते में नहीं होता. आढ़तियों के माध्यम से किसानों को भुगतान मिलता है. आढ़तिये किसानों को पहले से जो पैसा देकर रखते हैं, उसे काटकर किसानों को भुगतान किया जाता है. कृषि कानूनों से जो नई व्यवस्था बन रही है, उसमें किसानों को अपनी फसल मंडी या निजी व्यापारियों को बेचने का अधिकार होगा. इसका पैसा उन्हें सीधे मिलेगा.आढ़तियों की भूमिका सीमित होगी. मध्यप्रदेश में एमएसपी पर खरीदी पर किसानों को राशि सीधे उनके खातों में दी जाती है. फिर पंजाब में ऐसा क्यों होता है कि बिचौलिए के रूप में आढ़तिये होते हैं. यही है किसान आंदोलन की जड़ आन्दोलन तो चल रहा है, लेकिन इस बीच केंद्र सरकार ने अपना इरादा जाहिर किया है कि वह एमएसपी पर खरीदी पर उपज का मूल्य सीधे किसानों के खाते में दिया जाएगा. इरादा सामने आते ही आढ़तिये आंदोलन के राह पर चल पड़े. केंद्र सरकार का कृषि मंत्रालय ने गेहूं खरीदी का भुगतान सीधे किसानों को करने की योजना बना रहा है. केंद्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय मैं अधिकारियों की बैठक में इसका खाका तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं. पंजाब सरकार के अधिकारियों ने आढ़तियों वाली व्यवस्था ही जारी रखने की वकालत केंद्र के सामने की है. एमएसपी का मुद्दा किसान आंदोलन से ओझल होने की संभावना है, क्योंकि अगले कुछ दिनों में एमएसपी पर खरीदी प्रारंभ हो जाएगी. किसान अपनी उपज की बिक्री में लग जाएंगे. किसान आंदोलन मैं अब तक जो कुछ हुआ है, वह देश के सामने हैं, चाहे 26 जनवरी की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हो या किसान नेता राकेश टिकैत के आंसू. इन घटनाओं पर बहुत सारी क्रिया-प्रतिक्रिया सामने आई हैं. टिकैत जिस तरह से आंदोलन का नेतृत्व स्वयंभू रूप से संभाल रहे हैं, उससे किसानों के बीच चर्चाओं का दौर जारी है. टिकैत संसद को घेरने पर अड़े हुए हैं, जबकि किसानों का संयुक्त मोर्चा इससे इत्तेफाक नहीं रखता. टिकैत किसानों के नेता जरूर हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी छुपी नहीं है. वह एक बार विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. ऐसा लगता है कि जिस ढंग से आंदोलन को आगे वह जिस दिशा में ले जा रहे हैं, वह उनकी राजनीतिक इच्छा के अनुरूप है. पंजाब के नगरीय निकाय के चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में परिणाम आने को भी किसान आंदोलनकारियों ने अपना हथियार बनाने की कोशिश की. ऐसा प्रचारित किया गया कि किसान आंदोलन के कारण भाजपा का पंजाब के स्थानीय चुनाव में सूपड़ा साफ हो गया. अगर यह बात सही भी मानी जाए तो 2 दिन पहले ही गुजरात में भाजपा ने भारी बढ़त प्राप्त की है. इसका मतलब है, जो यह माना जा रहा है कि यह किसान आंदोलन राष्ट्रीय नहीं होकर पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र के किसानों से जुड़ा हुआ है, वह सही लग रहा है. सर्वोच्च द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति भी किसानों से बातचीत कर रही है. केंद्र सरकार भी  बातचीत का रास्ता खोले हुए हैं. फिर भी आंदोलनकारियों की ओर से गतिरोध बना हुआ है. आंदोलनकारी किसान कानून से आगे वोट की चोट पहुंचाने की रणनीति की कोशिश कर रहे हैं. किसान नेता अपने आंदोलन को धमकी के दौर में ले जा रहे हैं. वह यह कहने लगे हैं कि किसानों से पंगा सरकारों को बहुत महंगा पड़ेगा. किसान तो भारत की आत्मा है और किसान के बिना भारत की कल्पना नहीं हो सकती. लेकिन किसानों के नाम पर राजनीति को तो चलने देना सही नहीं होगा. फसल कटाई का समय आ रहा है और आंदोलनकारी आंदोलन की ताल ठोक रहे हैं. इसका मतलब है कि आंदोलनकारियों को खेती किसानी से सीधा कोई मतलब नहीं है. किसान को उसकी उपज का मूल्य हमेशा से कम मिलता रहा है. बिचौलिए उसका लाभ उठाते हैं. पहली बार सीधे किसानों को लाभ पहुंचाने की कोशिश हुई है और इस कोशिश को असफल करने के लिए आंदोलन कारी किसान समर्थक का दावा कर रहे हैं. वास्तव में कृषि कानूनों को लागू करने का विरोध किसानों की तरक्की के रास्ते पर स्पीड ब्रेकर खड़ा करने जैसा है.