जनदर्शन प्रदर्शन नहीं प्रशासन का जीवन दर्शन है, एक ही शैली हमेशा सफल हो, जरूरी नहीं.. सरयूसुत


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत के ज्ञात इतिहास में प्रशासन की जो शैली रही है, उसमें जनदर्शन, जन दरबार भारतीय प्रशासन का जीवन दर्शन रहा है...

जनदर्शन प्रदर्शन नहीं प्रशासन का जीवन दर्शन है, एक ही शैली हमेशा सफल हो, जरूरी नहीं.. सरयूसुत भारत के ज्ञात इतिहास में प्रशासन की जो शैली रही है, उसमें जनदर्शन, जन दरबार भारतीय प्रशासन का जीवन दर्शन रहा है. चाहे राजा रहे हों,ऋषि-मुनि या मुगल बादशाह. सभी की प्रशासन शैली जनदर्शन और जन दरबार के माध्यम से जन समस्याओं का समाधान करना प्रमुख रहा है. आज भी लोकतांत्रिक शासन में जन भावनाओं को समझना और समस्याओं के निराकरण के लिए जनता के बीच जाते हैं और वास्तविक स्थिति को समझते हैं. पहले मुख्यमंत्री निवास पर मुख्यमंत्री आम लोगों से मिलते थे. उनकी समस्याओं को सुनकर यथोचित कार्यवाही भी करते थे. लेकिन आजकल यह प्रथा बंद है. मध्य प्रदेश में भी अब तक जितने भी मुख्यमंत्री रहे हैं, वे जनदर्शन, जन-जनसाधारण से मुलाकात जैसे कार्यक्रम नियमित रूप से करते रहे हैं. “ग्राम सचिवालय”, “आपकी सरकार आपके द्वार”, “ग्रामीण नगर संपर्क अभियान” का भी यही उद्देश्य था. वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जनदर्शन कार्यक्रम करते रहे हैं. वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले भी उन्होंने जनदर्शन किया था. इसके अंतर्गत एक रथिया वाहन पर बैठकर जनता के बीच जाकर जनता को अपनी बात कहने के साथ उनकी बात सुनी जाती है. प्रत्यक्ष आने वाली समस्याओं का मौके पर ही निराकरण किया जाता है. प्रदेश के कुछ विधानसभा क्षेत्रों-रैगांव, जोबट, पृथ्वीपुर विधानसभा और खंडवा लोकसभा के चुनाव संभावित हैं. वर्ष 2018 के जनदर्शन कार्यक्रम बड़े पैमाने पर किए गए थे, लेकिन चुनाव परिणाम में जनता ने निराश किया था. भाजपा को सत्ता से उतार दिया था. कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन 15 महीने बाद अपने अंदरूनी असंतोष और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस से अलग होकर भाजपा में शामिल होने से भाजपा की सरकार बनी. सरकार के सरदार का दायित्व शिवराज को मिला. शिवराज को 2018 के चुनाव में जनता ने नकारा उपचुनाव में बागी विधायक, जो भाजपा में शामिल हुए थे, बड़ी संख्या में जीते और भाजपा सरकार को निर्वाचित बहुमत मिला. उपचुनाव में सफलता किसी एक व्यक्ति की सफलता नहीं कहा जा सकता, फिर भी इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम में नायक अथवा खलनायक ज्योतिरादित्य सिंधिया थे. इसलिए इस जीत का श्रेय सिंधिया को ही जाएगा. मध्य प्रदेश की राजनीति में बगावत पहले भी हुई थी. अर्जुन सिंह ने जब कांग्रेस छोड़ी थी, तब एक भी विधायक पार्टी छोड़ कर नहीं गया. विजय राजे सिंधिया ने जब डीपी मिश्र की सरकार गिराई थी, तब विधायकों ने पाला बदला था. उसके बाद आधुनिक समय में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी जब अपना राजनीतिक दम दिखाया, तब उनके समर्थक मजबूती के साथ उनके साथ खड़े रहे और बगावत में भी अपना कैरियर सिंधिया के लिए दांव पर लगाया. उमा भारती ने जब भाजपा छोड़ी थी, उनके साथ कोई नहीं गया. शिवराज जी गांव, गरीब और गुरु के सहायक नेता के रूप में पहचाने जाते हैं. उन्होंने गरीबों और कमजोर तबकों के लिए कई प्रशंसनीय कार्य किए हैं. तेरह साल मुख्यमंत्री रहते हुए 2018 में जनता ने उनको सत्ता के लिए नहीं चुना. जनादेश राजनेताओं की नीतियों की सफलता का पैमाना है. इस पैमाने पर 2018 में सरकार असफल हो गए थी. राजनीतिक उठापटक या जो भी कहें, शिवराज  फिर से मुख्यमंत्री बन गए. लगभग 18 महीने उनकी नई सरकार को हो गए हैं, लेकिन यह कार्यकाल न तो प्रदेश के प्रशासनिक तंत्र और न ही जनसामान्य में कोई उत्साह पैदा करने में सफल हो सका है. मुख्यमंत्री ने अपना सचिवालय जरूर नया कर लिया है, लेकिन नीतियों, कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की  प्रशासनिक शैली में कोई नयापन दिखाई नहीं पड़ रहा है. प्रदेश के संभावित चुनाव की दृष्टि से मुख्यमंत्री जनदर्शन यात्राएं मीडिया की खबर बनाने के अलावा किसी भी स्तर पर उत्साह पैदा कर रही हैं. इसमें बड़े सवाल है. ओरछा में जनदर्शन यात्रा के दौरान तहसीलदार और इंजीनियर को मौके पर निलंबित किया गया. सवाल यह है कि यदि  जनदर्शन यात्रा नहीं होती, तो क्या गड़बड़ियां करने वाले पर कार्यवाही हो पाती.  दो कर्मचारियों पर कार्यवाही से क्या यह माना जा सकता है कि बाकी प्रदेश में सब ठीक चल रहा है ? प्रतीक और टोकनिज्म की प्रशासनिक शैली कैसे पूरे प्रदेश में प्रशासनिक सुधार ला सकती है? जिन क्षेत्रों में जन दर्शन नहीं हो रहे हैं. वहां की जनता का क्या दोष है ? कुछ आदिवासियों को हेलीकॉप्टर से यात्रा कराना शिवराज का बहुत प्रशंसनीय भाव है. ऐसा मानते हैं कि प्रदेश के लोग और प्रदेश का विकास हेलीकॉप्टर और ऊंचाई पर पहुंचे उनकी भावना प्रशंसनीय है. लेकिन कुछ लोगों के प्रतीक से क्या प्रदेश का भला हो सकता है? पहले ऐसी कई प्रतीकात्मक योजनाएं बनी हैं, बहुत चर्चा में नहीं है.  “मां तुझे प्रणाम”, “किसानों की विदेश यात्रा”, “ गरीब विद्यार्थियों की विदेश में शिक्षा”जैसी ऐसी योजनाएं, जिनकी आज चर्चा नहीं हो रही है. “जनदर्शन गीत” 18 के पहले भी हुआ था. यह यात्राएं सरकार को सत्ता पर फिर से काम नहीं करा सकीं. अब उसी तरह की यात्राएं करने का कितना उचित हो सकता है? दमोह में भी जनदर्शन यात्रा हुई थी. उसके परिणाम हमारे सामने है. शासन-प्रशासन में उत्साह बना रहे, लोगों में सरकार के प्रति निराशा नहीं विकसित हो, इसके लिए जरूरी है कि सरकार में नयापन हो. वर्तमान सरकार में कोई नयापन दिखाई नहीं पड़ रहा है. मुख्यमंत्री की लोकप्रियता निसंदेह है, लेकिन सरकार के संचालन मैं निराशा का भाव स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है. एक ही शैली हर समय सफल हो, ऐसा जरूरी नहीं है. इसलिए हर व्यक्ति को अपनी शैली और कार्य दक्षता को समय के अनुरूप बदलने और बढ़ाने के लिए सतत प्रयास करना ही सफलता की कुंजी.