राग भोपाल (3)-सोने-चाँदी का तालाब -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

Suresh- friend J. Photugirafars also have an amazing eye. He took two photos. One photo is of Dopper (afternoon), in which J Talab will look like silver and one photo will be of evening, in which its water will look like gold.

राग भोपाल (3)-सोने-चाँदी का तालाब -दिनेश मालवीय   सुरेश- कों खां, तुमने आज का अखबार देखा? अनीस- नईं यार, आज अब्बा ने सुबे-सुबे सब्जी मंदी दौड़ा दिया. क्या कुछ ख़ास छपा हेगा? सुरेश- मत पूछो यार. एक ऐसा फोटू छपा हैगा के बस देखते ई रओ. अनीस- क्या किसी हीरोइन्नी का? सुरेश-नईं यार, अपने इसी तलाब का, जिसके किनारे हम बैठे हेंगे. अनीस- उसमें ऎसी क्या ख़ास बात हेगी? सुरेश- यार जे फोटूगिराफारों के पास भी गज़ब की नज़र होती है. उनने दो फोटू लिए. एक फोटू दोपेर (दोपहर) का है, जिसमें जे तलाब चाँदी का दिख रिया हेगा और एक फोटू शाम का, जिसमें इसका पानी सोने जैसा दिख रिया हेगा. बिलकुल सचमुच जैसा. मैं तो भोत देर तक देखता ई रे गिया. जिसने भी फोटू लिए, उसे सलाम. अनीस- घर जाके ज़रूर देखूँगा. सुरेश- हाँ खां, देखना मत भूलना. मज़ा आ जाएगा. अनीस- मगर यार कुछ भी कओ, अपना बड़ा तलाब है भोत गज़ब का. क्या इत्ता बड़ा तलाब और कईं भी हेगा? बिलकुल समंदर घाईं दिखता है. सुरेश- पता नईं. मैंने तो कभी समंदर भी नईं देखा. फिल्मों वगेरा में जरूर दिखता हेगा. कुछ के नईं सकता. अनीस- यार, इस तलाब के बारे में भोत सारे किस्से मशहूर हेंगे. सुरेश- किस्से तो फिर कभी सुनाऊंगा, जो मैंने अपने दादाजी से सुने हेंगे. मगर अपने छोड़ू भोपाली का एक मज़ेदार वाकया जरूर याद आ रिया हेगा. अनीस- चलो बोई सुनाओ. जे किस्सा फेमस अखबारनबीस नासिर कमाल मरहूम ने अपने एक आर्टिकल में लिखा था. सुरेश- पाकिस्तान के करांची से एक नौजवान सैलानी आया था. जे उसकी पेली भोपाल विजिट थी. बो अपने मामूजात भाई के साथ बड़ा तलाब देखने गिया. उसने जब जे तलाब देखा तो उसकी आँखें फटी रे गईं. उसने अपने भाई से पूछा के जे तलाब कित्ता बड़ा है? भाई ने जबाव दिया के इसकी चौड़ाई दिल्ली तक और लम्बाई बोम्बे तक है. करांची के नौजवान का मुझ खुला का खुला रे गिया. भाई ने उसे आगे समझाते हुए कहा के तुम इसकी गेराई (गहराई) का अंदाजा इस बात से लगा सकते हो के अरब सागर इसके नीचे से शुरू होता है. ख़ास बात जे हेगी के खारा पानी इसके ऊपर से निकलकर के भी इससे मिक्स नहीं होता. करांची वाले भाई के तो जबड़े हिल गये. इसके बाद भाई ने और आगे कुछ जड़ दिया. उसने करांची वाले भाई से कहा के एक वक्त था जब समंदरी लुटेरे इस तलाब में तिजारतियों और जहाज के मुसाफिरों को लूट लेते थे. एक बार भोपाल रियासत के एक अफसर के कुछ रिश्तेदार अफगानिस्तान से जहाज से ज़रिये भोपाल आ रहे थे. लुटेरों ने उने लूट लिया. बो आगबबूला हो गया. तैश में आ के उसने उसी वक्त अपनी फ़ौज को तलाब को दो हिस्सों में बांटने का हुक्म दे दिया, जिससे लुटेरे आसानी से तलाब में घूम फिर नईं सकें. इस तरेह छोटा तलाब बन गिया. इतना सुनने तक करांची वाले भाई की आँखें बहार आने जैसी हो गईं. उसने और हैरानी के साथ पूछा के अगर जे तलाब इत्ता बड़ा है, तो ज़मीन पे उत्ता ही कों नईं दिखता? भोपाली भाई बोला के असल में जे तलाब ज्यादातर ज़मीन के भीतर है. ज़मीन के ऊपर सिर्फ इसका एक हिस्सा दिखता हेगा. करांची वाले भाई ने फिर और ज्यादा हैरानी से पूछा के क्या इसका ज़मीन के नीचे का हिस्सा पाकिस्तान तक फैला है? भोपाली भाई ने तपाक से कहा के हाँ हाँ, बात तो जेई है. मगर पार्टीशन के बाद इण्डिया की गवर्नमेंट ने इसे बिलाक कर दिया हेगा.