जनहित को प्राथमिकता पर रखती थीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया : लव स्टोरी से लेकर संघर्ष की अंतहीन दास्तान


स्टोरी हाइलाइट्स

जनहित को प्राथमिकता पर रखती थीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया

भाजपा की वरिष्ठ नेत्री और ग्वालियर राजघराने की पूर्व राजमाता स्वर्गीय विजयराजे सिंधिया ने जीवन पर्यंत जनता के हितों को प्राथमिकता पर रखा। उनका मानना था कि जनता की वजह से ही हम यहां हैं, यदि लोग खुशहाल और समृद्ध नहीं होंगे तो हमारे रहने का कोई मतलब नहीं है। साठ के दशक में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री डी पी मिश्रा ने उनको लेकर टिप्पणी की तो राजमाता सह गईं, लेकिन 1967 में ग्वालियर में हुए छात्र आंदोलन को प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा गोली चलाकर और लाठीचार्ज कर दबाया तो उन्होंने विरोध किया। कांग्रेस में रहते हुए भी लाठीचार्ज को बर्बर बताया और सरकार की निंदा की। इस आंदोलन में श्यामराव की गोली लगने से मौत हो गई थी। इसके बाद भोपाल में उन्होंने मुख्यमंत्री डी पी मिश्रा से मुलाकात की। मुख्यमंत्री ने छात्र आंदोलन को छोड़कर किसी भी विषय पर बात करने के लिए कहा तो वह बिना चर्चा किये लौट आईं। उन्होंने तय किया कि छात्र विरोधी सरकार अब ज्यादा दिन नहीं चलेगी। इसके बाद मध्यप्रदेश में हुए सियासी घटनाक्रम के बीच डी पी मिश्रा को इस्तीफा देना पड़ा और श्री गोविंदनारायण मुख्यमंत्री बने।

Ayodhya Ram Mandir Women leadership played very Vital role for Ram Mandir in Ayodhya
शासकीय भगवत सहाय कालेज के पूर्व प्राचार्य डा योगेंद्र मिश्र  जो की 1967 में हुए छात्र आंदोलन में डाक्टर योगेंद्र मिश्र यूनियन के सचिव रहकर नेतृत्व कर रहे थे के अनुसार 1967 में ग्वालियर की सरकारी प्रेस में बजट छाप रहा था। इसकी एक कॉपी उन्हें मिली। इसे उन्होंने श्री नारायण कृष्ण शेजवलकर को दिखाया। शाम को राजमाता से चर्चा करने के बाद वे और शेजवलकर जी कार से भोपाल रवाना हुए। उस रात भारी बारिश हो रही थी। शिवपुरी के करीब पहुंचे तो यहां नदी का पानी पुल के ऊपर से बह रहा था। सुबह पहुंचना था, इसलिए जोखिम लेकर पुल से कार निकालकर सुबह भोपाल पहुंचे। वहां  श्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा से मिलकर उन्हें कॉपी दी। इसके बाद सदन में जो हुआ वह सबके सामने है। यह सब राजमाता की वजह से ही संभव हो पाया था।


1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के अटल बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश की ग्वालियर सीट से उम्मीदवार थे और कांग्रेस ने उनके खिलाफ उन्हीं की पार्टी की राजमाता विजयाराजे सिंधिया के पुत्र माधवराव सिंधिया को खड़ा कर रखा था. इस चुनाव में कांग्रेस सहानुभूति की लहर पर सवार थी, तो राजमाता के सामने पार्टी व पुत्र के बीच चुनाव का धर्मसंकट आ खड़ा हुआ था. अटल ने खुद को उनका धर्मपुत्र बताकर इस संकट को और बढ़ा दिया था, जबकि ग्वालियरवासियों का कहना था कि राजमाता के लिए पुत्र और धर्मपुत्र में से एक का चुनाव आसान नहीं होगा. लेकिन 1980 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली जाकर श्रीमती इंदिरा गांधी को उनके गढ़ में चुनौती दे चुकी राजमाता इस धर्मसंकट से जल्दी ही उबर गईं और धर्मपुत्र का प्रचार करने निकल पड़ीं.

यह लगभग वैसी ही बात थी जैसे इलाहाबाद के ऐतिहासिक उपचुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह और सुनील शास्त्री आमने-सामने हुए तो दिवंगत प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की पत्नी श्रीमती ललिता शास्त्री ने अपने बेटे सुनील के बजाय पुत्रवत विश्वनाथ प्रताप सिंह को आशीर्वाद दिया था. अलबत्ता, वे यह जोड़ना भी नहीं भूली थीं कि बेटों को माताओं को ऐसे जलते हुए क्षणों से नहीं गुजारना चाहिए. खैर, विपरीत राजनीतिक हवा के बावजूद अटल खुश थे कि उन्होंने सिंधिया राजघराने के प्रति लोगों की निष्ठा को मां और बेटे के बीच बांटने में सफलता पा ली है, जिसका लाभ उन्हें मिलेगा लेकिन चुनाव नतीजे ने उन्हें बेहद निराश किया और मतगणना में माधवराव सिंधिया ने उन्हें बड़े अंतर से हरा दिया.

एक दिन में लिया शादी का फैसला

ग्वालियर रियासत के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने शादी जैसा महत्वपूर्ण निर्णय एक दिन में ही लिया था। मुंबई के ताज होटल की पहली मुलाकात में वह भावी महारानी को दिल दे चुके थे। विरोध के बावजूद वह शादी के फैसले पर अटल रहे।

ऐसी थी लव स्टोरी...

1. सागर के नेपाल हाउस में पली-बढ़ी राजपूत लड़की लेखा दिव्येश्वरी की महाराजा जीवाजी राव से मुलाकात मुंबई के होटल ताज में हुई।

2. महाराजा को लेखा पहली ही नजर में भा गईं थी। उन्होंने लेखा से राजकुमारी संबोधन के साथ बात की।

3. इस दौरान जीवाजी राव चुपचाप सब बातें सुनते रहे और लेखा की सुंदरता व बुद्धिमत्ता पर मुग्ध होते रहे।

4. उन्होंने अगले दिन लेखा को परिवार समेत मुंबई में सिंधिया परिवार के समुंदर महल में आमंत्रित किया।

5. समुंदर महल में लेखा को महारानी की तरह परंपरागत मुजरे के साथ सम्मानित किया गया, तो कुंजर मामा समझ गए कि उनकी लेखा 21 तोपों की सलामी के हकदार महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की महारानी बनने वाली है।

6. कुछ दिनों बाद महाराजा ने अपनी पसंद व शादी का प्रस्ताव लेखा के मौसा चंदन सिंह के जरिए नेपाल हाउस भिजवा दिया।

7. बाद में उन्होंने शादी का एलान कर दिया। इस शादी का सिंधिया परिवार और मराठा सरदारों ने विरोध किया था।

8. शादी के बाद महाराजा जीवाजी राव जब अपनी महारानी को लेकर मौसा-मौसी सरदार आंग्रे से मिलवाने मुंबई ले गए, तो वहां भी विरोध झेलना पड़ा। हालांकि, बाद में विजया राजे ने अपने व्यवहार और समर्पण से सिंधिया परिवार व मराठा सरदारों का विश्वास व सम्मान जीत लिया था।

भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थीं विजयाराजे

विजयाराजे सिंधिया भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में से एक थीं। मप्र की राजनीति में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है। 1967 में मप्र में सरकार गठन में उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विजयाराजे सिंधिया का सार्वजनिक जीवन  प्रभावशाली और आकर्षक था।

यह था राजमाता का असली नाम

राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। विजयाराजे सिंधिया के पिता महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन जिला के डिप्टी कलेक्टर थे, उनकी माता 'विंदेश्वरी देवी' थीं। विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम 'लेखा दिव्येश्वरी' था। 21 फरवरी 1941 में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से विवाह हुआ। पति की मृत्यु के बाद वह राजनीति में सक्रिय हुई और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना संसदीय क्षेत्र से सांसद रहीं। से स्वास्थ्य खराब हो गया। 25 जनवरी 2001 में उनका निधन हो गया।

पति के नाम पर खुलवाया विश्व विद्यालय
चित्र:The Maharaja of Gwalior.jpg - विकिपीडिया
पति जीवाजी राव सिंधिया के नाम पर विश्वविद्यालय खुलवाया। तत्कालीन प्रदेश सरकार से वित्तीय मदद दिलवाई। शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए उन्होंने अपनी निजी संपत्ति जिसमें भवन शामिल हैं, उसमें सरस्वती शिशु मंदिर, गोरखी शिशु मंदिर, सिंधिया कन्या विद्यालय, एएमआई शिशु मंदिर और एमआईटीएस खुलवाए। आज भी ये स्कूल और इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित हैं। ऑल इंडिया अध्यापक कॉन्फ्रेंस या मेडिकल कॉन्फ्रेंस ग्वालियर में हुई, उसमें देश भर से आए शिक्षकों और डॉक्टरों को महल में भोज पर बुलाया गया। उनकी सादगी देखकर अध्यापक और डॉक्टर उनके प्रशसंक बन गए थे। ग्वालियर में पूर्व में मिलिट्री के कर्नल और जनरलों का आना-जाना लगा रहता था, वे उनको महल में बुलाकर खाना खिलाती थीं।

बेटियों को दी भरपूर धन दौलत
विजया राजे सिंधिया की उत्तराधिकारी बेटी यशोधरा का अपमान कब तक: आज भी जनता उनको चाहती है. – द न्यूज़ लाइट2001 में विजयाराजे सिंधिया का निधन हो गया था। विजयाराजे की वसीयत के हिसाब से उन्होंने अपनी बेटी को तमाम जेवरात और अन्य कीमती चीजें दी थीं। यहां तक कि अपने राजनीतिक सलाहकार और बेहद विश्वस्त संभाजीराव आंग्रे को विजयाराजे सिंधिया ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया। विजयाराजे सिंधिया की दो वसीयतें सामने आई थीं। एक 1985 और दूसरी 1999 की। वसीयत विवाद को लेकर कोर्ट में चला गया था।

बेटे को अंतिम संस्कार में शामिल होने से मना किया

विजयाराजे अपने बेटे माधवराव सिंधिया से इतनी नाराज थीं कि 1985 में अपने हाथ से लिखी वसीयत में उन्होंने माधवराव सिंधिया को अंतिम संस्कार में शामिल होने से भी इनकार कर दिया था। हालांकि 2001 में उनके निधन के बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने ही उनकी चिता को मुखाग्नी दी थी।

महल में रहने के लिए बेटे से किराया मांगा

विजयाराजे सिंधिया पहले कांग्रेस में थीं, लेकिन कहा जाता हे इंदिरा गांधी द्वारा राजघरानों के प्रीवी पर्स खत्म करने के बाद दोनों के बीच ठन गई और विजयाराजे जनसंघ में शामिल हो गई। उनके बेटे माधवराव सिंधिया भी कुछ समय तक जनसंघ में रहे, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली। विजयाराजे सिंधिया ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें लाठियों से मारा था। उनका आरोप था कि माधवराव सिंधिया ने ही उन्हें गिरफ्तार करवाया था। राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के साथ-साथ मां-बेटे के बीच निजी रिश्ते भी इतने खराब हो गए थे कि विजयाराजे ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहने के लिए माधवराव सिंधिया से किराया भी मांग लिया। विजयाराजे से माधवराव सिंधिया से एक रुपए साल का किराया मांगा था।


एक बेटी सीएम, तो दूसरी प्रदेश में मंत्री

विजयाराजे सिंधिया की शादी 1941 में ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया से हुई थी। उनके पांच बच्चे थे। सबसे बड़ी बेटी पद्मावती राजे सिंधिया की शादी त्रिपुरा के महाराजा किरीट देब बर्मन से हुई थी। 1964 में पद्मावती राजे का निधन हो गया था। दूसरी बेटी ऊषाराजे सिंधिया की शादी नेपाल के शाही खानदान में पशपुति शमशेर जंग बहादुर राणा से हुई थी। वे राजनीति से दूर हैं। उनके बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस की सरकार के दौरान केंद्र में मंत्री रह चुके थे। 2001 में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। एक बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं। तो सबसे छोटी यशोधराराजे सिंधिया मप्र सरकार में मंत्री हैं।

आठ बार रही सांसद

ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से उनका विवाह 21 फरवरी 1941 को हुआ था। पति के निधन के बाद वे राजनीति में सक्रिय हुई थी और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना से सांसद रहीं। 25 जनवरी 2001 में उन्होंने अंतिम सांस लीं।