राम भगवान होते हुए भी पत्नी को ढूंढते फिरते थे क्यूँ?


स्टोरी हाइलाइट्स

राम भगवान होते हुए भी पत्नी को ढूंढते फिरते थे क्यूँ? श्री तुलसी रचित रामचरितमानस से कथा  | यह कथा शिवपुराण में भी है | तुलसी रामायण - बालकाण्ड में यह प्रसंग आता है -> शिव जी राम जी के भक्त थे - तब श्री सती माँ उनकी संगिनी थीं | उनके मन में भी यही सवाल उठा की "क्या यह सीता सीता कह कर जंगलों में बिलखता भटकता हुआ साधारण मानव वे राम हो सकते हैं जो मेरे शंकर जी के पूज्य हैं ?" जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी। हर अंतरजामी सब जानी॥ सुनहि सती तव नारि सुभाऊ। संसय अस न धरिअ उर काऊ॥ वे कुछ बोल नहीं रही थीं, किन्तु सर्वज्ञ शिव शम्भू उनके मन की बात समझ गए थे - | उनकी यह शंका शिव जी को अच्छी न लगी - और उन्होंने सती माँ को समझाया भी | किन्तु सती माई का मन न माना | उन्होंने परीक्षा लेने के लिए सीता का रूप धरा और वन में "हे सीते" कहते रोते भटकते राम के सामने गयीं, की यदि यह मानव भ्रमित हुआ तो जान जाऊंगी कि ये "सृष्टिकर्ता राम" नहीं हैं | पुनि पुनि हृदयं बिचारु करि धरि सीता कर रूप। आगें होइ चलि पंथ तेहिं जेहिं आवत नरभूप॥ उन्हें देखते ही श्री राम (जो सब कुछ जानते हैं ) बोले "आप यहाँ अकेली क्या कर रही हैं माते ? शिव शम्भू कहाँ हैं ?" सती कपटु जानेउ सुरस्वामी। सबदरसी सब अंतरजामी॥ सुमिरत जाहि मिटइ अग्याना। सोइ सरबग्य रामु भगवाना॥ जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू। पिता समेत लीन्ह निज नामू।  कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू। बिपिनि अकेलि फिरहु केहि हेतू॥  वे अपनी भूल जान कर सहम गयीं, की पति के समझाने के बावजूद मैं समझ न पायी और सत्य की परीक्षा ली | शिव जी के बार बार समझाने से भी मेरे मन को भ्रम बना रहा की जिस मानव को यह नहीं मालूम की उसकी पत्नी कहाँ है - वह सर्वज्ञ राम ? पति ने समझाया भी था कि जो प्रभु इस संसार का सृजन कर सकते हैं - क्या वे मानव रूप नहीं धर सकते - किन्तु मेरा मन न माना | इधर अब शिव जी कशमकश में पड़े - सती पत्नी को त्याग भी नहीं सकते, और जब यव मेरे प्रभु की पत्नी का रूप ले कर उनके सामने गयीं - तो मेरी माता हो गयीं - तो पत्नी रूप में स्वीकार भी नहीं सकते | क्या करें ? तो शिव भोले करोडो वर्षों की तपस्या में ध्यानरत हुए | सती भी जान गयीं कि पति क्यों ताप में बैठ गए हैं | तो उन्हें अपना शरीर त्यागना ही था - जो दक्ष के यज्ञ में उन्होंने अग्निसमाधि लेकर किया | फिर पार्वती बन कर फिर से जन्मीं - तपस्या कर शिव को पाया - और उनसे कहा कि "परभो - पिछली बार हमने दशरथ नंदन राम जी को सृष्टिकर्ता राम न मानने की जो भूल की -उससे इतना कुछ हुआ | तो फिर से हम माया से भ्रमित न हों - इसके लिए हमें रामकथा सुनाइए |" तब शिव जी ने उन्हें रामकथा सुनाई - जो रामायण नाम से हम सुनते और पढ़ते हैं |