धर्म बंधन का कारण नहीं…. 


स्टोरी हाइलाइट्स

धर्म बंधन का कारण नहीं….  धर्म का मूल हमे मुक्त करने के लिए है| मुक्ति का यहाँ अर्थ किसी ऐसे लोक में जाना नहीं जहाँ आनंद ही आनंद हो या मृत्यु के बाद जन्म मरण से मुक्ति भी धर्म का मूल नहीं| धर्म तो सबको मुक्त करना चाहता है| धर्म कहता है तुम जहाँ हो वहीँ मुक्त हो जाओ| धर्म कहता है पलायन मत करो, खड़े रहो| धर्म का कथन है तुम्हे जीवन दिया है जीने के लिए उसे ढोना नहीं है उसे नदी की तरह बहना सिखाना है| जीवन एक संवेदना है| संवेदना के बिना कैसा जीवन| जीवन में जितनी ज्यादा कृत्रिमता रहेगी सहज बहाव उतना कम होगा| जीवन को कृत्रिम साधन, संसाधन ही प्रभावित नहीं करते| जीवन को तो हमारे आर्टिफिशियल थॉट्स भी डिस्टर्ब कर देते हैं| जीवन वीणा के तारों की तरह है अत्यधिक संवेदनशील| इन तारों को थोड़ा सा भी दबाव दो तो सुर बदल जाते हैं| इन्हें ना तो ढीला छोड़ा जा सकता है ना बहुत ज्यादा ताना जा सकता है| जीवन अपने आप बहता है| अवरोध हमने खड़े किये हैं| धर्म  को कोसने वाले धर्म को जानते नहीं| वो धर्म को भ्रम पैदा करने वाला बताते हैं| वो कहते हैं धर्म तुम्हे जकड़ता है| वो कहते हैं धर्म बंधन है| जिन्होंने धर्म को नहीं जाना वही ऐसी बातें करते हैं| देश दुनिया में धर्म के विरोध में खड़ा होकर बौद्धिक पहचान बनाने वाले दरअसल अंदर से खाली हैं| अध्यात्म, आत्मज्ञान, और एनलाइटनमेंट की बातें करने वाले अधिकांश ज्ञानी सतही हैं| धर्म पूरी तरह व्यक्तिगत मामला है| धर्म को बाहर से थोपा नहीं जा सकता| ऋषि-मुनियों ने धर्म को थोपा नहीं है| उन्होंने अपने-अपने मत से  जीवन और धर्म को लेकर कितनी विधियां, पद्धतियां और धार्मिक साहित्य की इतनी बड़ी लाइब्रेरी इसलिए तैयार की ताकि व्यक्ति एक ही किताब के भरोसे बैठकर धर्मांध और लकीर का फकीर ना बन जाए| हिन्दू धर्म में इतनी किताबों का अर्थ यह है कि व्यक्ति अध्ययन, मनन, चिंतन करें और सत्य तक खुद पहुंचे| किताबों में विरोधाभास भी इसलिए है ताकि हम कंफ्यूज हो, हमारे मन में संदेह, प्रश्न पैदा हों और थक-हार कर अंतिम सत्य की खोज स्वयं करे| धर्म भ्रम पैदा कर सकता है, सही है क्यूंकि भ्रम से ही भटकाव होता है, भटकने से ही रास्ता मिलता है| धर्म ने कभी अप्राकृतिक संसार रचने की सलाह नहीं दी| अपने सुख सुविधा के लिए हमने प्रगति का रास्ता अख्तियार किया और विनाश के रास्ते तैयार किये| धर्म ने यह कभी नहीं कहा कि पूरी सृष्टि सिर्फ मनुष्य के मनोरंजन के लिए है| मनुष्य ने इस पूरी दुनिया को अपना मान लिया उसे लगता है कि वही सबका मालिक है| धर्म ने तो यह कहा कि मनुष्य अकेला नहीं इस दुनिया में मौजूद हर जीव जंतु का इस प्रकृति पर समान अधिकार है| धर्म ने मिटटी पत्थर को भी पूजने की सलाह दी क्योंकि इनमे भी परमात्मा है| धर्म ने कहा तुम पेड़ पौधों को भी पूजो क्यूंकि वही तुम्हारे प्राण का आधार हैं| पेड़ पौधों को ही ऑक्सीजन रुपी प्राण खीचने का विज्ञान पता है| मानव तुम इनका अहसान नही चुका सकते| धर्म ने कहा तुम वाहन, मशीन कलम को भी पूजो क्यूंकि उनके अंदर जो शक्ति है वो परमात्मा का ही स्वरूप है| तुम किसी को जड़ मत मानो सब में वही चैतन्य है|  धर्म सुख की खोज करना नहीं सिखाता| धर्म तो कहता है कि ईश्वर भी धरती पर आकर सुख के साथ दुःख भोगते हैं तुम भी दोनों को भोगो| निर्जीव को क्या सुख क्या दुःख लेकिन जीव हो तो दोनों ही अनुभव करोगे| अपने आपको हमने खुदने बाँधा है|अपनी सीमायें हमने खुद बनायीं है| हमने अपनी तुच्छ इच्छाओं को अहंकार को विजयश्री दे दी इसलिए ये मानव जाति के विनाश का कारण बन रहे हैं| हम जिस दाल पर बैठे हैं उसे ही काट रहे हैं| यही तो मानसिक गुलामी है जो धर्म ने नही दे हमने खुदको दी है|