अयोध्या में श्रीराम मंदिर के अवशेष : प्रो लाल को 100 वें जन्मदिन पर ईश्वरीय उपहार


स्टोरी हाइलाइट्स

- अयोध्या के अधूरे कार्य को प्रो लाल के छात्र केके मोहम्मद ने किया पूरा- अब हस्तिनापुर में शेष कार्य को पूरा करने की जरुरत

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के अवशेष : प्रो लाल को 100 वें जन्मदिन पर ईश्वरीय उपहार - अयोध्या के अधूरे कार्य को प्रो लाल के छात्र केके मोहम्मद ने किया पूरा - अब हस्तिनापुर में शेष कार्य को पूरा करने की जरुरत अभी दो दिन पहले खबर आई कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर के समतलीकरण के लिए की जा रही खुदाई में प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं । आखिर समतलीकरण के लिए हजारों फीट गड्ढा तो नहीं खोदा गया होगा, यानी यह अवशेष सतह पर ही पङे थे। 6 दिसंबर 1992 को कार सेवा में शामिल हुए मित्रों ने भी इसी तरह की बातें बताईं थीं । और यह सब कुछ कतई आश्चर्यजनक नहीं 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान विषय के अध्ययन के समय भी वहाँ मंदिर होने के सबूत पता लगे थे। एएसआई की रिपोर्ट के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवम्बर में फैसला सुनाया है।   लेकिन इस सबके बीच आज सोशल मीडिया से पता चला कि सबसे पहले अयोध्या में राम मंदिर की बात कहने वाले एएसआई के तत्कालीन निदेशक प्रो बीबी लाल ने 2 मई को 100 वां जन्मदिन मनाया। यह वर्ष उनका जन्म शताब्दी वर्ष है और भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय इसे आयोजित कर रहा है। मंत्रालय ने उनके कार्यों पर ई बुक प्रकाशित की है और विभाग के मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने जन्मदिन पर प्रो लाल के निवास पर जाकर उन्हें शुभकामनाएं भी दी थीं । मुझे लगता है मई के महीने में ही अयोध्या में मंदिर के सबूत इस तरह सामने आना प्रो लाल को ईश्वरीय उपहार है। आपको बता देँ कि 1976 में आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया ने अयोध्या में उत्खनन किया था और मंदिर के सबूत पाए थे, लेकिन उस समय उस रिपोर्ट को दबा दिया गया। बाद के वर्षों में डा केके मोहम्मद की रिपोर्ट पर मंदिर की बात साबित हुई । खास बात यह है कि डा केके मोहम्मद आर्कियोलाजी के,एक विद्यार्थी के रूप में प्रो लाल की टीम में शामिल थे। डा मोहम्मद ने अपनी आत्मकथा में इस पूरे वृतांत का उल्लेख करते हुए लिखा है - "उसी समय हमने यह पता कर लिया था कि बारहवीं शताब्दी के जिन खंभों पर मस्जिद बनी थी, वे मंदिर के थे। खुदाई में ब्रह्मा, विष्णु व अन्य प्रतिमाएं भी मिलीं थीं।" यह भी एक संयोग है कि प्रो लाल के छात्र रहे केके मोहम्मद की रिपोर्ट ने ही उनके अधूरे कार्य को पूरा किया । प्रो लाल को पद्मभूषण और डा मोहम्मद को पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया है। पूरे घटनाक्रम को देखो तो ऐसा लगता है जैसे सब कुछ "श्रीराम का ही रचा हुआ है।" अब वापस प्रो लाल की बात। उन्होंने एक और महत्वपूर्ण कार्य किया था। डा. बीबी लाल के नेतृत्व में 1951-52 में हस्तिनापुर में खुदाई हुई थी। हस्तिनापुर मेरठ से 48 किलोमीटर दूर बूढ़ी गंगा नदी के किनारे स्थित है। 1857 में पुरातत्ववेत्ता कनिंघल और 1880 में फ्यूहर ने भी हस्तिनापुर का दौरा किया। महाभारतकालीन पांडव टीला और दूसरे ऐतिहासिक स्थल आज भी मेरठ में मौजूद है। पांडव टीले पर ही एक कुआं बना है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस कुएं के पानी से ही द्रोपदी और पांडव स्नान करते थे।प्रो. लाल ने प्राचीन टीले की खुदाई कराई, तो यहां से महाभारतकालीन चित्रित धूसर मृदभांड और कई दूसरी सभ्यताओं के अवशेष मिले। एएसआई ने इस टीले को संरक्षित घोषित किया है। लेकिन अभी इस पर बहुत काम होना बाकी है। चावल के सबसे पुराने प्रमाण भी हस्तिनापुर के थे हस्तिनापुर उत्खनन के दौरान ही लगभग 3200 वर्ष पुराने मिट्टी के गेरुआ रंग के पात्र में चावल के प्रमाण मिले थे। मिट्टी के इस विशेष बर्तन में जले हुए चावल का टुकड़ा मिला था। यह भारत में चावल मिलने का अब तक का सबसे पुराना प्रमाण है। (चित्र में मंत्री प्रहलाद पटेल प्रो लाल को उनके जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए ) - शेष चित्र - अयोध्या में समतलीकरण में सामने आए अवशेष मनोज जोशी