रेरा ने अपने उद्देश्यों पर ही पानी फेरा: रो रहे हैं बिल्डर, भटक रहे उपभोक्ता -सरयूसुत


स्टोरी हाइलाइट्स

रियल स्टेट के क्षेत्र में सुधार और उपभोक्ताओं की बेहतरी के लिए गठित रियल स्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ने डेवलपर्स, कॉलोनाइजर्स.....

रेरा ने अपने उद्देश्यों पर ही पानी फेरा: रो रहे हैं बिल्डर, भटक रहे उपभोक्ता -सरयूसुत रियल स्टेट के क्षेत्र में सुधार और उपभोक्ताओं की बेहतरी के लिए गठित रियल स्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) ने डेवलपर्स, कॉलोनाइजर्स, बिल्डर, उपभोक्ताओं के लिए अवसर को बेहतर बनाने के बजाए रेरा ने अपने गठन के उद्देश्यों पर ही पानी फेर दिया है. पिछले कुछ दिनों से समाचार पत्रों में रेरा के बारे में डेवलपर्स और उपभोक्ताओं की ओर से हो रही दिक्कतों के बारे में खबरें छप रही थीं, लेकिन आज तो रेरा को लेकर एक बड़े अखबार में विज्ञापन के रूप में खबर छपी है, जिसमें उन परिस्थितियों का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिनके चलते बड़ी संख्या में आवासीय  प्रोजेक्ट रुके पड़े हैं. रियल एस्टेट सेक्टरसे जुड़े मजदूर,कंस्ट्रक्शन मैटेरियल सप्लायर सहित सभीको संकट का सामना करना पड़ रहा है. अक्सर यह देखा गया है कि, किसी भी क्षेत्र में सुधार के लिए जो नया सिस्टम बनाया जाता है, यदि वह सही ढंग से काम नहीं करे तो सुधार की बजाए यह उलटा काम करने लगता है. मध्यप्रदेश में रेरा का गठन लगभग 6 साल पहले किया गया था. इसके  पहले अध्यक्ष के रूप में तत्कालीन मुख्य सचिव एंटोनी डिसा पदस्थ हुए थे. उन्होंने नए सिस्टम चलाने का प्रयास किया. रेरा और सरकार के बीच अधिकारों को लेकर उस समय भी विवाद हुआ था. अंततः अध्यक्ष के कार्यकाल को सीमित करते हुए निर्धारित समय से पूर्व उनका समय समाप्त कर दिया गया था. उसके बाद काफी समय तक रेरा में नियुक्ति नहीं हो सकी. अभी नियुक्तियां हुई हैं, लेकिन जब से नई नियुक्तियां हुई है, तब से रेरा की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. बताया जा रहा है कि प्रक्रिया के नाम पर सारे प्रोजेक्ट के रजिस्ट्रेशन को रोका जा रहा है. इस तरीके की दस्तावेज और जानकारियां मांगी जा रही हैं, जो अनावश्यक है. कोई भी संस्था उसको नेतृत्व करने वाले के व्यक्तित्व और कार्यक्षमता के आधार पर चलती है. जो नौकरशाह पूरे अपने सेवाकाल में नियम कानून प्रक्रिया के नाम पर चलती हुई योजनाओं को भी ठंडे बस्ते में डालने में लगे रहते हैं, उनसे नए सिस्टम में उदार और जन हितेषी कार्यप्रणाली की अपेक्षा करना बेमानी सा है. वर्तमान रेरा के अध्यक्ष श्री ए पी श्रीवास्तव है.  एक समय सबसे वरिष्ठ नौकरशाह थे उन्हें मुख्य सचिव के पद पर पदस्थ होना चाहिए था, लेकिन उनके स्थान पर बी पी सिंह को मुख्य सचिव बना दिया गया था. सरकार की इस कार्यवाही से नाराज होकर श्रीवास्तव कई महीनों तक का अवकाश पर रहे. उस समय भी ऐसी चर्चा आई थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ने उनसे वादा किया है कि, भले ही वह मुख्य सचिंव उनको नहीं बना पाए हैं, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें कोई कोई ना कोई नया असाइनमेंट जरूर देंगे. इस वायदे के बाद ही उन्होंने प्रशासन अकादमी में कार्यभार ग्रहण किया था और सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें रेरा का अध्यक्ष बना दिया गया. आज उज्जैन के बिल्डर्स और डेवलपर्स ने जो एक पृष्ठ का विज्ञापन रूपी समाचार प्रकाशित कराया है, उसके अनुसार 29 प्रोजेक्ट अटके हुए हैं.  इससे 10,000 से ज्यादा परिवार प्रभावित हो रहे हैं. बाक़ी शहरों की भी यही स्थिति है. इसमें यह भी कहा गया है कि रेरा के कारण रियल स्टेट से जुड़े कामकाज पर 10 माह से बुरा असर पड़ रहा है. श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं कंस्ट्रक्शन पेंटिंग मजदूरी रा मटेरियल से लेकर बिल्डर्स का काम अटक गया है. शहर का डेवलपमेंट रुक गया है. दस माह में लगभग 30000 करोड का कारोबार प्रभावित हुआ है. उज्जैन की डेवलपर्स का कहना है कि शुरुआत में रेरा के अध्यक्ष और तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति को लेकर प्रोजेक्ट अटकते रहे. इसके बाद नए नियम बनाए जाने के लिए प्रोजेक्ट की अनुमति जारी नहीं की गई. नए प्रोजेक्ट्स की अनुमति नहीं मिलने से हजारों परिवारों के मकान का सपना अधूरा रह गया. शहरों में नई टाउनशिप नहीं आ पा रही हैं, जिससे शहर का डेवलपमेंट रुक गया है. निजी के साथ सरकारी एजेंसियों के प्रोजेक्ट भी अटके हुए हैं.बिल्डर्स एवं कॉलोनाइजर्स का कहना है रेरा मैं अभी केवल तारीख पर तारीख़ लग रही हैं. प्रोजेक्ट पूरे हो गए हैं और रेरा का नंबर नहीं दिया जा रहा है. कोरोना काल में वैसे ही इस क्षेत्र में मंदी का दौर आया था .अब जब माहौल सुधर रहा था तब रेरा की अड़चनों ने इस क्षेत्र की गतिविधियों पर पानी फेर दिया है. यह अत्यंत गंभीर स्थिति है. रेरा और सरकार को स्थिति स्पष्ट करना चाहिए कि इसकी कार्यप्रणाली के कारण रियल स्टेट को कितना नुकसान हो रहा है. किसी भी संस्था की कार्यप्रणाली और प्रक्रिया इतनी पारदर्शी होनी चाहिए कि एक निश्चित समय सीमा में कार्यों का निराकरण हो सके. रियल इस्टेट सेक्टर तो आम लोगों से सीधा जुड़ा हुआ है. इससे राज्य की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है, फिर सरकार क्यों आंख मूंदे हुए बैठी है और बिल्डर्स डेवलपर्स को अपनी बात कहने के लिए समाचार पत्रों में एक एक पेज के विज्ञापन रूपी समाचार प्रकाशित कराने पढ़ रहे हैं. यह स्थिति शायद इसलिए है कि किसी भी स्तर पर सुनवाई नहीं हो रही है. सरकार को ऐसी व्यवस्था करना चाहिए कि रेरा में समय बद्ध ढंग से कार्य संपन्न हो. दैनंदिन में तिथि वार रेरा की सर्विस  की गारंटी होनी चाहिए. अभी तो समस्या डेवलपर्स बिल्डर्स की है. आम जनता को जो समस्या हो रही है, उसके निराकरण की दिशा में तो  कोई उपयोगिता साबित ही नहीं हो रही है. शहर में जितनी भी  कॉलोनी या हैं उनमें लोगों को और वायदे के मुताबिक सुविधाएं प्राप्त नहीं हो रही हैं. उपभोक्ता एक बार मकान ले लेता है, तो मजबूरीवश जैसी भी परिस्थितियां हों, उसे रहना पड़ता है जबकि रेरा की जिम्मेदारी है कि जिन प्रोजेक्ट का रजिस्ट्रेशन करता है उनमें जो भी सुविधाओं का वायदा किया जाता है, उसको वह उपभोक्ताओं को सुनिश्चित करने की व्यवस्था करें. रेरा की कार्यप्रणाली पर सरकार को तत्काल ध्यान देकर इसमें जो भी ,आवश्यक सुधार हो करना चाहिए. इससे राज्य की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी.