साध्वी


स्टोरी हाइलाइट्स

नवदुर्गा के दूसरे दिन देवी के इस स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. इन्हें साध्वी, ब्रह्मचारिणी और शिवजी को पति रूप में पाने हेतु घोर ताप करने के कारण प...

साध्वी नवदुर्गा के दूसरे दिन देवी के इस स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. इन्हें साध्वी, ब्रह्मचारिणी और शिवजी को पति रूप में पाने हेतु घोर ताप करने के कारण पार्वती भी कहा जाता है. नवरात्रि के दूसरे दिन उनके इसी स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है.  पतिव्रता नारी को भी साध्वी कहा जाता है. भारतीय संस्कृति में पति के प्रति एकनिष्ठ होने को स्त्री के लिए सबसे बड़ा धर्म और उद्धार का कारण बताया गया है. देवी साध्वी का आचरण और चरित्र सारे जगत की स्त्रियों के लिए एक उदाहरण है. देवी सती के रूप में वह पिता द्वारा पति के अपमान को सहन न करते हुए पति के प्रतिकूल पिता के शुक्र से उत्पन्न देह का भी वह त्याग कर देती हैं. पति के प्रति ऐसा प्रेम विरले ही पाया जाता है. देवी के इस स्वरूप के दोनों हाथों में अक्षमाला और कमण्डलु शोभित हैं. पार्वती रूप में उन्होंने भगवन शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी. इसी कठोर ताप के कारण उन्हें तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी भी कहा जाता है. माँ ब्रह्मचारिणी को सर्वसिद्धिदायक माना जाता है. उनकी पूजा का मन्त्र है- दधानाकरपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥ देवी के इस स्वरूप की कथा के अनुसार, पिछले जन्म में देवी ने हिमाचल के घर जन्म लिया था. देवर्षि नारद के उपदेश से उन्होंने  भगवां  शंकर को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. एक हज़ार वर्ष तक इन्होंने सिर्फ फल-फूल खाकर और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्वाह करते हुए तपस्या की थी. कुछ दिनों तक घोर उपवास रखकर और खुले आकाश के नीचे बारिश तथा धूपमें बहुत कष्ट सहकर उन्होंने तपस्या जारी रखी. उन्होंने तीन हजार वर्ष तक टूटे हुए बिल्व पात्र खाए और इसके बाद इन्हें भी खाना छोड़ दिया. कई हज़ार वर्ष तक उन्होंने न पानी पिया और न कुछ खाया. पत्तों कोखाना  छोड़ देने के कारण इनका नाम अपर्णा पड़ा. इस घनघोर तपस्या के कारण देवी का शरीर बहुत क्षीण हो गया. देवताओं, ऋषियों, मुनियों आदि ने ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या की भूरि-भूरि सराहना की. उन्होंने  कहा कि आजतक किसीने इतनी घोर तपस्या नहीं की. तुम्हारे मनोरथ पूर्ण होंगे. तुम्हें भगवन शंकर पति रूप में प्राप्त होंगे. उन्होंने देवी को अपने घर लौट जाने को कहा.  रामचरित मानस में इसका बहुत सुंदर प्रसंग है. इसके अनुसार ऋषियों ने पार्वती को अपने अपने व्रत और तपस्या की परीक्षा ली. उन्होंने शिवजी के अनेक अवगुणों को बताते हुआ कहा कि तुम एक ऐसे व्यक्ति को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही हो, जो भीख मांग कर खाते हैं और स्वभाव से ही अकेले रहने वाले हैं. ऐसा व्यक्ति क्या घर बसा सकता है. हमें तुम्हारे लिए बहुत सुंदर और सद्गुणों से परिपूर्ण वर विचारा है. वह वैकुण्ठ में रहता है और लक्ष्मी का स्वामी है. पार्वतीजी कहती हैं कि चाहे घर बसे या उजड़े, मैं नहीं डरती.महादेव भले ही अवगुणों की खान और विष्णु सभी सद्गुणों के धाम हों, पर मैंने तो सिर्फ शिवजी को ही अपना पति बनाने की ठानी है. दरअसल शिवजी ने ही ऋषियों को पार्वती की परीक्षा लेने भेजा था. अंतत: शंकरजी और पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ.   पूजा-विधि  इस स्वरूप में देवी को चीनी का भोग लगाना चाहिए. दान भी चीनी का ही करना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि इससे साधक दीर्घायु होता है. पहले हाथों में पुष्प लेकर देवी के इस स्वरूप का ध्यान करें. इसके बाद उन्हें पंचामृत से स्नान कराकर अलग-अलग तरह के फूल, चावल, कुमकुम, सिन्दूर आदि अर्पित करें. उन्हें सफेद भूल बहुत प्रिय हैं. पश्चात् इन मंत्रों का उच्चारण करें- या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू। देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। इसके बाद आचमन कराएं. प्रसाद के बाद पान-सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें. फिर घी और कपूर मिलकर उनकी आरती करें.  उनका स्वरुप ज्योतिर्मय है. देवी के इस दूसरे स्वरूप की पूजा  करने से सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं. साधक की स्मरण शक्ति भी बढती है. साथ ही साधक जिस बात का भी संकल्प लेता है, उसकी पूर्ति होती है |