ब्रह्माँड के रहस्य -64 यज्ञ विधि सोम-8


स्टोरी हाइलाइट्स

ब्रह्माँड के रहस्य -64.............................. यज्ञ विधि सोम-8 ....................secrets-of-brahmand-64-yajna-vidhi-mon-8

सोम, सोना गाय,और बकरी                                                     ब्रह्माँड के रहस्य -64 यज्ञ विधि सोम -8 रमेश तिवारी सोम जैसे प्राण पदार्थ को खरीदने के लिये जिन वस्तुओं को मूल्य रुप में दिया जाता था आज उनके महत्व पर भी प्रकाश डाल लेते हैं। सोम चूंकि विश्व प्राण है अतः उसके स्तर का ही मूल्य चुकाना होगा। इस हेतु गाय, बकरी और स्वर्ण का विशेष उल्लेख है। अब अति संक्षेप में इन तीनों की खासियत भी देख लें- सोना और सोम दोनों ही अमृत हैं। पवित्र और आयुवर्धक। आल्हादकारी। सोम पान हो अथवा यज्ञ कार्य, दोनों में ही सोम का उपयोग होता था। इसके पीछे गहन विज्ञान छिपा है। और स्वर्ण..! स्वर्ण को तो लाखों साल तक भी जलाते रहो जलता ही नहीं। सोने की भस्म बनाकर, बल, वीर्य और प्राणों में वृद्धि की जाती थी। सोम खरीदने में बकरी का उपयोग किया जाता था, क्योंकि बकरी में परमात्मा का तेज है। बकरी का दूध पेट के लिए गुणकारी है। बकरी परमात्मा की वाष्प से उत्पन्न है। और गाय? गाय को सोम के मूल्य के रूप में देने के पीछे गाय में दस प्रकार की शक्तियों (वीर्यों) का होना है। गाय तो शक्ति का केन्द्र ही है। उसमें दस वीर्य रहते हैं। सोम खरीदते समय अर्घयु और सोम विक्रेता एक अभिनय सा करते हैं। सोम तो खरीदा ही जाना है। तय है। किंतु अर्घयु मोल भाव करता है। गाय के गुणों को गिनाता है। परन्तु सोम विक्रेता प्रतिष्ठित सोम के गुण नहीं बताता। जबकि अर्घयु गाय के गुणों का बार बार बखान करता है- कहता है! मैं सोम का सम्मान करता हूँ किंतु मूल्य कम करो क्योंकि गाय में दस वीर्य हैं। गाय से दस वीर्य अर्थात् द्रव्य उत्पन्न होते हैं- गाय का प्रतिध्रुक (ताजा निकाला) दुग्ध उसका एक वीर्य है। गर्म किया हुआ दुग्ध (श्रृतं), दूसरा, शरः (मलाई) तीसरा, दधि चौथा, मठा, पांचवां, आतन्जन (जावन, जिससे दूध जमता है) छटवां, नवनीत (कच्चे दूध से निकाला सारभाग) सातवां, घृत आठवां, आमिक्षा (गर्म दूध में दही डालने से फट कर निकला स्थूल भाग) नौवां तथा वाजिन (दूध फट जाने पर पृथक हुआ द्रव भाग) दसवां वीर्य है। यह सौदेबाजी 5 बार होती है। छै बार अथवा 4 बार क्यों नहीं.? इसका कारण है। संवत्सर। संवत्सर ही यज्ञ है। पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा ही संवत्सर है। जिस संवत्सर में 5 ऋतुएं (6 नहीं) होतीं हैं। सोम को खरीदने के पीछे भी पूरा विज्ञान छिपा है। ऋषियों ने पदार्थों को गुणों के आधार पर सूचीबद्ध किया। किस पदार्थ की वेल्यू क्या है। समाज के लिये क्या और कितना लाभदायक है फलां पदार्थ। अथर्ववेद वेद पर ही दृष्टि डालें, तो ज्ञात होता है कि आज की जो बीमारियां हैं, उनके उपचारों पर गंभीरता से प्रकाश डाला गया है। ह्रदय रोग, सर्वाइकल, टी.वी. ब्रेन हेमरेज सभी बीमारियों पर। अगस्त्य उनकी पत्नी लोपामुद्रा, अश्विनीकुमार और जमदग्नि सहित अनेक ऋषि महान वैज्ञानिक प्रमाणित होते हैं। अगस्त्य और लोपामुद्रा तो गर्भ विज्ञान के विशेषज्ञ ही थे। अश्विनी कुमारों ( नास्तय और दस्त्र, नेस्टरडम) की प्रतिभा का डंका बोलता था। उस समय के बडे़ से बडे़ रेस्कयू इन्हीं जुड़वां भाइयों ने किये। परेशानियों में फंसे लोगों को सहायता करना इनका मिशन ही था। सोने के हाथ, लोहे की टाँग बनाकर लगाना हो चाहें आंख, नाक, कान और गर्भ की सुरक्षा करना, यह दोनों भाई इन सब उपचारों के विशेषज्ञ थे। यहां तक कि गायों तक के पेट में पलने वाले गर्भ का उपचार कर लिंग परिवर्तन कर देते थे। वृद्धों को युवा बनाना तो इनके बांये हाथ का खेल था। और परशुराम के पिता और सहस्त्रबाहू के साढ़ू भाई ऋषि जमदग्नि तो बालों की उपचार कला के सर्वोत्तम जानकार थे। बालों का स्वास्थ्य कैसे अच्छा रहे, कैसे घने, काले, लंबे और चमकदार रहें, सब उपचार जानते थे। अथर्ववेद में जमदग्नि आदि ऋषियों का उल्लेख मिलता है। विज्ञान का तात्पर्य ही सनातन है। हिन्दुत्व है। जहां विज्ञान नहीं, समझ लो वह सनातन नहीं। तर्क और तथ्य ही हिन्दुत्व की पहचान है। सनातन का सत्य है। आज बस यहीं तक।  तब तक विदा। धन्यवाद।