भगवान श्रीराम की सरलता


स्टोरी हाइलाइट्स

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को लेकर समाज में अनेक तरह के भ्रम व्याप्त हैं, उनको लेकर तमाम तरह की चर्चाएं होती हैं। खासतौर पर एक समुदाय श्री राम की मर्यादा

भगवान श्रीराम की सरलता क्या राम कठोर थे? मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को लेकर समाज में अनेक तरह के भ्रम व्याप्त हैं, उनको लेकर तमाम तरह की चर्चाएं होती हैं। खासतौर पर एक समुदाय श्री राम की मर्यादा और प्रतिष्ठा को खंडित करने के तमाम कुचक्र रस्ता रहता है। लेकिन राम जहां थे वहीं हैं। आज हम न्यूज़ पुराण में आपको बताएंगे श्रीराम का एक ऐसा गुण जो विरले ही कहीं देखने को मिलता है। भगवान श्रीराम की सरलता के जितने भी गुणों की हम कल्पना कर सकते हैं और इनसे भी परे जितने भी गुण हैं । भगवान श्रीराम उन सबके साक्षात प्रतिमूर्ति ही हैं। जब शेष, महेश, गणेश, नारद, शारद और वेद आदि अन्यान्य विशारद भी जिनके गुणगनों का बखान नहीं कर सकते; तब हम अल्पज्ञ मानव उनके गुणों का बखान किस प्रकार कर सकते हैं । हमारे द्वारा उनके गुणों के बारे में कुछ कहना सीप द्वारा सागर उलीचने का प्रयास करने जैसा ही है । भगवान श्रीराम जैसा सरलतम देवी, देवता कोई है ही नहीं । लाख खोजो कोई भी और कहीं भी नहीं मिलेगा । जितने भी धर्म-ग्रन्थ हैं जैसे वेद, शास्त्र, उपनिषद, पुराण इत्यादि, इन सबमें गोते लगा-लगाकर देखा जाय फिर भी अंत में यही निष्कर्ष निकलेगा कि जैसे भगवान श्रीराम अन्य सभी गुणों में अद्वितीय हैं । ठीक वैसे ही सरलता में भी । भगवान श्रीरामजी बड़े ही शर्मीले, लजीले, सरल, संकोची व शांत स्वभाव के हैं । यदि कोई उन्हें प्रेमपूर्वक (छल-कपट रहित होकर) प्रणाम भी कर ले तो सकुचा जाते हैं, रीझ जाते हैं । वनवास की लीला में रामजी और मुनि लोग परस्पर अनुनय-विनय करते हुए देखे जाते हैं । गोस्वामी जी के शब्दों में जब मुनि लोग उनके सहज स्वरूप (परमात्म स्वरूप ) का निरूपण करने लगते हैं तो श्रीरामजी लज्जा-संकोच के मारे सिर झुका लेते हैं । लेकिन जब केवट और बंदर-भालू रामजी को मित्र एवं भाई कहते हैं, तो अपनी बड़ाई मानते हैं । जिसको कहीं भी किसी के द्वारा कोई आदर-सत्कार नहीं मिलता । श्रीराम जी उसका भी आदर-सत्कार करते हैं । जिसको लोग पास फटकने तक नहीं देते । उसकी बाँह पकड़ कर पास बिठाते हैं और गले से लगा लेते हैं । जिसकी कोई एक बात भी नहीं सुनता, श्रीरामजी बड़े प्रेम से उसकी पूरी गाथा सुन डालते हैं । श्रीराम जी के अलावा और कोई दूसरा नहीं है जो बानर और भालुओं को भी अपना मित्र बनाया हो । आमिष भोगी गिद्ध का पिता के समान श्राद्ध किया हो और भिलनी को माता का सम्मान दिया हो । ऐसा करने वाले एकमात्र श्रीराम जी ही हैं । केवट को लोग छूते नहीं थे । लेकिन श्रीरामजी ने उसे अपने ह्रदय से लगाया । इसी तरह अन्य कोलों, किरातों और भीलों आदि को भी । और तो और चाहे राम-राम कहो या ‘मरा-मरा’ राम जी प्रसन्न हो जाते हैं । कहने का मतलब उल्टा-सीधा जैसे भी नाम लेने से खुश हो जाते हैं । दरअसल वे मान-अमान से परे हैं । लेकिन दूसरों को सदा मान और बड़ाई देते हैं । और क्रोध करना तो वे जानते ही नहीं । गोस्वामी जी कहते हैं कि रामजी ऐसे देवता हैं जो ज्यादा पूजा-पाठ की अपेक्षा नहीं रखते । सिर्फ नाम लेने से प्रसन्न होने वाले हैं । केवल प्रेम और छल कपट रहित होकर कोई उनके पास चला जाय अथवा उन्हें पुकारे कि नाथ आपके सिवा मेरा कोई नहीं है । फिर तो वह चाहे जितना बड़ा पापी, क्रूर, छली, कपटी, कामी, क्रोधी इत्यादि कुछ भी और कोई भी क्यों न हो । उसे अपना लेते हैं । और जिसे एक बार अपना लेते हैं । उसे फिर कभी नहीं छोड़ते । गोस्वामी जी कहते हैं कि जब मुझे अपना लिए तो औरों की बात ही क्या है ? कहाँ तक कहें ? वर्षों से वर्षा, शीत और आतप आदि सहती हुई बेचारी अहिल्या निर्जन स्थान में पड़ी थी । श्रीरामजी के अलावा उसे इस बिपति से छुड़ाने वाला और दूजा कोई नहीं था । रामजी ने अहिल्या का उद्धार किया । अहिल्या हर्षातिरेक में पुनः अपने पति को प्राप्त हो गई । इतना बड़ा उपकार करके भी राम जी अपने संकोची व सरल स्वभाव के चलते उलटा खुद पश्चाताप करने लगे कि मुनि पत्नी को पैर क्यों लगाना पड़ा । परशुराम जी धनुष भंग सुनकर आग बबूला हो रहे थे । जो पाए उलटा-सीधा बोलते गए । लेकिन सर्वशक्तिमान होते हुए भी रामजी हाथ ही जोड़ते रहे । उन्हें मनाते रहे । माता कैकेयी कुचाल की वजह से लजाती थीं । अन्य लोग यहाँ तक भरत भी उन्हें दोषी समझ रहे थे । लेकिन रामजी पहले की भाँति ही उनका सम्मान करते रहे । सभी माताओं में पहले उन्हीं का चरण स्पर्श करते हैं । उनकी हर इच्छा पूरी करते रहे । विभीषण का राजतिलक करते हुए श्रीरामजी ने कहा कि यद्यपि आपकी इच्छा नहीं है । फिर भी मैं आपको लंका का राज्य देना चाहता हूँ । गोस्वामीजी कहते हैं कि जिस लंका का राज्य रावण को भगवान शंकर ने उसे सिर काटकर चढ़ाने पर दिया था । वही राज्य रामजी विभीषण को सकुचा कर दिए । रामजी जैसा दाता भला और कौन हो सकता है ? सरलता और सबलता दोनों एक साथ होना थोड़ा मुश्किल होता है । परंतु रामजी पूर्ण समर्थ, सबल होते हुए भी परम सरल हैं । सब पर दया दृष्टि रखने वाले हैं । चाहे कोई उनका अपराधी ही क्यों न हो ? श्रीरामजी ऐसे स्वामी है जो अपने को अपने सेवकों का ऋणी समझते रहते हैं । भला ऐसा सरल, संकोची अद्वितीय स्वामी और कौन हो सकता है ? भक्तों के लिए किये गए उपकार को तो भूल जाते हैं । लेकिन भक्त ने यदि कुछ कर दिया अथवा किसी ने प्रेम से प्रणाम ही कर लिया तो उसी के होके रह जाते हैं । हनुमान जी से तो रामजी ने यहाँ तक कह दिया कि हम तुमसे उरिन ही नहीं हो सकते । हनुमान जी के हाथ राम जी बिक गए । उनके वश में हो गये । शंकर जी राम-राम ही जपते रहते हैं । रामजी की कथा खुद सुनाते भी हैं और सुनते भी हैं । रामजी को अपना स्वामी मानते हैं । लेकिन रामजी अपने सरल व संकोची स्वभाव के चलते शंकर जी को अपना स्वामी मानते हैं । जब लोग उनके द्वारा भक्तों पर किये गए दया और उपकार की चर्चा करते हैं, तो रामजी सकुचाते हैं । लेकिन अपने भक्तों का गुणगान स्वयं भी करते हैं और सुनकर भी बहुत प्रसन्न होते हैं । कहाँ तक और क्या–क्या बताएँ ? अंत में यही कहा जा सकता है - अति कोमल रघुवीर सुभाऊ । यद्यपि अखिल लोक कर राऊ ।।  डॉ. एस. के. पाण्डेय