उप चुनाव में संकट का कारण बनते ‘बेटे’.... :दिनेश निगम ‘त्यागी’


स्टोरी हाइलाइट्स

उप चुनाव में नेताओं के बेटे भाजपा और कांग्रेस के लिए संकट का कारण बन रहे हैं। पहले बात खंडवा लोकसभा सीट की। यहां से दिवंगत......

उप चुनाव में संकट का कारण बनते ‘बेटे’.... :दिनेश निगम ‘त्यागी’ उप चुनाव में नेताओं के बेटे भाजपा और कांग्रेस के लिए संकट का कारण बन रहे हैं। पहले बात खंडवा लोकसभा सीट की। यहां से दिवंगत भाजपा सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे टिकट मांग रहे हैं। उनके दावेदार बनते ही कांग्रेस ने उनके पुराने रिकार्ड उजागर करना शुरू कर दिए हैं। सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीट का मामला कुछ अलग है। यहां के दिवंगत भाजपा विधायक जुगुल किशोर बागरी के बेटे ने भाजपा के टिकट पर ही चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस में पृथ्वीपुर से विधायक रहे बृजेंद्र सिंह राठौर के बेटे का टिकट घोषित हो गया है। यहां विरोधियों ने राठौर परिवार के कारनामे उजागर करना शुरू कर दिए हैं। क्षेत्र में बृजेंद्र सिंह की इमेज अलग थी और उनके परिवार की बिल्कुल अलग। विरोधी इसका फायदा उठाने की कोशिश में हैं। जोबट सीट को लेकर कांग्रेस में घमासान है। कहा जा रहा है कि कांतिलाल भूरिया की सहमति लेकर टिकट दिया जाएगा। यहां की पूर्व विधायक सुलोचना रावत अपने बेटे के साथ भाजपा में चली हैं और कांग्रेस को झटका दे दिया। यहां कांतिलाल भूरिया के बेटे का नाम आगे है। राजनीतिक दल सहानुभूति का लाभ लेने के लिए अपने दिवंगत नेताओं के बेटों को मैदान में उतारें या किसी अन्य जिताऊ उम्मीदवार को, यह संकट बना हुआ है। इस बार सबको अचंभित कर गए दिग्विजय.... कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह एक बात हमेशा दावे से कहते हैं कि ‘वे जो बोलते हैं, सिर्फ सच बोलते हैं।’ वे मंदिर-मस्जिद जाते हैं तो किसी को अचंभा नहीं होता। खुद को सनातनी हिंदू बताते हैं, इससे भी किसी को परहेज नहीं। आरएसएस और भाजपा को कोसने का वे कोई अवसर नहीं छोड़ते, यह भी सामान्य बात हो गई है। मुख्यमंत्री रहते वे भाजपा कार्यसमिति की बैठक में आने वाले नेताओं को भोजन कराते थे, इस पर भी कोई हैरान नहीं होता था लेकिन पहली बार उन्होंने अपनी बात से सबको अचंभित कर दिया। उनकी नर्मदा परिक्रमा पर लिखी पुस्तक के विमोचन समारोह में उन्होंने संघ, भाजपा खासकर अमित शाह की जमकर तारीफ कर डाली। उन्होंने कहा कि मैं अमित शाह से कभी नहीं मिला लेकिन नर्मदा परिक्रमा के दौरान उन्होंने रुकने-खाने की व्यवस्था कर हमारी मदद की। हमें संघ और युवा मोर्चा का भी सहयोग मिला। इतना ही नहीं, उन्होंने संघ के सेवा कार्यों की तारीफ करते हुए कहा कि संघ के स्वयंसेवक कर्मठ होते हैं। अलबत्ता विचारधारा की वजह से मेरा संघ से विरोध है। जिसने भी दिग्विजय की यह बात सुनी, हैरान हुए बिना नहीं रह पाया। दिग्विजय और संघ की तारीफ, कैसे? इससे इस बात में दम लगती है कि ‘वे जो बोलते हैं सच बोलते हैं।’ इन्हें भी देना पड़ रही टिकट के लिए परीक्षा.... गांवों में कहा जाता है, ‘पुरुष बली न होत है, समय होत बलवान’। उप चुनाव की दस्तक के साथ ग्रामीण क्षेत्रों की यह कहावत खंडवा क्षेत्र के दावेदारों में फिट बैठ रही है। यहां उन नेताओं को एक अदद टिकट के लिए परीक्षा देना पड़ रही है जो कभी टिकट बांटा करते थे। पहले बात कांग्रेस की। अरुण यादव यहां से पार्टी के प्रमुख दावेदार हैं और क्षेत्र में सक्रिय भी, लेकिन निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा उनकी राह का रोड़ा बने हुए हैं। शेरा का दावा है कि टिकट तो उनकी पत्नी को ही मिलेगा। बता दें, शेरा कभी कांग्रेस के प्रति निष्ठावान नहीं रहे लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं और प्रदेश अध्यक्ष के नाते टिकट तय करने वाले अरुण को टिकट के लिए परीक्षा से गुजरना पड़ रहा है। आखिर, नाराज होकर उन्होंने कांग्रेस आलाकमान को लिख दिया कि वे खंडवा से उप चुनाव लड़ने में असमर्थ हैं। भाजपा के दावेदारों में कैलाश विजयवर्गीय, नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्ष सिंह, कृष्ण मुरारी मोघे, अर्चना चिटनीस के नाम है। विजयवर्गीय, मोघे और चिटनीस टिकट वितरण में भूमिका निभाते रहे हैं जबकि हर्ष प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहे नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हैं। सभी ताकतवर हैं लेकिन परीक्षा से गुजर रहे हैं। खंडवा में भाजपा का टिकट किसे मिलेगा, कोई नहीं जानता। कैलाश दो तरह की बात कर चुके हैं। एक, वे संसद चुनाव लड़कर ही जाएंगे और दो, वे खंडवा चुनाव लड़ने क्यों जाएंगे? देखिए क्या होता है। कमलनाथ जी, आपने तो कमाल कर दिया.... कमलनाथ जी वास्तव में कमाल करते हैं। लंबे समय बाद भोपाल लौटे। अपनी बीमारी बताई और लगे हाथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनौती भी दे डाली। वह भी उप चुनाव में जीत-हार की नहीं, सीधे रेस की। उन्होंने बताने की कोशिश की कि वे न बूढ़े हुए और न ही बीमार हैं। वे शिवराज से कहीं भी रेस करने को तैयार हैं। हालांकि भाजपा ने इसे मुद्दा बना लिया। नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा कि भाजपा में आप जैसी रेस की संस्कृति नहीं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि पहले गांधी परिवार और कांग्रेस नेताओं की रेस से निबट लीजिए, सब एक दूसरे को आगे-पीछे करने की रेस में हैं। बाद में खुद शिवराज ने मोर्चा संभाल लिया। सवाल है कि आखिर, कमलनाथ की रेस के मायने क्या हैं? वे जानते हैं कि शिवराज उनकी तुलना में कम उम्र के हैं। वे नियमित योगा, प्राणायाम करते हैं। इस नाते कमलनाथ उनसे रेस में आगे निकलेंगे, इसकी संभावना न के बराबर हैं। शिवराज पहले ही हाथ आई सत्ता छीनकर कमलनाथ को रेस में पीछे कर चुके हैं। लिहाजा, आकलन इस बात का हो रहा है कि कमलनाथ ने जो बोला, यह एक जुमला है या इसके कुछ और मायने हैं। समीकरण बिगाड़ सकते हैं यादव और ब्राह्मण.... विधानसभा चुनाव के दौरान ‘माई के लाल’ वाला मुख्यमंत्री का एक कथन भाजपा पर भारी पड़ गया था। तब से जातिगत समीकरणों को लेकर मुख्यमंत्री चौकन्ने हैं और भाजपा भी। हर मसले पर फूंक-फूंक कर कदम रखा जा रहा है। इस समय बुंदेलखंड अंचल के दो मामले गरम हैं। पहला मामला सागर जिले का है। यहां प्रेम प्रसंग के एक मामले में प्रशासन ने पहले लड़की के परिवार वालों को जेल भेजा और इसके बाद उनका मकान भी गिरवा दिया। इसका इस कदर विरोध हुआ कि मामले की नजाकत को समझते हुए मुख्यमंत्री को सीबीआई जांच के आदेश देना पड़े और गिरा मकान भी बनाने का आश्वासन दे दिया। सरकार सतर्क इसलिए भी थी क्योंकि मामला ब्राह्मण समाज से जुड़ा था और सागर के प्रदर्शन में उप्र-महाराष्ट्र तक के ब्राह्मण शामिल हुए। वैसे भी उप्र में ब्राह्मणों को अपने पक्ष में करने का लगभग सभी दल अभियान चलाए हैं। हालांकि प्रशासन की कार्यवाई माफिया के खिलाफ अभियान के तहत थी। दूसरा मामला छतरपुर का है। यहां एक घटना को लेकर करणी सेना ने प्रदर्शन किया और इसमें यादव समाज को लेकर अपमानजनक शब्दों का उपयोग कर गालियां दी गईं। प्रदर्शन में भाजपा के एक प्रमुख पदाधिकारी भी शामिल थे। इसके विरोध में यादव समाज ही नहीं, समूचा पिछड़ा वर्ग लामबंद हो रहा है। भाजपा स्थिति संभालने की कोशिश में है तो कांग्रेस इसे भुनाने के प्रयास में।