शाकाहार दिवस पर विशेष: शाकाहारी दयालु होते हैं या दयालु शाकाहारी..  दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

हर बड़े शहर में लज़ीज़ मांसाहार की ख़ास होटलें दिखाई देती हैं. लोगों में उनका क्रेज भी दिखाई देता है. उनमें भीड़ भी बहुत दिखाई देती है....

शाकाहार दिवस पर विशेष: शाकाहारी दयालु होते हैं या दयालु शाकाहारी..  दिनेश मालवीय हर बड़े शहर में लज़ीज़ मांसाहार की ख़ास होटलें दिखाई देती हैं. लोगों में उनका क्रेज भी दिखाई देता है. उनमें भीड़ भी बहुत दिखाई देती है. मांसाहार के कुछ ब्राण्ड तो काफी पॉपुलर भी हो  रहे हैं. उनका नाम ही चलता है. लेकिन इन बातों से आप इस धोखे में मत पड़ जाना कि, मांसाहारी लोगों की तादाद बढ़ रही है. जी हाँ! आपने सही पढ़ा. उनकी तादाद पूरी दुनिया में बढ़ नहीं रही,बल्कि कम हो रही है. वीगानिज्म का नारा ज़ोर पकड़ रहा है. लोगों के खानपान में यह बदलाव बहुत कुछ सेहत से जुड़े मुद्दोंकी वजह से आया है. यह बात अब वैज्ञानिक रूप से साबित हो चुकी है कि, इंसान का शरीर मांस खाने के लिये अनुकूल नहीं है. उसके शरीर की भीतरी बनावट ही ऎसी है कि, मांस उसकी सेहत के लिए फायदेमंद हो ही नहीं सकता. दुनिया भर में लोगों का खानपान और उससे जुड़ी मान्यताएं, मुख्य रूप से वहां के देश-काल और परिस्थतियों से बावस्ता हैं. जिन जगहों पर सब्जी, तरकारी, फल, अनाज आदि की उपज नहीं होती, वहाँ के लोग मांस खाने के अलावा और क्या कर सकते हैं? पहले कच्चा मांस खाया जाता था. फिर आग्नि का अविष्कार होने पर उसे भूनकर खाया जाने लगा. भारत से मसालों की आपूर्ति होने के बाद उसे जायकेदार बनाया जाने लगा. ऎसी जगहों पर मांस खाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. यही कारण है कि अरब देशों में भारत के मसालों की जबरदस्त मांग रही और मसला व्यापारी चाँदी काटते रहे. आज स्थितियां बदल गयी हैं. जिन देशों में खेती-बागवानी नहीं होती, वे दूसरे देशों से खाने-पीने की चीज़ें मंगवाने के लिए स्वतंत्र हैं. इजराइल ने तो खेती के अपने ऐसे तरीके विकसित कर लिए हैं कि, वहां बहुत नाममात्र के पानी से भरपूर खेती होती है. अब शायद ही कोई देश बाक़ी दुनिया से कटा हुआ हो. जो देश और प्रदेश समुद्र किनारे बसे हैं, वहाँके लोगों का मुख्य भोजन मछली और पानी के अन्य जीव ही हैं. फिर भी अनेक लोग मांस खाने की आदत को नहीं छोड़ पा रहे हैं. लेकिन अब चिकित्सकों ने जब यह स्पष्ट कर दिया है कि, मांसाहार बहुत-सी बीमारियों का मुख्य कारण है, तो लोग इससे काफी बचने लगे हैं. कभी-कभार शौकिया भले ही खा लेते हों, लेकिन यह पहले जैसा उनके दैनिक भोजन का हिस्सा नहीं रहा. भारत में शाक-सब्जी, अनेक तरह के फल और अनाज की ख़ूब उपज होती है. लेकिन फिर भी यहाँ जो लोग मांसाहार कर करते हैं, वह मुख्य रूप से स्वाद के लिए होता है. बहुत से लोगों को यह भ्रम होता है कि, मांसाहार करने से शरीर की ताक़त बढ़ती है. इस कारण भी बहुत से लोग मांस खाते हैं. अपको ऐसे अनेक लोग मिल जाएँगे, जो शाकाहारी भोजन परोसे जाने पर कहते हैं कि, “क्या घास-फूंस खिला रहे हो”. अनेक लोग तर्क देते हैं कि, अगर हम जानवरों को मारकर नहीं खाएंगे, तो संसार इतने जानवर हो  जाएँगे कि, दूसरे इंसान के रहने के लिए जगह ही नहीं बचेगी. लेकिन ये सभी तर्क अपनी जुबान के चटोरेपन को सही सिद्ध करने के लिए होते हैं. बहरहाल, इसके बावजूद देश में शाकाहारी लोगों की संख्या बढ़ रही है. भारत में अधिक संख्या में शाकाहारी लोगों ज्यादा तादाद की वजह यहाँ की धार्मिक मान्यताएँ भी हैं. जैन धर्म, सनातन धर्म के वैष्णव और अन्य बहुत से पंथ मांसाहार की इज़ाजत नहीं देते. लेकिन बौद्ध लोग मांस खाते हैं. भगवान् बुद्ध ने उन्हें कहा था कि मांस के लिए किसी जानवर को मारो मत. लेकिन अगर कोई जानवर अपने आप मर गया हो, तो उसका मांस खाया जा सकता है. यदि वह ऐसा नहीं करते तो अनेक देशों के लोग बौद्ध धर्म को नहीं अपनाते. भगवान् महावीर की चेतना भगवान् बुद्ध से बिलकुल कम ऊंची नहीं थी. फिर भी दुनिया में जितना प्रसार बौद्ध  धर्म का हुआ, उतना जैन धर्म का नहीं हो पाया. इसका एक बड़ा कारण यही था कि, भगवान् बुद्ध ने उपरोक्त शर्त पर मांसाहार की इज़ाजत दे दी थी. दुनिया के अधिकतर देश मांसाहारी थे, लिहाजा उन्होंने बौद्ध धर्म को बहुत स्वाभाविक रूप से अंगीकार कर लिया. हालाकि आजकल भगवान बुद्ध के आदेश को सही रूप से नहीं माना जा रहा. अब बौद्ध लोग कसाई के दूकान पर मिलने वाला मांस लेकर खाते हैं. लेकिन यह भगवान् बुद्ध के निर्देश के विरुद्ध है. किसी दूसरे ने भी यदि जानवर को मारा है, तो भी यह हिंसा को प्रोत्साहन और समर्थन ही है. बहरहाल, मांसाहार को लेकर और भी  अनेक मान्यताएं हैं. बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि, मांसाहार करने वाले लोग क्रूर और शाकाहार करने वाले लोग दयालु होते हैं. लेकिन हमेशा ऐसा देखने में नहीं आता. साठ लाख से ज्यादा लोगों को बहुत नृशंसता से मरवा देने वाला हिटलर विशुद्ध रूप से शाकाहारी था. और भी अनेक लोग ऐसे हुए हैं, जो किसी छोटे-से  कीड़े तक को नहीं मारते, लेकिन मानसिक रूप से बहुत हिंसक होते हैं. वे स्त्रियों का दमन करते हैं, ग़रीबों का शोषण करते हैं, कमजोरों को दबाते हैं, रिश्वत खाते हैं, देश, धर्म और समाज के साथ द्रोह करते हैं. और भी अनेक तरह के ऐसे कार्य करते हैं, जो  मानवीयता से बहुत गिरे होते हैं. लेकिन वे अपने शाकाहारी होने की बात बहुत गर्व  से करते हैं. इस विषय में अनेक बातों की  तरह उलटबांसी चलती हैं. कुछ लोग पूछते हैं कि, शाकाहार करने वाले लोग दयालु होते हैं, या जो दयालु  होते हैं, वे शाकाहारी होते हैं ? इसका सीधा उत्तर यही है कि, जिस व्यक्ति की चेतना इतनी ऊपर उठ जाती है कि, वह सभी जीवों में स्वयं को और स्वयं में सभी जीवों को देखता है, वह किसी मरे हुए जानवर का मांस खाने की कभी सोच भी नहीं सकता. इन सारी बातों का लाव्बोलुअवाब यह है कि, मांस खाने का कोई फायदा तो है नहीं. इसके उलट मांसाहार से शरीर को नुकसान बहुत हैं. यह अनेक तरह की बीमारियों का कारण है. धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से मांसाहार का जो निषेध किया गया है, उसके पीछे यही कारण है कि, स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और चेतना रह सकती है. हर व्यक्ति को कोशिश यह करनी चाहिए कि, जानवरों का मांस खाने की ओर से अपना मन हटाकर शाकाहारी  बनने. इसीमें ज्यादा फायदा है. एक से एक बढ़कर शाकाहारी चीजें और व्यंजन उपलब्ध हैं, जिनसे शरीर को पूरा पोषण मिलता है. फिर सिर्फ स्वाद के लिए किसी जानवर को क्यों मारा जाये या उसे मारने के लिए किसीको किसी भी तरह क्यों प्रोत्साहित किया जाए. आइये, शाकाहारी बनिए और बच्चों को भी शाकाहारी बनने के लिए संस्कारित कीजिए.