175 सालों से यहां हैं रूहानी ताकतें, खूबसूरत हसीना की वजह से करना पड़ा खाली...


स्टोरी हाइलाइट्स

हमारे देश भारत के कई शहर अपने दामन में कई रहस्यमयी घटनाओ को समेटे हुए है ऐसी ही एक घटना हैं राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा गाँव की , यह गांव पिछले 175..

हमारे देश भारत के कई शहर अपने दामन में कई रहस्यमयी घटनाओ को समेटे हुए है ऐसी ही एक घटना हैं राजस्थान के जैसलमेर जिले के कुलधरा गाँव की , यह गांव पिछले 175 सालों से वीरान पड़ा हैं।कुलधरा गाँव के हज़ारों लोग एक ही रात मे इस गांव को खाली कर के चले गए थे  और जाते जाते श्राप दे गए थे कि यहाँ फिर कभी कोई नहीं बस पायेगा। तब से गाँव वीरान पड़ा है|  कहा जाता है कि अब यह गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में हैं। कभी का एक हंसता-खेलता यह गांव आज एक खंडहर में तब्दील हो चुका है। टूरिस्ट प्लेस में बदल चुके कुलधरा गांव घूमने आने वालों के मुताबिक, 170 पहले यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों की आहट आज भी सुनाई देती है। उन्हें वहां हरपल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है। बाजार के चहल-पहल की आवाजें आती हैं, महिलाओं के बात करने, उनकी चूड़ियों और पायलों की आवाजें यहां के माहौल को भयावह बनाती हैं। जैसलमेर से 15 किलोमीटर दूर स्थित यह गांव अब एक बड़ा टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन चुका है और हर रोज सैकड़ों सैलानी यहां आते हैं। आज से लगभग 175 साल पहले कुलधरा गांव में बसे सैकड़ों लोग अपना घरबार छोड़कर रातों-रात ऐसे गायब हुए कि उनका नामो-निशान नहीं मिला। यह गांव रातों रात क्यों खाली हुआ, किस समाज के लोग यहां रहते थे, आखिर इस गांव के लोग कहां चले गए। आज तक यह गांव दुबारा क्यों नही बस सका? ऐसे सैकड़ों सवाल आपके जेहन में भी कौंध रहे होंगे। चलो अब हम इस गांव से जुड़ी एक-एक कहानी को आपसे साझा करते हैं। कुलधरा के वीरान होने कि कहानी (Story of Kuldhara) : जो गाँव इतना विकसित था तो फिर क्या वजह रही कि वो गाँव रातों रात वीरान हो गया। इसकी वजह था गाँव   का अय्याश दीवान सालम सिंह जिसकी गन्दी नज़र गाँव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी थी। दीवान उस लड़की के पीछे इस कदर पागल था कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि यदि अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा। गांववालों के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी। उन्हें या तो गांव बचाना था या फिर अपनी बेटी। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए सभी 84 गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नहीं देंगे। फिर क्या था, गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात सभी 84 गांव आंखों से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने श्राप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा। आज भी वहां की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी जब लोग इसे छोड़ कर गए थे। कहा जाता है कि यह गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में हैं : आज भी है श्राप का असर: पालीवाल ब्राह्मणों के श्राप का असर यहां आज भी देखा जा सकता है। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ परिवारों ने इस जगह पर बसने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। स्थानिय लोगों का तो यहां तक कहना है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो वहां गए जरूर लेकिन लौटकर नहीं आए। उनका क्या हुआ, वे कहां गए कोई नहीं जानता | रुहानी ताकतों का हर कदम पर होता है आभास : कुलधरा गांव आज एक बड़ा टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन चुका है और हर रोज सैकड़ों सैलानी यहां आते हैं। अधिकतर सैलानी दावा करते हैं कि उन्हें यहां कदम-कदम पर रुहानी ताकतों के होने का आभास होता है। 170 साल पहले जैसलमेर के पास बसे इस गांव में एक रात में ही ऐसी वीरानी छा गई, जो आज तक कायम है। गांव के लोग कहां गए और कैसे गए, यह सवाल आज भी एक रहस्य बना हुआ है। चूड़ियों की खनक और पायल की झनकार देती है सुनाई : टूरिस्ट प्लेस में बदल चुके कुलधरा गांव घूमने आने वालों के अनुसार यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मण परिवारों की महिलाओं की उपस्थिति आज भी महसूस होती है। इन महिलाओं की चूड़ियों की खनक यहां आने वाले कई सैलानियों को सुनाई दी हैं। इन सैलानियों को यहां हरपल ऐसा आभास होता है कि उनके आसपास कोई चल रहा है। गांव के उजाड़ पड़े बाजार में भी चहल-पहल की आवाजें आती हैं, साथ ही महिलाओं के बात करने, उनकी पायलों की छन-छन की आवाज माहौल को डरावना बना देती हैं, जबकि यह गांव पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुका है और सुनसान है। हर मौसम में अनुकूल था कुलधरा : खंडहर में तब्दील हो चुके इस गांव का गहन अध्ययन करने वालों का कहा है कि रेगिस्तान में बसे इस गांव के निर्माण में पूरी वैज्ञानिक तरीके का इस्तेमाल किया गया थ। झुलसा देने वाली भयंकर गर्मी में भी यहां के मकान ऐसे ठंडे रहते थे, जैसे एयरकंडीशनर चल रहा हो, साथ ही सर्दी के मौसम में इन घरों का तापमान सामान्य बना रहता था। गर्मी के मौसम में हवा दीवारों से टकराती हुई हर घर के भीतर होकर गुजरती थी। घरों के बीच फासले को कम करने के लिए झरोखों की मदद ली गई थी। ईंट-पत्थर से बने इस गांव की बनावट ऐसी थी कि यहां कभी गर्मी का अहसास नहीं होता था। श्राप का असर है आज भी कायम : पालीवाल ब्राह्मणों के श्राप का असर यहां आज भी देखा जा सकता है। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ परिवारों ने इस जगह पर बसने की कोशिश की थी, लेकिन अलौकिक शक्तियों के प्रकोप के कारण उलटे पांव उन्हें इस गांव से भागना पड़ा। जैसलमेर के स्थानीय निवासियों का तो यहां तक कहना है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो कुलधरा गांव में बसने के लिए गए जरूर थे, लेकिन वे कभी लौटकर नहीं आए। उनका क्या हुआ, वे कहां गए, इस बारे में कोई नहीं जानता। नहीं लगते थे घरों दरवाजों पर ताले जैसलमेर के आसपास बसे लगभग 84 गांवों में से केवल कुलधरा गांव ही ऐसा था, जिसके घरों के दरवाजों पर कभी ताला नहीं लगाया जाता था। इस गांव की एक और यह खासियत थी कि इसके दो घरों के बीच काफी दूरी होती थी, लेकिन इसके बावजूद जैसे ही कोई इंसान गांव के मुख्य द्वार पर आता था उसके चलने की आवाज गांव के हर घर में सुनाई देती थी। सोने की चाह में जगह-जगह हो चुकी है खुदाई : देश-विदेश से यहां लोग जहां पुरा महत्व की चीजों को समझने के लिए आते हैं, वहीं कई लोग यहां जमीन में दबे सोने की खोज में खाक छानते हैं।इतिहासकारों के अनुसार पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी संपत्ति, जिसमें भारी मात्रा में सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात थे, उसे जमीन के अंदर दबा रखा था। यही कारण है कि जो कोई भी यहां आता है, वह जगह-जगह खुदाई करने लग जाता है। इस उम्मीद से कि शायद वह सोना उनके हाथ लग जाए। यह गांव आज भी जगह-जगह से खुदा हुआ मिलता है | पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कि कुलधरा में पड़ताल :- कुछ साल पहले दिल्ली से आई भूत प्रेत व आत्माओं पर रिसर्च करने वाली पेरानार्मल सोसायटी की टीम ने कुलधरा(Kuldhara) गांव में बिताई रात। टीम ने माना कि यहां कुछ न कुछ असामान्य जरूर है। टीम के एक सदस्य ने बताया कि विजिट के दौरान रात में कई बार मैंने महसूस किया कि किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मुड़कर देखा तो वहां कोई नहीं था। पेरानॉर्मल सोसायटी के उपाध्यक्ष अंशुल शर्मा ने बताया था कि हमारे पास एक डिवाइस है जिसका नाम गोस्ट बॉक्स है। इसके माध्यम से हम ऐसी जगहों पर रहने वाली आत्माओं से सवाल पूछते हैं। कुलधरा में भी ऐसा ही किया जहां कुछ आवाजें आई तो कहीं असामान्य रूप से आत्माओं ने अपने नाम भी बताए। जो टीम कुलधरा गई थी उनकी गाडिय़ों पर बच्चों के हाथ के निशान मिले। टीम के सदस्य जब कुलधरा गांव में घूमकर वापस लौटे तो उनकी गाडिय़ों के कांच पर बच्चों के पंजे के निशान दिखाई दिए।  कुलधरा पालीवालों ब्राह्मणो का गांव था और एक दिन अचानक यहां फल-फूल रहे पालीवाल ब्राह्मण अपनी इस सरज़मीं को छोड़कर अन्‍यत्र चले गये । उसके बाद से कुलधरा पर कोई बस नहीं सका । कोशिशें बहुत हुईं पर नाकाम हो गयीं । कुलधरा के अवशेष आज भी विशेषज्ञों और पुरातत्‍वविदों के अध्‍ययन का केंद्र हैं । कई मायनों में पालीवालों ब्राह्मणो ने कुलधरा को वैज्ञानिक आधार पर विकसित किया था । समय बीतने के साथ-साथ कई लोगों और सरकार ने भी इन गांवों को बसाने की कोशिश की परंतु कामयाब नही हो सके । जो भी उन घरो मे रहने की कोशिश करता बर्बाद हो जाता या एसी मुसीबत आती की किसी न किसी की जान लेकर ही जाती । सरकार की यह कोशिश तो असफल रही पर दूसरी कोशिश जरूर शुरू कर दी । इन तमाम गांवों की घेराबंदी कर दी और मुख्य द्वार पर एक चौकीदार को बैठा दिया । गाँव न तो कभी आबाद हुआ न ही कभी आबाद होगा , परंतु उजड़ने के बाद भी यह गाँव पर्यटकों की जेब से पैसे निकालकर सरकार की झोली जरूर भरता रहा । घर की बहू बेटी की इज्ज़त की खातिर इन पत्थर के घरो मे रहने वालों ने जो बलिदान दिया वो कोई दूसरा नही दे सकता । यह पत्थर बिखरा तो है परंतु टूटा अब भी नही है