देवी अवतारों की कथा-------------------------नवरात्रि विशेष -14


स्टोरी हाइलाइट्स

देवी अवतारों की कथा-------------------------------------नवरात्रि विशेष -14

(श्री दुर्गासप्तशती के ग्यारहवें अध्याय में देवी के नौ अवतारों की कथा मिलती है।)

स्वयं देवी द्वारा उच्चारण किए गए शब्दों में-

"यदा-यदा दानवोत्था भविष्यति। 

तदा तदा वतीय्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्।।"

अर्थात जब-जब दैत्यों द्वारा उपद्रव बढ़ेगा, तब-तब मैं अवतार लेकर शत्रुओं (दैत्यों) का संहार करूंगी। भगवती ने इस कथन का पालन भिन्न-भिन्न युगों में अवतार धारण करके तथा दुष्टों का नाश करके किया है। देवी के नौ अवतारों की कथा निम्न प्रकार है:


महाकाली
एक बार जब पूरा संसार प्रलय से ग्रस्त हो गया था। चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देता था। उस समय भगवान विष्णु की नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ। उस कमल से ब्रह्म जी निकले। इसके अतिरिक्त भगवान नारायण के कानों से कुछ मैल भी निकला, उस मैल से कैटभ और मधु नाम के दो दैत्य बन गए। उन दैत्यों ने चारों ओर देखा । ब्रह्म जी को देखकर वे दैत्य उन्हें मारने दौड़े तब भयभीत हुए ब्रह्म जी ने विष्णु भगवान की स्तुति की| स्तुति से विष्णु भगवान की आंखों में जो महामाया योगनिद्रा के रूप में निवास करती थी वह लोप हो गई और विष्णु भगवान की नींद खुल गई। उनके जागते ही वे दोनों दैत्य भगवान विष्णु से लड़ने लगे। इस प्रकार पांच हजार वर्ष तक युद्ध चलता रहा। अंत में भगवान की रक्षा के लिए महामाया ने असुरों की बुद्धि को बदल दिया। तब वे असुर विष्णु भगवान से बोले हम आपके युद्ध से प्रसन्न हैं जो चाहे वर मांग लो। भगवान ने मौका पाया और कहने लगे, यदि हमें वर देना है तो यह दो कि दैत्यों का नाश हो। दैत्यों ने कहा, ऐसा ही होगा ऐसा कहते ही महाबली दैत्यों का नाश हो गया जिस देवी ने असुरों की बुद्धि को बदला था वह 'महाकाली' थीं।


महालक्ष्मी
एक समय महिषासुर नाम का एक दैत्य हुआ। उसने समस्त राजाओं को हराकर पृथ्वी और पाताल पर अपना अधिकार जमा लिया। जब वह देवताओं से युद्ध करने लगा तो देवता उससे युद्ध में हारकर भागने लगे। भागते-भागते वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उस दैत्य से बचने के लिए स्तुति करने लगे। देवताओं की स्तुति से भगवान विष्णु व शंकर प्रसन्न हुए और उनके शरीर से एक तेज निकला, जिसने महालक्ष्मी का रूप धारण कर लिया। इन्हीं महालक्ष्मी ने महिषासुर दैत्य को युद्ध में मारकर देवताओं का कष्ट दूर किया।



महासरस्वती
एक समय शुम्भ-निशुम्भ नाम के दो बहुत बलशाली दैत्य हुए थे उनसे युद्ध में मनुष्य तो क्या देवता तक हार गए। जब देवताओं ने देखा कि वे युद्ध में नहीं जीत सकते, तो वे भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे। उस समय भगवान विष्णु के शरीर में से एक ज्योति प्रकट हुई जो कि महासरस्वती थी। महासरस्वती अत्यंत रूपवान थीं उनका रूप देखकर वे दैत्य मुग्ध हो गए और अपना सुग्रीव नामक दूत देवी को बुलाने के लिए भेजा जिसे देवी ने वापस कर दिया। इसके बाद उन दोनों ने देवी को बलपूर्वक लाने के लिए अपने सेनापति धूम्राक्ष को सेना सहित भेजा, जो देवी द्वारा सेना सहित मार दिया गया। इसके बाद रक्तबीज लड़ने आया, जिसके रक्त की बूंद जमीन पर गिरने से एक वीर पैदा होता था। वह बहुत बलवान था। उसे भी देवी ने मार गिराया। अन्त में शुम्भ-निशुम्भ स्वयं दोनों लड़ने आए और देवी के हाथों मारे गए।



योगमाया
कंस ने वसुदेव-देवकी के छः पुत्रों का वध कर दिया था, सातवें में शेषनाग बलराम जी आये, जो रोहिणी के गर्भ से प्रवेश लेकर प्रकट हुए., आठवा जन्म कृष्ण जी का हुआ। साथ ही साथ गोकुल में यशोदा जी के गर्भ से योगमाया का जन्म हुआ जो वासुदेव जी द्वारा कृष्ण के बदले मथुरा में लाई गई थी। जब कंस ने कन्यास्वरूपा उस योगमाया को मारने के लिए पटकना चाहा तो वह हाथ से छूट गई और आकाश में जाकर देवी का रूप धारण कर लिया। आगे चलकर इसी योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर आदि शक्तिशाली असुरों का संहार करवाया।



रक्तदन्तिका
एक बार वैप्रचित नाम के असुर ने बहुत से कुकर्म करके पृथ्वी को व्याकुल कर दिया| उसने मनुष्य ही नहीं बल्कि देवताओं तक को बहुत दुःख दिया। देवताओं और पृथ्वी की प्रार्थना पर उस समय देवी ने रक्तदन्तिका नाम से अवतार लिया और वैप्रचित आदि असुरों का मान-मर्दन कर डाला। भयंकर दैत्यों का भक्षण करते समय देवी के दांत अनार के फूल के समान लाल हो गए। इसी कारण से इनका नाम रक्तदन्तिका विख्यात हुआ।







शाकम्भरी
एक समय पृथ्वी पर लगातार सौ वर्ष तक वर्षा ही नहीं हुई। इस कारण चारों ओर हाहाकार मच गया। सभी जीव भूख और प्यास से व्याकुल हो मरने लगे। उस समय मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की। तब जगदम्बा ने शाकम्भरी नाम से स्त्री रूप में अवतार लिया और उनकी कृपा से जल की वर्षा हुई जिससे पृथ्वी के समस्त जीवों को जीवनदान प्राप्त हुआ| वृष्टि न होने के पहले तक देवी ने प्राणों की रक्षा में समर्थ शाकों द्वारा संपूर्ण जगत का भरण-पोषण किया जिससे उनका 'शाकम्भरी नाम प्रसिद्ध हुआ।



श्री दुर्गा
एक समय भारतवर्ष में दुर्गम नाम का राक्षस हुआ उसके डर से पृथ्वी ही नहीं, स्वर्ग और पाताल में निवास करने वाले लोग भी भयभीत रहते थे ऐसी विपत्ति के समय में भगवान की शक्ति ने दुर्गा या दुर्गसेनी के नाम से अवतार लिया और दुर्गम राक्षस को मारने के कारण ही तीनों लोकों में इनका नाम दुर्गा प्रसिद्ध हो गया।







भ्रामरी
एक बार महाअत्याचारी अरुण नाम का एक असुर पैदा हुआ। उसने स्वर्ग में जाकर उप्रदव करना शुरू कर दिया। वह देवताओं की पत्नियों का सतीत्व नष्ट करने की कुचेष्टा करने लगा। अपने सतीत्व की रक्षा के लिए देव-पत्नियों ने भौरों का रूप धारण कर लिया और दुर्गा देवी की प्रार्थना करने लगीं। देव-पत्नियों को दुःखी जानकर माता दुर्गा ने भ्रामरी का रूप धारण करके उस असुर को उसकी सेना सहित मार डाला और देव-पत्नियों के सतीत्व की रक्षा की।




चण्डिका
एक बार पृथ्वी पर चंड व मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए। वे दोनों इतने बलवान थे कि उन्होंने सम्पूर्ण संसार के साथ ही स्वर्ग के देवताओं को हराकर वहां भी अपना अधिकार जमा लिया। इस प्रकार देवता बहुत दुःखी हुए और देवी की स्तुति करने लगे। तब देवी चंडिका के रूप में अवतरित हुई और चण्ड व मुण्ड नामक राक्षसों को मारकर संसार का दुःख दूर किया। देवताओं का स्वर्ग पुनः उन्हें वापस दिलाया। इस प्रकार चारो ओर सुख और शान्ति का राज्य छा गया। चण्ड तथा मुण्ड का वध करने के कारण इस अवतार में देवी को चामुण्डा और चंडी कहा गया।