शरीर तो निरन्तर मृत्यु में रहता है और मैं निरन्तर अमरता में रहता हूं।


स्टोरी हाइलाइट्स

जीवन तो अमर है मरती तो काया है| शरीर तो निरन्तर मृत्यु में रहता है और मैं निरन्तर अमरता में रहता हूं। जीवन तो अमर है..जीवन तो अमर है...निरन्तर मृत्यु

शरीर तो निरन्तर मृत्यु में रहता है और मैं निरन्तर अमरता में रहता हूं।
जीवन तो अमर है मरती तो काया है|
Dharma Newspuran

जो हरदम बदलता है, उसी का नाम जन्म है, उसी का नाम स्थिति है और उसी का नाम मृत्यु है। बाल्यावस्था मर जाती है तो युवावस्था पैदा हो जाती है और युवावस्था मर जाती है तो वृद्धावस्था पैदा हो जाती है। इस तरह प्रतिक्षण पैदा होने और मरने को ही जीना (स्थिति) कहते हैं। पैदा होने और मरने का यह क्रम सूक्ष्म रीति से निरंतर चलता रहता है। परन्तु हम स्वयं निरन्तर ज्यों-के- त्यों रहते हैं। अवस्थाओं में परिवर्तन होता है, पर हमारे स्वरूप में कमी किंचिन्मात्र भी परिवर्तन नहीं होता। अतः शरीर तो निरन्तर मृत्यु में रहता है और मैं निरन्तर अमरता में रहता हूं।


life story

'अमर जीव मरे सो काया' जीव अमर है, काया मरती है। अगर इस विवेक को महत्व दें तो मरने का भय मिट जाएगा। जब हम मरते ही नहीं तो फिर मरने का भय कैसा? और जो मरता ही है, उसको रखने की इच्छा कैसी ?

जैसे धन मिल जाए तो भीतर से खुशी आती है, ऐसे ही इस बात को सुनकर भीतर से खुशी आनी चाहिए और जीने की इच्छा तथा मरने का भय नहीं रहना चाहिए। कारण कि जिस बात से हमारा दुःख, जलन, सन्ताप, रोना मिट जाए, उसके मिलने से बढ़कर और क्या खुशी की बात होगी। ऐसा लाभ तो करोड़ों-अरबों रुपयों के मिलने से भी नहीं होता। कारण कि अरबों-खरबों रुपये मिल जाएं और पृथ्वी का राज्य मिल जाए तो भी एक दिन वह सब छूट जाएगा, हमारे से बिछुड़ जाएगा।तो भी एक दिन ह जाएगा, हमारे से बिछुड़ जाएगा।

अरब खरब ली द्रव्य है, उदय अली राज | तुलसी जो निज मन है, तो आये किहि काज ||

हम शरीर में अपनी  सत्ता मान लेते हैं, अपने को शरीर मान लेते हैं - यही तो हमारी गलती है। गलत बात का आदर करना और सही बात का निरादर करना ही मुक्ति में खास बाधा है। अपने को शरीर मानकर ही हम कहते हैं कि मैं बालक हूँ, में जवान हू, मैं बूढ़ा हूं। शरीर कमजोर हो गया तो में कमजोर हो गया, धन पास में आ गया तो में धनी हो गया, धन चला गया तो मैं निर्धन हो गया। यह शरीर और धन के साथ एकता मानने से ही होता है। जब क्रोध आता है, तब हम कहते हैं कि मैं क्रोधी हूं। विचार करें, क्या क्रोध सब समय रहता है? सबके लिए होता है ? जो हरदम नहीं रहता और जो सबके लिए नहीं होता, वह मेरे में कैसे हुआ? कुत्ता घर में आ गया तो क्या वह घर का मालिक हो गया? ऐसे ही क्रोध आ गया तो क्या मैं क्रोधी हो गया? क्रोध तो आता है और चला जाता है, पर मैं निरंतर रहता हूं।
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