बाबा साहब की सलाह न मानकर मण्डल, दलितों ने सहे पाकिस्तान में अत्याचार  –दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

बाबा साहब की सलाह न मानकर मण्डल, दलितों ने सहे पाकिस्तान में अत्याचार  –दिनेश मालवीय भारत रत्न डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत में अपने समय के सबसे ज्यादा शिक्षित लोगों में शामिल थे. लेकिन उनका ज्ञान सिर्फ किताबी नहीं था. उनका व्यवहारिक जीवन का अनुभव बहुत अद्भुत था. देश की आज़ादी के समय दलितों के दो बड़े नेता थे-एक स्वयं बाबा साहब अम्बेडकर और दूसरे जोगिन्दरनाथ मण्डल. जब देश का विभाजन हुआ तो मण्डल ने अपने समर्थकों के साथ पाकिस्तान जाने का फैसला किया. बाबा साहब ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी. उन्हें व्यवहारिक समझ के कारण यह अनुमान था कि यदि मण्डल और दलित पाकिस्तान गय तो उनके साथ क्या होगा. लेकिन मण्डल ने उनकी सलाह नहीं मानी. वह पाकिस्तान गये और उनके साथ “चार दिनों की चाँदनी” वाली कहावत चरितार्थ हुयी. बाबा साहब की आशंका एकदम सही सिद्ध हुयी. पाकिस्तान में पुलिस, मुस्लिम लीग और स्थानीय लोगों द्वारा दलितों पर जघन्य अत्याचारों के कारण मण्डल को अपने बचे-खुचे साथियों के साथ भारत आना पड़ा. पाकिस्तान में उन्हें “देशद्रोही” करार दिया गया. इस विषय पर अमेरिका की Johnson Hopking University की ग़ज़ल आसिफ ने अपने शोधपत्र “जोगिन्दर मण्डल एण्ड पॉलिटिक्स ऑफ़ दलित रिकग्निशन इन पाकिस्तान” में इस विषय पर बहुत विस्तार से प्रकाश डाला है. उनके अलावा अनेक विद्वानों ने इस विषय पर काफी कुछ लिखा है. पाकिस्तान के संस्थापक क़ायदे-आज़म मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की संविधान सभा की पहली बैठक की अध्यक्षता जोगिन्दरनाथ मण्डल से करवायी. उन्हें पाकिस्तान का पहला क़ानून मंत्री बनाया गया. जिन्ना ने अपने भाषण में कहा कि हम एक ऐसे दौर में जा रहे हैं, जिसमें किसीके साथ भेदभाव नहीं होगा. किसी एक समुदाय को दूसरे समुदाय पर वरीयता नहीं दी जाएगी. उन्होंने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हितों और सम्मान का आश्वासन दिया. उन्होंने सियासत को मजहब से अलग रखने की घोषणा की. यह भी आश्वासन दिया कि किसी भी जाति या नस्ल के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा इसके एक दिन पहले मण्डल ने अपने पाकिस्तान को चुनने की वजह बतायी. उन्होंने कहा कि “मेरा मानना था कि मुस्लिम समुदाय ने भारत में अल्प्संखयक के रूप में अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया, लिहाजा वो अपने देश में अल्पसंखयकों के साथ न केवल न्याय करेगा, बल्कि उनके प्रति उदारता भी दिखाएगा.” लेकिन उनकी यह धारणा गलत साबित हुयी. ग़ज़ल आसिफ ने अपने शोधपत्र में कहा कि  “मण्डल ने पाकिस्तान के निर्माण में दलित स्वतंत्रता के सपने को साकार होते हुए देखा था, लेकिन नए राज्य में उनका विजन टिक नहीं सका.”  इसी तरह भारत में गांधीनगर के कनावती कॉलेज के इतिहास के प्रोफेसर अनिर्बान बंदोपाध्याय ने भी अपने शोधपत्र में कहा कि जिन्ना को इस बात पर पूरा भरोसा था कि धार्मिक राष्ट्रवाद के जिस राक्षस को उन्होंने जगाया था, उस पर वह काबू पा लेंगे. उनकी सोच गलत साबित हुयी. जिन्ना की अचानक मौत के बाद पाकिस्तान के चरमपंथियों को लगभग बेकाबू हो गए. मण्डल को उस माहौल में पूरी तरह अलग-थलग कर दिया गया. उनके लिए ज़िन्दगी इतनी मुश्किल कर दी गयी कि उनका जीना दूभर हो गया. लाहौर यूनिवर्सिटी के इतिहासकार डॉ. अली उस्मान क़ासमी का कहना है कि Objectives of Resolution को मंजूरी के बाद मण्डल का पाकिस्तान से चले जाना इतिहास में एक बेहद महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि अब वह देख सकते थे कि राज्य पाकिस्तान का रास्ता जिन्ना के दृष्टिकोण से अलग हो चुका है. जिन्ना की मौत के बाद अनेक ऐसे घटनाएँ हुयीं, जिनसे जोगिन्दरनाथ मण्डल निराश हुए. उस देश में अब अल्पसंख्यकों के साथ किये गये वादों को पूरा करने वाला कोई नहीं था. ऐसे लोग सरकार में आ गये थे, जो बहुत शिद्दत के साथ मजहब को रियासत पर थोप रहे थे. ग़ज़ल आसिफ अपने शोधपत्र में लिखती हैं कि पाकिस्तानी अल्पसंख्कों पर शोध करने वाले सभी शोधकर्ता इस बात पर एकमत हैं कि इस Resolution का पारित होना पाकिस्तान के इतिहास में एक ऐसा क्षण था, जब पाकिस्तान को एक इस्लामिक राज्य बनाने के लिए अल्पसंख्यकों की सभी चिंताओं को पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया गया. इस सारे हालात से परेशान होकर मण्डल ने प्रधानमंत्री लियाकत अली से पाकिस्तान में दलितों के अत्याचारों की शिकयात की. लियाकत ने विस्तृत ब्यौरा माँगा, जो उन्होंने उपलब्ध करा दिया. लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ. इससे दुखी होकर मण्डल ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. अपने इस्तीफे में उन्हों लिखा कि सेना, पुलिस और मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं के हाथों बंगाल में सैंकड़ों दलितों की हत्या की घटनाएँ हुयी हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में न केवल अल्पसंख्यकों को, बल्कि ऐसे मुसलामानों को भी अपमानित किया जा रहा है, जो मुस्लिम लीग और सरकार के भ्रष्ट नौकरशाहों के दायरे से बाहर  हैं. अमेरिका में Tufts University में इतिहासकार डॉ. आयशा जलाल का कहना है कि मण्डल पाकिस्तान छोड़ने और और के भारत लौटने  के फैसले का कारण धार्मिक कट्टरता थी, जिसने उन्हें मुस्लिम लीग के नेताओं के लिए अस्वीकार्य बना दिया था, जिन्होंने उनकी देश के प्रति उनकी निष्ठा पर महज इसलिए सवाल उठाये, क्योंकि वह एक नीची जाति के हिन्दू थे. भारत के बँटवारे पर मण्डल ने कहा कि, हालाकि मैं समझता था कि बँटवारा मुसल्मानों की शिकायतों का एक जायज़ जबाव था, लेकिन मुझे यकीन था कि पाकिस्तान के निर्माण से साम्प्रदायिकता का समाधान नहीं होगा. इसके विपरीत यह केवल साम्प्रदायिकता और नफरत को बढ़ाएगा. बहरहाल, पाकिस्तान के हालात से आजिज़ होकर जोगिन्दरनाथ मण्डल भारत आ गये और कोलकाता में रहने लगे. पाकिस्तान ने उनपर “देशद्रोही” होने का आरोप लगाया. मण्डल कोलकाता में एक दलित झुगी बस्ती में रहे और उनका जीवन वहीँ बहुत बुरी हालत में बीता. बाबा साहब के व्यवहारिक ज्ञान के कारण उन्हें भारत में मान-सम्मान और रुतबा हासिल हुआ. उन्हें देश के सबसे बड़ा नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से नवाज़ा गया. वहीँ उनकी सलाह न मानकर पाकिस्तान चले जाने वाले मण्डल के हाथ सिर्फ अपमान और दुरावस्था ही लगी. यदि मण्डल बाबा साहब की सलाह मान लेते तो उन्हें और उनके दलित साथियों को पाकिस्तान में इतनी जिल्लत सहन नहीं करनी पड़ती.