वो राष्ट्रपति जिसने पहले देश को दिया संविधान, बाद में निभाया भाई का धर्म


स्टोरी हाइलाइट्स

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म जीरादेई (बिहार) में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. राजेन्द्र बाबू

वो राष्ट्रपति जिसने पहले देश को दिया संविधान, बाद में निभाया भाई का धर्म
Dr Rajendra Prasad
डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस तरह बने थे देश के पहले राष्ट्रपति
https://youtu.be/lN5y0Tq7TRg
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म जीरादेई (बिहार) में 3 दिसंबर 1884 को हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. राजेन्द्र बाबू बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिला स्कूल से हुई थी. मात्र 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की और फिर कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लेकर लॉ के क्षेत्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की. लॉ करने के बाद वह एक बड़े वकील के रूप में प्रैक्टिस करते रहे. वह भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे. उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था.

ये कहानी है एक ऐसे लड़के की जिसकी उत्तरपुस्तिका जांचते हुए परीक्षक जवाबों से ऐसा प्रभावित हुआ कि लिख दिया- ‘परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर जानता है.’ पढ़ाई-लिखाई में वो ऐसा अव्वल था कि कलकत्ता विश्वविद्यालय के एंट्रेंस एक्‍जाम में ही टॉप कर तीस रुपए प्रति महीना का वजीफा पा लिया.अपने काम का ऐसा धुनी की सगी बहन की मौत पर अंतिम संस्कार बाद में किया, पहले अपना अधूरा काम निपटायाउसे हमारा देश राजेंद्र प्रसाद के नाम से जानता है और दुनिया भारत गणराज्य के पहले राष्ट्रपति के तौर पर.

देशसेवा के लोभी लेकिन घर का मोह पड़ा भारी

राजेंद्र बाबू अच्छे खासे वकील थे लेकिन फिर एक दिन उनकी मुलाकात महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरू गोपालकृष्ण गोखले से हो गई. गोखले उन दिनों अपनी संस्था के लिए कुछ प्रतिभाशाली लड़कों की तलाश कर रहे थे. राजेंद्र बाबू उनसे मिलने पहुंचे और प्रभावित हुए लेकिन गोखले व्यवहारिक नेता थे. राजेंद्र बाबू की पारिवारिक स्थिति से वाकिफ थे इसलिए उनसे सोच समझकर देशसेवा का फैसला लेने के लिए कहा.

इसके बाद करीब दो हफ्तों तक राजेंद्र बाबू ऊहापोह की स्थिति में रहे. बड़े भाई के साथ रहते थे इसलिए उनकी मन:स्थिति वो भी देख रहे थे. कोर्ट जाना अचानक बंद कर चुके राजेंद्र बाबू समझ ही नहीं पा रहे थे कि राष्ट्रसेवा के अपने व्रत का फैसला भाई से कैसे कहें. फिर एक दिन हिम्मत जुटा कर भाई के नाम पर चिट्ठी लिख डाली और दबे पांव बिस्तर पर तब रख आए जब बड़े भाई टहलने बाहर गए थे. भाई की नज़रों से नज़रें मिलाने की हिम्मत नहीं जुटा सके अलबत्ता खुद ही टहलने निकल गए.

भाई लौटे और खत पढ़ा. राजेंद्र बाबू को तलाशने लगे. बाहर दोनों भाई एक-दूसरे के सामने आए तो भावुकता उफान पर थी. एक-दूसरे से लिपट कर खूब रोये. तय हुआ कि घर लौटकर परिजनों को फैसले की जानकारी दे देनी चाहिए. ये अलग बात है कि घर का प्यार उन पर भारी पड़ा और वो गोखले की सर्वेंट्स ऑफ इंडियो सोसायटी को कभी ज्वाइन नहीं कर सके.

बापू के सच्चे सिपाही राजेंद्र बाबू

कांग्रेस के कई अधिवेशनों में शामिल होनेवाले राजेंद्र बाबू की मुलाकात सन 1916 में महात्मा गांधी से लखनऊ अधिवेशन में हुई. चंपारण सत्याग्रह के दौरान वो गांधी से बहुत प्रभावित हुए और गांधी उनसे. साल 1920 के असहयोग आंदोलन में वो भी कूदे. आखिरकार अपने करियर को तिलांजलि देकर उन्होंने कांग्रेस का भाग होना मंज़ूर कर ही लिया. स्वदेशी को अपनाने वाले वो सच्चे हिंदुस्तानी थे. उन्होंने अपने बेटे मृत्युंजय प्रसाद को कॉलेज से निकाल लिया और दाखिला बिहार विद्यापीठ में कराया जिसे भारतीय शैली से चलाया जा रहा था.

सच्चे जननेता के तौर पर राजेंद्र बाबू की पहचान

डॉ राजेंद्र प्रसाद खूब पढ़ाकू थे. लंबे अकादमिक जीवन के बावजूद वो तरह-तरह की किताबें भी पढ़ते थे. प्रसिद्ध घुमक्कड़ और साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन उनसे इतने प्रभावित थे कि उन्हें अपना गुरू मानने लगे. पढ़ाई-लिखाई के इतर उनका लोगों के साथ संपर्क ज़बरदस्त था. वो सही मायनों में जननेता थे और लोग उनकी अपीलों पर खूब ध्यान देते थे.  साल 1914 में बिहार में आई बाढ़ के दौरान उनके काम की सभी ने प्रशंसा की और इसी तरह अगले साल आए बाढ़ में उन्होंने राहत कार्य में खुद को पूरी तरह झोंक दिया.

राजेंद्र बाबू ने एक बिहार सेंट्रल रिलीफ कमेटी बनाई और लोगों से राहत के लिए धन जुटाना शुरू किया. इसी तरह 1935 में उन्होंने क्वेटा भूकंप के दौरान भी समिति बनाकर धन एकत्र किया और लोगों की मदद की. बताते हैं कि राजेंद्र बाबू की समिति वायसराय से भी तीन गुना ज़्यादा पैसा इकट्ठा करने में कामयाब रही.

राजेंद्र बाबू नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद 1939 में पार्टी के अध्यक्ष भी बने. 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें एक बार फिर जेल जाना पड़ा. तीन सालों तक उन्होंने जेल काटी.

आखिरकार देश आज़ाद हुआ और डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत की अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री बने. 11 दिसंबर 1946 को वो भारत की संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए. 17 नवंबर 1947 के दिन उन्हें तीसरी बार कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया और आखिरकार 26 जनवरी 1950 को उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति के पद की शपथ ली. वो भारत के अकेले राष्ट्रपति हैं जो दो बार इस पद पर रहे.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद के जीवन से जुड़ी ७ बातें
  1. डॉ. राजेंद्र प्रसाद ( Rajendra Prasad) का जन्म 3 दिसंबर 1884 में बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था.
  2. राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा छपरा (बिहार) के जिला स्कूल से हुई. उन्होंने 18 साल की उम्र में कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा प्रथम स्थान से पास की. विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें 30 रुपये की स्कॉलरशिप मिलती थी. साल 1915 में राजेंद्र बाबू ने कानून में मास्टर की डिग्री हासिल की. साथ ही उन्होंने कानून में ही डाक्टरेट भी किया.
  3. राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे, उन्हें अच्छा स्टूडेंट माना जाता था. उनकी एग्जाम शीट को देखकर एक एग्जामिनर ने कहा था कि ‘The Examinee is better than Examiner.
  4. डाक्‍टर राजेंद्र प्रसाद (Rajendra Prasad) राष्‍ट्रपिता गांधी से बेहद प्रभावित थे, राजेंद्र प्रसाद को ब्रिटिश प्रशासन ने 1931 के 'नमक सत्याग्रह' और 1942 के 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान जेल में डाल दिया था.
  5. आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत को गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिलने के साथ राजेंद्र प्रसाद देश के प्रथम राष्ट्रपति बने. साल 1957 में वह दोबारा राष्ट्रपति चुने गए. राजेंद्र प्रसाद एकमात्र नेता रहे, जिन्हें 2 बार राष्ट्रपति के लिए चुना गया. 12 साल तक पद पर बने रहने के बाद वे 1962 में राष्ट्रपति पद से हटे.
  6. राजेंद्र प्रसाद की बहन भगवती देवी का निधन 25 जनवरी 1950 को हो गया था. जबकि अगले दिन यानी 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने जा रहा था. ऐसे में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारतीय गणराज्य के स्थापना की रस्म के बाद ही दाह संस्कार में भाग लेने गए.
  7. साल 1962 में राष्ट्रपति पद से हट जाने के बाद राजेंद्र प्रसाद को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया.