भारत के अधिक ग्रामीण बच्चों की हथेली पर आयी दुनिया -दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत के अधिक ग्रामीण बच्चों की हथेली पर आयी दुनिया -दिनेश मालवीय हमारे पुराने शास्त्रों में जब किसी को परम ज्ञानी बताना होता था, तो कहा जाता था कि उन्हें विश्व का ज्ञान “हस्तामलकवत” है. इसका मतलब है कि जिस प्रकार हथेली पर आंवला रखा होता है, उसी तरह उसे को पूरी श्रृष्टि का ज्ञान है. यह एक बहुत प्रभावी रूपक था, जिसे बोलते ही व्यक्ति के ज्ञान की व्यापकता और उसकी सर्वज्ञता का ज्ञान हो जाता था. लेकिन समय के साथ सब-कुछ इतना बदल गया है कि जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. आज अधिकतर लोगों, खासकर बच्चों-युवाओं के पास एंड्राइड फोन हैं और उन पर इन्टरनेट के ज़रिये पूरी दुनिया का ज्ञान उनकी हथेली पर ठीक उसी तरह है, जैसे ऋषियों के पास ‘हस्तामलकवत’ होता था. हालाकि इन्टरनेट का ज्ञान उधार का है, जबकि ऋषि का ज्ञान उसके अंतर से प्रकाशित होता था. इसीलिए उन्हें मंत्रदृष्टा कहा जाता था. ज्ञान उनके भीतर से प्रकाशित होता था. बहरहाल, उधार का ही सही लेकिन ज्ञान तो ज्ञान है. आज के सन्दर्भ में तो इसका महत्त्व किसी भी तरह कम नहीं है. बहरहाल, मुद्दे की बात यह है कि कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के बावजूद देश के देहाती इलाकों में और अधिक बच्चों के हाथ में स्मार्ट फ़ोन आ गये हैं. इन इलाकों में इन फोन हैण्डसेट्स की बिक्री में जबरदस्त उछाल आया है. इन्हें खरीदने वालों में ज्यादातर उन बच्चों के माता-पिता हैं, जो पढ़ रहे हैं. किस्सा यह है कि लॉकडाउन के कारण स्कूलों में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है, जिसके चलते यह फोन अनिवार्य हो गया है. एक सर्वे के अनुसार वर्ष 2018 में देश के 36 फीसदी ग्रामीण परिवारों में ही एंड्राइड फोन थे, जबकि इस साल ऐसे परिवारों की संख्या 62 फीसदी हो गयी है. यह सर्वे Annual Status of Education Report (Rural) (ASER) द्वारा किया गया है. सर्वे के अनुसार करीब 11 फीसदी लोगों ने लॉकडाउन के बाद ये हैण्डसेट खरीदे. इनमें से 80 फीसदी स्मार्ट फोन हैं. स्कूल अभी तक नहीं खुले हैं. सरकारी और प्राइवेट स्कूल विभिन्न दूरस्थ माध्यमों से क्लासेस ले रहे हैं. इसके कारण कम पढ़े-लिखे और बे-पढ़े-लिखे लोग भी पढ़ाई में अपने स्तर पर बच्चों की मदद कर रहे हैं. इससे बच्चों की शिक्षा के मामले में उनकी भागीदारी बढ़ी है. पहले इसमें उनका कुछ ख़ास दखल नहीं होता था. यह दखल भी पढ़ाई के लिए सुविधाएँ जुटाने तक सीमित था. स्कूलों के खुलने के बाद भी इसके क़ायम रहने की संभावना है. देश की नयी शिक्षा नीति में भी बच्चों की शिक्षा में समाज और परिवार की सक्रिय सहभागिता बढ़ाने पर बल दिया गया है. इस दिशा में यह एक महत्वपूर्ण बात है. मार्च में स्कूलों के बंद हो जाने के बाद देहातों में हर दस परिवार में से एक परिवार ने बच्चों की पढ़ाई की खातिर ये फोन खरीदे हैं. जिन परिवारों में जितने अधिक पढ़े-लिखे लोग हैं, उनके बच्चों को उनसे उतनी अधिक मदद मिली है. इसके अलावा, शिक्षा सामग्री को साझा करने में WhatsApp का भी बहुत उपयोग हुआ है. करीब 67 प्रतिशत सरकारी स्कूल के बच्चों ने और 87 प्रतिशत से अधिक प्राइवेट बच्चों ने इस कार्य के लिए इस एप का उपयोग किया. कोरोना के कारण उत्पन्न व्यवधानों के चलते करीब 20 फीसदी ग्रामीण बच्चों को पाठ्यपुस्तकें नहीं मिल पायीं. बंगाल, नागालैंड और असम में तो करीब 98 फीसदी बच्चों को पुस्तकें नहीं मिल पायीं. अनेक बच्चों को स्कूलों में प्रवेश भी नहीं मिल पाया. प्राइवेट स्कूलों के 28 फीसदी  और 18 फीसदी से अधिक बच्चों ने रिकार्डेड विडियो लेसन्स का भी उपयोग किया.   https://youtu.be/qW2vM1DnV7Y