इंसान से बड़ा मूर्ख संसार में कोई जीव नहीं, शास्त्रों ने कहीं व्यंग्य में तो सर्वश्रेष्ठ प्राणी नहीं कहा.. दिनेश मालवीय


स्टोरी हाइलाइट्स

भारत ही नहीं, दुनिया के सभी धर्मशास्त्रों में इंसान को सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है. कहा गया है कि, मनुष्य दूसरे...

इंसान से बड़ा मूर्ख संसार में कोई जीव नहीं, शास्त्रों ने कहीं व्यंग्य में तो सर्वश्रेष्ठ प्राणी नहीं कहा.. दिनेश मालवीय भारत ही नहीं, दुनिया के सभी धर्मशास्त्रों में इंसान को सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है. कहा गया है कि, मनुष्य दूसरे सभी जीवों से इसलिए श्रेष्ठ है,क्योंकि उसमें विवेक है. विवेक से तात्पर्य है, अच्छे-बुरे की तमीज़. विवेकशील व्यक्ति को यह पता होता है कि, उसके, समाज के, देश के और सम्पूर्ण विश्व के हित में क्या है और अहित में क्या. विगत करीब डेढ़-दो सौ साल में मनुष्य ने सचमुच बहुत वैज्ञानिक प्रगति की है. उसने ऐसे-ऐसे कारनामें कर दिखाए, जिनकी कभी कल्पना तक नहीं की गयी थी. लेकिन जैसा कि महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा है कि ज्ञान अर्थात धर्म या विवेक के बिना विज्ञान लंगडा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा है. अच्छे-बुरे का विवेक धर्म का बहुत महत्वपूर्ण अंग है. विज्ञान और तकनीक के मामले में अकल्पित उपलब्धियां हासिल करने के बाद भी, मनुष्य पूरी तरह विवेकहीन रह गया. धर्म में कही हुई बातें, आचरण में नहीं उतरीं. इसका प्रमाण यह है कि हॉल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में बताया गया कि, दुनिया के अनेक देशों के पास बहुत घातक परमाणु हथियार हैं, जिनकी संख्या 14 हज़ार से अधिक है. संघ ने इन हथियारों को नष्ट करने की अपील की है. लेकिन इस अपील को मानता कौन है? संयुक्त राष्ट्र संघ वैसे भी लगभग सभी मामलों में दंतविहीन संस्था ही साबित हुआ है. परमाणु हथियारों की यह होड़ कम होने के बजाय बढ़ती ही चली जा रही है. ख़ुदा न ख़ासता अगर परमाणु जंग छिड़ गयी, तो ऐसा विनाश होगा जो किसीकी कल्पना से भी परे है. ऐसा डर है कि, बेचारा संयुक्त राष्ट्र संघ कहीं महर्षि व्यास जैसा साबित नहीं हो जाए. महर्षि व्यास ने कहा है कि, “महाभारत युद्ध के पहले मैंने हाथ उठा-उठाकर कहा कि, यह युद्ध मत होने दो. इससे बहुत विनाश  हो जाएगा. लेकिन मेरी बात किसीने नहीं सुनी”. मानवता के इतिहास में शायद ही कभी ऐसा समय रहा हो , जब कहीं जंग नहीं हो रही हो. पहले बहुत से लोगों ने जंग रोकने के लिए प्रयास किये, लेकिन इसे कोई रोक नहीं सका. यह किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं चलती ही रही. पहले जब कबीले थे तो उनके बीच, फिर गाँव बने तो उनके बीच, फिर शहर बने तो उनके बीच, फिर राज्य बने तो उनके बीच और उसके बाद देश बने तो उनके बीच जंग चलती चली आ रही है. अब देशों के खेमे बन गये हैं, तो जंग उनके बीच होगी. इसीलिए किसीने कहा है कि जिसे हम शांतिकाल कहते हैं, वह दरअसल अगली जंग की तैयारी का समय होता है.  ऐसा लगता है कि मनुष्य का मूल स्वभाव ही जंग करने का रहा है. वह अगर कभी हथियारों से जंग नहीं कर रहा होता, तो किसी और रूप में जंग कर रहा होता है. ऐसा भी लगता है कि, दुनिया बनाने वाले की योजना में जंग एक अभिन्न अंग है. वरना क्या कारण है कि लाख कोशिशों के बाद भी जंग रोकी नहीं जा सकी हैं. जर्मनी के महान विचारक नीत्जे ने कहा था कि उसे “फौजियों की परेड में उनके जूते से जो आवाज निकलती है, वह दुनिया के सबसे सुरीले संगीत जैसी लगती है”. लगता है, यही लगभग मानव का मूल स्वभाव है.  दुनिया में हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि, जल्दी ही बड़ी जंग हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. जुबानी जंग भी ख़ूब चल रही है. कोई किसीको विस्तारवादी बता रहा है, तो कोई किसीको चौधरी बनने का ख्वाहिशमंद. दनादन एक के बाद एक ऐसे हथियार बन रहे हैं, जिनसे होने वाले विनाश का कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता. ये कई बार दुनिया को तबाह करने की ताकत रखते हैं. मीडिया वाले इन हथियारों के बारे में जितना जानते हैं, वह वास्तविकता का दस फीसदी भी नहीं है. आज के हालात में अगर जंग छिड़ती है तो कोई भी देश तटस्थ नहीं रह पायेगा. उसे जाने-अनजाने किसी न किसी के पक्ष में लड़ना ही पड़ेगा. दूसरे विश्वयुद्ध में जापान के नागासाकी और हिरोशिमा में अमेरिका ने जो एटम बम गिराए थे, उनसे कुछ लाख लोग मरे थे. लेकिन आज जो बम और अन्य हथियार बन चुके हैं, उनके बारे में एक सैन्य विशेषज्ञ के अनुसार इन हथियारों के उपयोग के बाद धरती पर एक भी आदमी तो आदमी कोई पशु-पक्षी और पेड़-पौधे तक नहीं बच पाएँगे. बिल्कुल वैसी ही स्थिति पैदा हो जाएगी, जैसी श्रष्टि के निर्माण के पहले बतायी जाती है. दुनिया के सबसे प्रगतिशील और समृद्ध देश जब हथियारों की होड़ में लगे हैं, तो फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि, मनुष्य दुनिया का सर्वश्रेष्ठ जीव है. इतना ही नहीं, वे यह चाहते है कि, दुनिया के दूसरे देश आपस में लड़ते रहें, ताकि उनके द्वारा बनाए जा रहे हथियार बिक सकें. विकासशील कहे जाने वाले गरीब मुल्क भी बुरी तरह अज्ञान के शिकार हैं. वे आज उन बातों पर आपस में लड़ रहे हैं, जिनकी आज कोई  प्रासंगिता नहीं रह गयी है. लेकिन ऐसा होना ही हथियार बनाने वाले देशों के हित में है. गरीब देश अपनी जनता का पेट काट-काट कर अपनी सुरक्षा के नाम पर हथियारों का ऐसा ज़खीरा जमा कर रहे हैं, जिनका उपयोग शायद ही कभी हो. कुछ दिनों बाद ये हथियार पुराने पड़ जाएँगे और उन्हें डंप कर और नवीनतम हथियार ख़रीदे जाएँगे. लेकिन ये नवीनतम कहे जाने वाले हथियार वे होते हैं, जो हथियार बनाने वाले देशों में बहुत पुराने पड़ चुके हैं. आज विज्ञान-प्रौद्योगिकी का स्वर्णिम कहे जाने वाले समय में महाविनाशक परमाणु हथियारों की होड़ देखकर लगता है मनुष्य संसार का सबसे मूर्ख प्राणी है. शास्त्रों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी व्यंग्य में ही कहा होगा.