लिंगभेद नहीं शिक्षा के कारण पिछड़ी हैं आदिवासी महिलाएं..


स्टोरी हाइलाइट्स

कोरोना,लॉकडाउन, बिजनेस, सितारे की आत्महत्या, भारत-पाक तनाव,भारत चीन सीमा विवाद  जैसे मुद्दे हमेशा मीडिया की सुर्खियों में रहते हैं|  लेकिन कुछ मुद्दे हैं जिन पर मीडिया की नजर नहीं जाती|  यह मुद्दे उन लोगों से जुड़े हैं जो शायद मीडिया के टारगेट ऑडियंस नहीं हैं| आज न्यूज़ पुराण  में हम ऐसे ही एक गुमनाम मुद्दे की बात करेंगे,  जो शायद ही कभी चर्चा का विषय रहा हो|  This article discusses the meaning of Educationally the tribal population is at different levels of development but overall the formal education has very little impact on tribal groups. Earlier government had no direct programme for their education, but in the subsequent years the reservation policy has made some changes. There are many reason for low level of education among the tribal people: formal education is not considered necessary to discharge their social obligations. Superstitions and myths play an important role in rejecting education. Most tribes live in abject poverty. it is not easy for them to send their children to schools. As they are considered extra helping hands. The formal schools do not hold any special interest for the children. Most of the tribes are located in interior and remote areas where teachers would not like to go from outside. प्रख्यात समाजशात्री एवं विचारक मार्क्स का कहना है की “स्त्री का कोई वर्ग नही होता हैं, विश्व की आधी आबादी वर्ग विहीन हैं, स्त्री के वर्ग का निर्धारण पुरुष के वर्ग से होता हैं” | नारीवादी विचारक सिमोन द बुआ ने भी अपनी पुस्तक “The Second Sex” में बताया है की “नारी जन्मती नही, बनाई जाती हैं” | नारी की प्रकृति के रूप में और पुरुष को संस्कृति के रूप में चित्रित किया जाता रहा हैं | नारी की इस गिरी हुई हीन स्थिति के लिए पितृसतात्मकता की प्रथा उत्तरदायी हैं| जिस प्रकार आदिवासी समाज में शिक्षा का आगाज हुआ है आदिवासी महिलाओ में शिक्षा का स्तर कम मात्रा में पाया जाता है, उनकी आर्थिक स्थिति इतनी उच्च नही है की वे स्कूल या कोलेज में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेज सकें | यहाँ कुछ मात्रा में आदिवासी लड़कियां प्राथमिक शिक्षा तो प्राप्त कर पाती है लेकिन आगे की पढाई नही कर पाती है या तो उनका कम उम्र में विवाह हो जाता है या तो सामाजिक बन्धनों के कारण तथा साधनों के अभाव में शिक्षा बीच में ही रोकनी पड़ती है जबकि सरकार आदिवासियो के विकास के लिए भारी मात्रा में नीतियां और कल्याणकारी योजनाये चला रही है, जिससे उनका समुचित और सर्वागीण विकास हो सके तथा वे बहिस्कृत समूह और उपान्त समूह से समाज की सामान्य धारा में सम्मिलित हो सकें | आदिवासी महिलाये, शिक्षा, आर्थिक स्तर, पिछाडापन, परीस्थितियाँ और बदलाव | TRIBAL WOMEN EDUCATION IN INDIA: OPPORTUNITIES AND CHALLENGES. जब हम सम्पूर्ण मानव समाज के विकास की बात करते हैं तो पाते हैं कि दुनिया का आधा हिस्सा अब भी विकास के लाभ से वंचित है और उनकी गणना हासिये के समूह, पिछड़े वर्ग, वंचित वर्ग, बहिष्कृत समूह, अनुसूचित जाति तथा जनजाति और महिलाओ के रूप में की जाती है | सामान्यरूप में महिलाओ तथा विशेषरूप से आदिवासी औरतो को तीन तरह से मुसीबत का सामना करना पड़ता है, एक महिला, दूसरा आदिवासी, तीसरा ग्रामीण जीवन | हम औरतो के सशक्तिकरण की बात करते हैं जबकि नारी जाति को शक्ति का रूप माना जाता हैं तो ऐसा कहा जा सकता हैं की यह तो शक्ति के सशक्तिकरण की बात हैं जिसमे नारी के पास इतनी शक्ति नही है की वो एकता तथा सम्मान के साथ समाज में जीवन व्यतीत कर सकें | जिस तरह से भारत में सामान्यरूप से आदिवासियों का विकास तथा विशेषरूप से आदिवासी महिलाओ का विकास हो रहा हैं उससे यह परिलक्षित होता है की वे अपने विकास के प्रति जागरूक हो रहे हैं क्योकि भारत की प्राप्त जनगणना से यह पता चल रहा है कि आदिवासी महिलाये शिक्षा के प्रति ज्यादा जागरूक हो रही है तथा उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो रहा है | जब हम आदिवासी जीवन की बात करते हैं तो ऐसा पाते है की आदिवासी सामाजिक स्तरीकरण में लिंग भेद का न तो कोई सार्वभौमिक नियम है और न ही सभी महत्वपूर्ण प्रस्थितियाँ लिंग भेद पर आधारित होती है | आदिवासी समाजों में हम महिलाओ की प्रस्थिति इस तथ्य से समझ सकते है की उन्हें सामाजिक सहभागिता के अवसर किस सीमा तक प्राप्त होते है, वैवाहिक निर्णय में उन्हें कितनी स्वतंत्रता प्राप्त है तथा आर्थिक क्रियाओं एवं शैक्षणिक जीवन में उनका कितना योगदान है | जैसा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्त्री शिक्षा पर ज़ोर देते हुए कहते है की “महिलाओ का सशक्तिकरण तभी हो सकता है जब उनकों कार्य और अधिकारों का ज्ञान होगा और उसको प्राप्त करने कि शक्ति होगी | इसके लिए शिक्षा ही सबसे बड़ा हथियार है” | सरकार पिछड़े हुए लोगों तथा महिलाओं में शिक्षा का स्तर उच्च करने और समानता लाने के लिए अथक प्रयास कर रही है | जगह–जगह स्कूल और कालेज की व्यवस्था करवा रही है ताकि सब शिक्षित हों और प्रगति के पथ पर अग्रसर हों क्योंकि शिक्षा ही वह हथियार है जिसके जरिये मनुष्य जाति का समुचित विकास हों सकता है, लेकिन क्या वास्तविकता में लोग शिक्षित हों रहे है? जिनको शिक्षा की ज्यादा जरूरत है वे आज भी इसके महत्व से अनभिज्ञ है | आदिवासी शब्द दो शब्दों आदि और वासी से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता हैं | भारत की जनसख्या का एक बड़ा हिस्सा आदिवासियो का हैं | संविधान में आदिवासियो के लिए अनुसूचित जनजाति पद का प्रयोग किया गया हैं | महात्मा गाँधी ने आदिवासियो को गिरिजन (पहाड़ पर रहने वाले लोग) कह कर पुकारा हैं | आदिवासियो का रहन–सहन, रीति–रिवाज अपनी एक अलग विशेषता लिए हुए होते हैं, उनकी अपनी एक अलग संस्कृती होती हैं जो उन्हें दुसरे समाजो या लोगों से अलग करता हैं | उनकी पारिवारिक व्यवस्था, सामुदायिक जीवन, लग्न, व्यवसाय तथा उनके समाज में नारी की स्थिति और धार्मिक संगठन की भिन्न-भिन्न संरचना होती हैं जैसा की दुर्खीम ने आस्ट्रेलिया की अरुंटा जनजाति का अध्ययन करके पाया की उनमे धार्मिक रीति-रिवाज के कारण एकता की भावना तथा सामूहिक प्रतिनिधित्व पाया जाता हैं | आदिवासी महिलाओ की शैक्षणिक स्थिति तनी पिछड़ी है | उनसे सीधे रूबरू होने पर यह बात सामने आया की उनको शिक्षा की उपयोगिता के बारे में ज्यादा पता नही है उनका ऐसा मानना है की उनकी जीवनचर्या तो सही से चल रहा है तो वो अपने परिवार को शिक्षित करके क्या करेगे और जहाँ तक बात महिलाओ की है उनको तो शिक्षा की जरुरत ही नही है, ऐसा उनका मानना है | विभिन्न जनजातियों में लोग अपने लड़कों को विद्यालयों में और बाद में महाविद्यालयों में भेज रहे हैं | लेकिन, लड़कियों को भेजने के मामले में उतना उत्साह नहीं है | जनजातीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जो भी रूपरेखा बनाई जाए, उसमें इस बात को अवश्य ध्यान में रखा जाए कि इन महिलाओं को भी नवयुग का सामना करना है | यहां रूढ़ियों और पंरम्पराओं में अंतर करना होगा | पंरम्पराएं एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होनी चाहिएं किंतु रूढ़ियों के मामले में ऐसा नहीं होना चाहिए | अगर लडकियों को शिक्षा प्राप्ति के लिए भेज भी रहे है तो उन्हें बीच में ही पढाई छोड़ने के लिए मजबूर भी कर कर रहे है जिसकी वजह से उनकी पढाई पूरी नही हो पाती हैं | इसके पीछे छिपे वजह का पता लगाने पर कुछ कारणों का पता चला जैसे की यहाँ स्त्री साक्षरता दर निम्न होने का कारण आदिवासी विस्तार, भौगोलिक परिस्थिति, ग़रीबी, अज्ञानता, जागरूकता की कमी आदि है | आदिवासियों के आर्थिक जीवन का स्त्रोत जंगली लकड़ियाँ, फल-फूल, सब्जियाँ, पशु-पालन, गुंदर, दूध, दूसरो के खेतो में मज़दूरी तथा कृषि है | इसके अलावा हस्त निर्मित वस्तुए है जिसे वे बाजारों में बेच कर अपना जीवन निर्वाह करते है | आर्थिक आधारों पर वह कितनी मात्रा में भेदभाव की शिकार होती है तथा पिछड़ी हुई अवस्था में है | जैसा की शिक्षण और आर्थिक जीवन में सामानांतर सम्बन्ध होता है तो यह कहा जा सकता है की जिनका शैक्षणिक जीवन उच्च होगा तो उनका आर्थिक जीवन समृद्ध होगा | वर्तमान में आदिवासियो के सामने जीवन निर्वाह की समस्या दिनोदिन बढ़ती जा रही हैं, जिसकी वजह से शिक्षा की उपयोगिता के बारे में अभी तक उनमे पूर्णतया जागरूकता नही आ पाई और ना ही प्राथमिकता बन पाई है, विशेषरूप से स्त्री शिक्षा के बारे में | पुरुष द्वारा कर्ज लेने की प्रवृत्ति के कारण भी महिलाओं की स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | उन्हें भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बंधुआ मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ता है | शिक्षा में प्रगति हुई है तो यह कहा जा सकता है की इस तालुका में आदिवासियो में विशेषतया महिलाओं में शिक्षा की कितनी ज्यादा आवश्यकता हैं | यहाँ पर शिक्षा की कमी का कारण लोगों में जागरूकता का आभाव तथा शिक्षा के महत्व से अनभिज्ञता हैं | जहां तक आदिवासी स्त्रियों में शिक्षा प्राप्ति की बात है तो उनके समुदाय में उनको शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित नही किया जाता है, जबकि आने वाले समय में अगर वे शिक्षित होती है तो उनके समाज में नया आयाम लाया जा सकता है जैसा की स्वामी विवेकानंद का मानना है की अगर स्त्री शिक्षित होती है तो पूरा समाज शिक्षित होगा, परन्तु इस तालुका से प्राप्त आकंडो से यही प्रतीत होता है की आदिवासी स्त्रियाँ शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़ी हुई अवस्था में है और जैसा की शिक्षा तथा आर्थिक जीवन का सामान्तर सम्बन्ध होता है तो बिना उचित तथा वैल्युएबल शिक्षा के आर्थिक समृधता भी प्राप्त नही की जा सकती हैं | वर्तमान समय में जिस तरह से उपभोक्तावाद, पूंजीवाद समाज में समानता, बाजारीकरण, वैश्विकरण सम्पूर्ण समाज में व्याप्त हो रहा है, और जैसा की प्रसिद्ध दर्शनशास्त्री, समाजशास्त्री ‘माइकल फोकाल्ट’ का मानना है की ज्ञान ही शक्ति है, जिसके पास ज्ञान है उसके पास शासन करने की शक्ति है तो ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है की आने वाले समय में जिसके पास ज्ञान होगा उसके पास समृधता होगी | आधुनिक समाज की इस अंधाधुंध दौड़ में खासतौर पर आदिवासी महिलाओ को शिक्षा तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने की आवश्कता है जिससे वे समाज में समानता और सम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर सके और आने वाले समाज का पुनर्निर्माण कर सकें |