योग के भेद : योग तत्व उपनिषद


स्टोरी हाइलाइट्स

योग के भेद :योग तत्व उपनिषद योग का तत्व समझाते हुए भगवान श्री हरि विष्णु कह रहे हैं -...which veda mentions about the elements of yoga | Yoga

योग के भेद : योग तत्व उपनिषद....... परमपिता ब्रह्मा जी को योग का तत्व समझाते हुए भगवान श्री हरि विष्णु कह रहे हैं - हे ब्रह्मन् !व्यवहार की दृष्टि से योग के अनेकानेक भेद होते हैं , जैसे मंत्र योग,लय योग, हठ योग एवं राज योग आदि। योग की चार अवस्थाएं सर्वत्र वर्णित की गई है ।ये अवस्थाएं आरंभ, घठ, परिचय एवं निष्पत्ति हैं । भगवान श्री हरि विष्णु ब्रह्मा जी को योग का तत्व समझाते हुए योग के विभिन्न भेदों के संबंध में बताते है-- हे ब्रह्म देव !आत्मा का परमात्मा से एकाकार करने की विधियों को योग पद्धतियों के नाम से जाना जाता है । मंत्र योग- जो साधक मात्रका आदि से युक्त मंत्र को 12 वर्ष तक जप करता है ।वह मंत्र की सिद्धि स्वरूप क्रमशः अणिमा -महिमा आदि सिद्धियों का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। लययोग- चित्त का लय ही लय योग है। यह योग अनेकों प्रकार का होता है, जिस किसी भी प्रकार से चित्त का लय हो जाए। वही विधि लययोग है, उठते -बैठते ,चलते -रुकते, शयन करते, भोजन करते ,कला रहित परमात्मा का निरंतर चिंतन करता रहे ।उसके ध्यान में मन को डुबोए रखें ,यही लय योग का ज्ञान है । हठ योग - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार , मुद्रा ,षटकर्म, धारणा , ध्यान तथा समाधि ।यही हठयोग है। यह समस्त प्रकार के योग में सर्वश्रेष्ठ योग पद्धति है । यदि वास्तविक रूप में हठयोग की परिभाषा जानी जाये तो ह -सूर्य एवं ठ - चंद्रमा इन दोनों का जो योग ,जो ऐक्य है-- वही हठयोग है अर्थात सूर्य चंद्रमा रूप जो अपान एवं प्राण है । उनकी एकता से जो प्राण का नवीन आयाम निर्मित होता है ,वही हठयोग है । इस दृष्टिकोण से देखने पर हठयोग में प्राण एवं अपान की सामयावस्था की प्राप्ति के माध्यम से मन को शांत कर परब्रह्म परमात्मा में लीन हो जाने का ही एक मात्र लक्ष्य दिखाई देता है। इसी लक्ष्य को साधने के लिए विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से शरीर को शुद्ध बनाकर, पवित्र बना कर ,लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ने का पूर्ण विज्ञान ही हठ योग है । राजयोग- हठयोग में पालन किय जाने वाले यम, नियम का पालन करते हुए,आसन, प्राणायाम ,धारणा, ध्यान समाधि का अभ्यास करना ही राजयोग है। यदि वास्तविक रूप में राजयोग की परिभाषा पूछी जाए तो आत्म तत्व के ध्यान में मन का पूर्णतया एकाग्र हो जाना ही राजयोग है। विभिन्न पद्धतियों का अनुसरण करके इसी स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है। साधक के दो शब्द-- यहां पर भगवान श्री हरि विष्णु ने योग के विभिन्न प्रकारों के विषय में समझाया है ।जिस साधक के लिए जिस प्रकार की पद्धति उचित हो वह अपनी शारीरिक, मानसिक अवस्था को देखकर उसी पद्धति का अनुसरण करें किंतु जो युवा हैं, जो समर्थ हैं, उन्हें सिर्फ और सिर्फ हठयोग या अष्टांग योग का ही अभ्यास करना चाहिए क्योंकि हठयोग या अष्टांग योग ही ऐसी पद्धति है जो पूर्ण रूप से शारीरिक ,मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास की चरम सीमा तक ले कर जाते है। हठयोग में किए जाने वाले षटकर्म योग्य पथ प्रदर्शक के मार्गदर्शन में ही किए जाने उचित है। ये आम साधक के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं इसलिए साधक के लिए योग मार्ग की जो जो क्रियाएं सुविधाजनक हो उन्हीं का अभ्यास करना चाहिए । योग्य मार्गदर्शक के होने पर समस्त क्रियाओं का उत्साह के साथ दृढ़ता से अभ्यास करें । इसलिए योग्य पथ परिचय के अभाव में राजयोग के पथ पर चलना ही उचित है ।अष्टांग योग वह विज्ञान है जो शरीर से संबंधित संसार का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान देता है। जो भी साधक शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से पूर्ण उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होना चाहते हैं । वे आसन, प्राणायाम ,धारणा ,ध्यान के माध्यम से समाधि तक पहुंचने का अभ्यास करें। इन चरणों का पालन करने से समाधि की अवस्था तक पहुंचना एवं सोई हुई कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर पाना अत्यंत आसान होता है। मंत्र योग एवं लय योग का अभ्यास भी हठयोग एवं राज योग के साथ किया जा सकता है । योग पद्धति के नाम से प्रचलित ये सभी नाम एक दूसरे के पूरक हैं विरोधी नहीं । हम सबको साथ लेकर चल सकते हैं। Latest Hindi News के लिए जुड़े रहिये News Puran से रामेश्वर हिंदु